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झारखंड विधानसभा नियुक्ति मामले में सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई, अदालत ने CBI से पूछा यह सवाल…

याचिका को सितंबर 2024 में हाईकोर्ट ने स्वीकार कर ली और आदेश दिया कि विधानसभा में नियुक्ति/पदोन्नति से जुड़ी कथित अनियमितताओं की प्रारंभिक जांच सीबीआई द्वारा की जाए।

by Reeta Rai Sagar
Supreme Court of India
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सेंट्रल डेस्कः लंबे समय से सीबीआई (CBI) और प्रवर्तन निदेशालय (ED) समेत देश की अन्य जांच एजेंसियों का इस्तेमाल किए जाने के आरोप लगते रहे हैं। इसी कड़ी में मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड विधानसभा से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए सीबीआई से सवाल किया। सुनवाई झारखंड विधानसभा में नियुक्तियों की जांच से जुड़े एक मामले में हुई। इसमें कोर्ट ने सीबीआई से सवाल किया कि राजनीतिक लड़ाइयां लड़ने के लिए क्यों उसका इस्तेमाल किया जा रहा है।

मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ झारखंड विधानसभा द्वारा दायर उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें झारखंड हाईकोर्ट के सितंबर 2024 के एक आदेश को चुनौती दी गई थी। उस आदेश में विधानसभा में नियुक्तियों और पदोन्नति में चल रही गड़बड़ी की जांच सीबीआई से कराने के निर्देश दिए गए थे। नवंबर 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी। झारखंड राज्य सरकार ने भी इस आदेश के खिलाफ अलग से विशेष अनुमति याचिका दाखिल की है।

स्वीकार नहीं किया जा सकता आवेदन : सीजेआई

मंगलवार को सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बीआर गवई ने कहा कि इस आवेदन को स्वीकार नहीं किया जा सकता। उन्होंने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू से पूछा कि आप अपनी राजनीतिक लड़ाइयों के लिए एजेंसी का इस्तेमाल क्यों करते हैं? हमने आपको कई बार कहा है। इससे पहले भी तमिलनाडु TASMAC मामले और कर्नाटक MUDA मामले में भी सीजेआई ने ईडी और सीबीआई से यही सवाल किया था कि उन्हें राजनीतिक लड़ाइयों के लिए क्यों इस्तेमाल किया जा रहा है।

इस दौरान सीनियर एडवोकेट और कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने झारखंड विधानसभा की अगुवाई करते हुए कहा था कि यह चौंकाने वाला है कि जब भी कोई मामला आता है, CBI पहले से ही अदालत में मौजूद रहती है। इसके जवाब में सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि पर इस मामले में ऐसा नहीं है। सिब्बल ने आगे कहा कि केवल यहाँ ही नहीं, कई मामलों में, पश्चिम बंगाल में भी, माननीय न्यायालय ने यह देखा है।

क्या है मामला

एक सामाजिक कार्यकर्ता शिव शंकर शर्मा ने झारखंड हाईकोर्ट में पीआईएल दाखिल कर झारखंड अधिकारियों को निर्देश देने की मांग की थी कि वे 2018 में तत्कालीन राज्यपाल द्वारा तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष को दिए गए 30 संदर्भ बिंदुओं को लागू करें। ये बिंदु विधानसभा में अवैध नियुक्तियों की जांच आयोग से संबंधित थे। शर्मा ने आगे यह भी मांग की थी कि इन कथित अवैध नियुक्तियों की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो से कराई जाए। शर्मा की याचिका को सितंबर 2024 में हाईकोर्ट ने स्वीकार कर ली और आदेश दिया कि विधानसभा में नियुक्ति/पदोन्नति से जुड़ी कथित अनियमितताओं की प्रारंभिक जांच सीबीआई द्वारा की जाए।

हाईकोर्ट की ओर से जारी आदेश में स्पष्ट रूप से कहा गया कि मामला झारखंड विधानसभा में अवैध नियुक्तियों से जुड़ा है, जो कथित रूप से तत्कालीन अध्यक्ष समेत राज्य के उच्च पदाधिकारियों की सहमति से हुई है। ऐसे में यह उचित होगा कि जांच एक स्वतंत्र एजेंसी जैसे सीबीआई को सौंपी जाए। चूंकि यह मामला राज्य के उच्चाधिकारियों से जुड़ा हैं, इसलिए यदि जांच राज्य पुलिस करती है, तो निष्पक्षता पर सवाल उठ सकते है। इसलिए जनता के विश्वास को बनाए रखने के लिए स्वतंत्र एजेंसी द्वारा जांच जरूरी है।

क्या है झारखंड विधानसभा की याचिका में

अब इसी आदेश के खिलाफ झारखंड विधानसभा ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है। याचिका में कहा गया है कि हाईकोर्ट ने बिना ठोस और विश्वसनीय कारण बताए यह मान लिया कि राज्य की जांच एजेंसी इस मामले की जांच करने योग्य नहीं है। इस मामले में विधानसभा का तर्क है कि सीबीआई को प्रथम जांच एजेंसी के रूप में नियुक्त करना न्यायसंगत नहीं है।

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