रांची : झारखंड की राजनीति में ‘दिशोम गुरु’ के नाम से मशहूर शिबू सोरेन 11 दिसंबर को 81 वर्ष के हो जाते। उनका जन्म रामगढ़ जिले के नेमरा गांव में हुआ था। वे झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक और झारखंड आंदोलन के प्रमुख चेहरों में से एक रहे। लेकिन, उनका यह संघर्ष और राजनीतिक सफर आसान नहीं रहा। यह एक बेटे के उस विद्रोह से शुरू हुआ, जिसने अपने पिता की हत्या के बाद अन्याय के खिलाफ लड़ाई का बीड़ा उठाया।
पिता की हत्या बनी आंदोलन की चिंगारी
शिबू सोरेन के पिता सोबरन मांझी (शिक्षक) एक शिक्षित और जागरूक आदिवासी थे, जो महाजनों और सूदखोरों द्वारा आदिवासियों के शोषण का खुलकर विरोध करते थे। 27 नवंबर 1957 को उनकी हत्या कर दी गई थी। इस घटना ने युवा शिबू की ज़िंदगी बदल दी। उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और आदिवासी समाज के हक के लिए संघर्ष का रास्ता चुना।
धनकटनी आंदोलन की शुरुआत
पिता की हत्या के बाद शिबू सोरेन ने महाजनों के खिलाफ ‘धनकटनी आंदोलन’ शुरू किया। इस आंदोलन में वे और उनके साथी उन खेतों से जबरन धान काटते थे, जिन पर महाजनों ने कब्जा कर रखा था। खेत के चारों ओर आदिवासी युवा तीर-धनुष लेकर खड़े रहते थे। यह आंदोलन धीरे-धीरे एक जनआंदोलन बन गया और शिबू सोरेन को ‘दिशोम गुरु’ की उपाधि मिली। संताली भाषा में दिशोम गुरु का अर्थ होता है ‘देश का मार्गदर्शक’।
झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन
4 फरवरी 1972 को शिबू सोरेन, बिनोद बिहारी महतो और एके राय जैसे नेताओं के साथ मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की स्थापना की गई। बिनोद बिहारी महतो को अध्यक्ष और शिबू सोरेन को महासचिव चुना गया। यह संगठन आदिवासियों के हक, जमीन और पहचान की लड़ाई को संगठित रूप देने की दिशा में अहम कदम था।
पार्टी की विरासत को आगे ले जा रहे हैं हेमंत सोरेन
आज झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, दिशोम गुरु शिबू सोरेन के बेटे हैं, जिन्होंने पिता की राजनीतिक विरासत को मजबूती से आगे बढ़ाया है। झामुमो अब झारखंड की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बन चुकी है।
शिबू सोरेन जीवनी : झारखंड आंदोलन से मुख्यमंत्री पद तक का सफर
प्रारंभिक जीवन और सामाजिक पृष्ठभूमि
शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को वर्तमान झारखंड राज्य के रामगढ़ जिले के पास एक छोटे से गांव में हुआ था। वे संथाल जनजाति से संबंधित हैं, जो भारत की अनुसूचित जनजातियों में शामिल है। उनके पिता की हत्या के बाद उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी और उन्होंने लकड़ी के व्यापारी के रूप में काम करना शुरू किया।
शिबू सोरेन का राजनीतिक आरंभ और झारखंड आंदोलन
1970 के दशक की शुरुआत में शिबू सोरेन ने बाहरी लोगों द्वारा आदिवासी भूमि पर कब्जे के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने 1973 में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की स्थापना की, जिसका उद्देश्य बिहार के दक्षिणी और पूर्वी हिस्सों को मिलाकर एक अलग झारखंड राज्य का निर्माण करना था। इस आंदोलन को 2000 में सफलता मिली जब झारखंड राज्य का गठन हुआ।
JMM नेतृत्व और आदिवासी समर्थन
शिबू सोरेन ने खनन और औद्योगिक क्षेत्रों में कार्यरत आदिवासियों और अल्पसंख्यकों का समर्थन हासिल कर झारखंड मुक्ति मोर्चा को एक सशक्त राजनीतिक संगठन बनाया। 1987 में उन्हें JMM का अध्यक्ष चुना गया, और वे कई दशकों तक इस पद पर बने रहे।
शिबू सोरेन का राजनीतिक करियर
लोकसभा और राज्यसभा सदस्य के रूप में कार्यकाल
1977 में स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए।
1980, 1989, 1991, 1996 और 2004 में लोकसभा सदस्य चुने गए।
2002 में राज्यसभा सदस्य बने, लेकिन उपचुनाव जीतने के बाद इस्तीफा दिया।
झारखंड के मुख्यमंत्री के रूप में तीन बार कार्यकाल
पहला कार्यकाल (2005)
2005 में कांग्रेस और JMM गठबंधन के तहत मुख्यमंत्री बने, लेकिन विश्वास मत हासिल करने में विफल रहने के कारण दो सप्ताह के भीतर इस्तीफा देना पड़ा।
दूसरा कार्यकाल (2008–09)
2008 में दोबारा मुख्यमंत्री बने, लेकिन छह महीने के भीतर उपचुनाव में जीत न मिलने के कारण पद छोड़ना पड़ा।
तीसरा कार्यकाल (2009–10)
दिसंबर 2009 में बीजेपी के समर्थन से तीसरी बार मुख्यमंत्री बने, लेकिन गठबंधन टूटने पर छह महीने में ही इस्तीफा देना पड़ा।
आपराधिक मामलों और कानूनी विवादों में फंसे शिबू सोरेन
शिबू सोरेन पर 1974 और 1975 में हत्या और भीड़ हिंसा से जुड़े कई गंभीर आरोप लगे। 2004 में कोयला मंत्री रहते हुए उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी हुआ, जिसके चलते उन्होंने पद से इस्तीफा दिया और एक महीने जेल में बिताया। 2006 में अपने सचिव की हत्या के मामले में दोषी पाए जाने पर फिर से इस्तीफा देना पड़ा। हालांकि 2007 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने उन्हें इस मामले में बरी कर दिया। 2008 और 2010 में अन्य मामलों से भी बरी हो गए।
हालिया राजनीतिक भूमिका और उत्तराधिकारी
स्वास्थ्य खराब होने के बावजूद शिबू सोरेन 2010 में JMM अध्यक्ष पद पर पुनः चुने गए और 2020 में राज्यसभा सदस्य बने। उन्होंने धीरे-धीरे अपने बेटे हेमंत सोरेन के लिए नेतृत्व का मार्ग प्रशस्त किया, जो वर्तमान में झारखंड के मुख्यमंत्री हैं। शिबू सोरेन का राजनीतिक जीवन संघर्ष, विवादों और उपलब्धियों से भरा रहा है। उन्होंने न केवल झारखंड राज्य के निर्माण में प्रमुख भूमिका निभाई, बल्कि तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में सेवा दी। हालांकि, आपराधिक मामलों ने उनके करियर को प्रभावित किया, लेकिन उन्होंने अपनी राजनीतिक पकड़ बनाए रखी और पार्टी के नेतृत्व को नई पीढ़ी तक पहुंचाया।
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