Ranchi News : झारखंड की राजनीति में सबसे सशक्त और प्रभावशाली राजनीतिक परिवार की बात करें तो शिबू सोरेन और उनका ‘सोरेन परिवार’ शीर्ष पर नजर आता है। यह वही परिवार है, जिसने न सिर्फ अलग झारखंड राज्य के आंदोलन का नेतृत्व किया, बल्कि राज्य की राजनीति की दशा-दिशा भी तय की।
शिबू सोरेन का विवाह 1 जनवरी 1962 को रूपी सोरेन से हुआ, जो वर्तमान में सरायकेला-खरसावां जिले के चांडिल की रहने वाली हैं। इस शादी ने एक ऐसे परिवार को जन्म दिया जो आने वाले दशकों में झारखंड की राजनीति का पर्याय बन गया। रूपी सोरेन ने शिबू सोरेन के संघर्षपूर्ण राजनीतिक जीवन के बीच पूरे परिवार को न सिर्फ संभाला, बल्कि उनमें नेतृत्व और संघर्ष की भावना भी भरी। ये गुण उन्हें अपनी सास सोनामणि सोरेन से विरासत में मिले थे।
Shibu Soren Tribute : दुर्गा सोरेन से शुरू हुई राजनीतिक विरासत
दंपती के तीन पुत्र – स्व. दुर्गा सोरेन, हेमंत सोरेन, बसंत सोरेन और एक पुत्री अंजनी सोरेन हैं।
स्व. दुर्गा सोरेन ने जामा विधानसभा सीट से 1995 और 2000 में विधायक बनकर झामुमो के केंद्रीय महासचिव के तौर पर अपनी पहचान बनाई। उनके असामयिक निधन (2009) के बाद उनकी पत्नी सीता सोरेन ने विरासत संभाली और जामा से तीन बार विधायक बनीं (2009, 2014, 2019)। 2024 में उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया, हालांकि गुरुजी शिबू सोरेन के प्रति उनका सम्मान आज भी बरकरार है।
Shibu Soren Tribute : हेमंत सोरेन: दो बार के मुख्यमंत्री
शिबू सोरेन के दूसरे पुत्र हेमंत सोरेन वर्तमान में झारखंड के मुख्यमंत्री हैं। पूर्व में सांसद भी रह चुके हैं। हेमंत सोरेन ने 2005 में राजनीति में कदम रखा था और 2009 में दुमका से पहली जीत दर्ज की। 2019 में उन्होंने दुमका और बरहेट दोनों सीटों से चुनाव जीतकर बरहेट सीट बरकरार रखी।
उनकी पत्नी कल्पना सोरेन वर्तमान में गांडेय से विधायक हैं। उनके दो पुत्र हैं – नितिल और विश्वजीत।
बसंत सोरेन: नई पीढ़ी का चेहरा
सोरेन परिवार के तीसरे बेटे बसंत सोरेन ने भी राजनीति में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज की है। वे वर्तमान में दुमका से विधायक हैं और पथ निर्माण मंत्री का पदभार भी संभाल चुके हैं। वे झारखंड छात्र मोर्चा और युवा मोर्चा के केंद्रीय अध्यक्ष भी रह चुके हैं।
अंजनी सोरेन: ओड़िशा में बढ़ाया परिवार का विस्तार
शिबू सोरेन की पुत्री अंजनी सोरेन की शादी ओड़िशा में हुई। पति देबानंद मरांडी के निधन के बाद अंजनी ने भी राजनीति में कदम रखा और ओड़िशा झामुमो की अध्यक्ष बनीं। वे मयूरभंज लोकसभा सीट से भाजपा के नबा चरण मांझी के खिलाफ 2024 में चुनाव लड़ीं। इसके पहले वे विधानसभा और जिला परिषद का चुनाव भी लड़ चुकी हैं।