Ranchi (Jharkhand) : झारखंड की राजधानी रांची स्थित पुराना विधानसभा सभागार में रविवार को भारतीय ज्ञान परंपरा और समकालीन समाज विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी का सफल आयोजन हुआ। यह संगोष्ठी केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा और अंतरराष्ट्रीय हिंदी साहित्य भारती, झारखंड इकाई के संयुक्त तत्वावधान में संपन्न हुई, जिसमें देश भर से साहित्य, संस्कृति और शिक्षा जगत के लगभग 150 विद्वानों, साहित्यकारों और शोधार्थियों ने हिस्सा लिया।
युवाओं को भारतीय दर्शन और साहित्य आत्मसात करने की जरूरत : सीपी सिंह
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पूर्व मंत्री एवं विधायक सीपी सिंह ने इस बात पर विशेष बल दिया कि भारतीय संस्कृति कोई बीता हुआ अध्याय नहीं, बल्कि एक जीवंत विरासत है, जिसे नई पीढ़ी तक पहुंचाना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि आज के युवाओं को भारतीय दर्शन और भाषा साहित्य को आत्मसात करने की नितांत आवश्यकता है।
इस अवसर पर ग्रामीण विकास मंत्री दीपिका पांडेय सिंह ने ऑनलाइन वीडियो कॉल के माध्यम से लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि जब तक हम अपनी संस्कृति और मूल्यों को नहीं अपनाएंगे, तब तक भारत को विश्वगुरु बनाना एक कठिन कार्य होगा। उन्होंने इस महत्वपूर्ण आयोजन के लिए आयोजकों के प्रयासों की भरपूर सराहना की।
भारतीय ज्ञान परंपरा में विश्व को दिशा देने की क्षमता : रविंद्र शुक्ल
संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे अंतरराष्ट्रीय हिंदी साहित्य भारती के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व शिक्षा मंत्री रविंद्र शुक्ल ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा में संपूर्ण विश्व को दिशा देने की अद्भुत क्षमता है और इसे आधुनिक संदर्भों में पुनर्परिभाषित किया जाना चाहिए।
शिक्षा, संस्कृति और भाषा के समन्वय पर बल
गौसेवा आयोग के अध्यक्ष राजीव रंजन प्रसाद ने इस संगोष्ठी को एक उत्सव की संज्ञा दी और इसे संस्कृति की पुनर्स्थापना की दिशा में एक सार्थक प्रयास बताया। केंद्रीय हिंदी संस्थान के क्षेत्रीय निदेशक डॉ. रंजन कुमार दास ने भारतीयता को एक समसामयिक जीवनशैली के रूप में प्रस्तुत करते हुए शिक्षा, संस्कृति और भाषा के समन्वय पर जोर दिया। केंद्रीय महामंत्री रामनिवास शुक्ल ने इस बात पर बल दिया कि यह समय साहित्य और सांस्कृतिक मूल्यों को संगठित रूप से प्रस्तुत करने का है।
संगोष्ठी के संयोजक अजय राय ने आयोजन के उद्देश्य और पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह मंच भारतीय संस्कृति और झारखंड की परंपराओं के समन्वय का एक अनूठा प्रयास है। प्रदेश अध्यक्ष डॉ. अरुण सज्जन ने अपने स्वागत भाषण में बिरसा मुंडा की धरती को याद करते हुए वैदिक परंपरा को पुनर्स्थापित करने का संकल्प दोहराया।
35 शोधपत्रों का प्रस्तुतिकरण और विद्वानों की उपस्थिति
इस महत्वपूर्ण संगोष्ठी में झारखंड के विभिन्न विश्वविद्यालयों से आए शोधार्थियों द्वारा 35 शोधपत्र प्रस्तुत किए गए, जो भारतीय ज्ञान परंपरा और समकालीन समाज के विभिन्न पहलुओं पर केंद्रित थे। कार्यक्रम में प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र और स्मृति-चिह्न भी भेंट किए गए।
संगोष्ठी के द्वितीय सत्र की अध्यक्षता सोच-विचार पत्रिका के संपादक डॉ. नरेंद्र मिश्र ने की और उन्होंने आयोजन की गंभीरता और सफलता की सराहना की। इस गरिमामय समारोह में बलराम पाठक, राकेश कुमार, संगीता नाथ, आशा गुप्ता, रेणु बाला मिश्रा, स्नेह लता, अनुज कुमार पाठक, संजय सराफ, संजीव दत्ता, दीपेश निराला, अनिकेत सिंह, अभय पांडेय, मनीष मिश्र, पूजा रत्नाकर, रमेश साहू, त्रिपुरेश्वर मिश्र, ब्रजेंद्र मिश्र, डॉ. रामप्रवेश पंडित सहित देशभर से साहित्य, संस्कृति और शिक्षा क्षेत्र के लगभग 150 विद्वान, साहित्यकार और शोधार्थी उपस्थित रहे, जिन्होंने इस वैचारिक मंथन को और समृद्ध किया।
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