नई दिल्ली – भारत से अमेरिका भेजे गए कम से कम 15 आम की खेपों को अमेरिकी अधिकारियों ने प्रवेश देने से इनकार कर दिया है। इसके चलते भारतीय निर्यातकों को अनुमानित तौर पर करीब 4 करोड़ रुपये (लगभग 5 लाख डॉलर) का नुकसान उठाना पड़ सकता है। अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि इन खेपों के साथ भेजे गए इरैडिएशन (irradiation) प्रक्रिया से जुड़े दस्तावेजों में गड़बड़ी पाई गई, जिसके कारण इन्हें अमेरिका में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई।
अमेरिका में खेपों को नष्ट करने का निर्देश
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, ये सभी खेप हवाई मार्ग से अमेरिका भेजी गई थीं। जब लॉस एंजेलिस, सैन फ्रांसिस्को और अटलांटा के एयरपोर्ट्स पर आमों की खेपें पहुंचीं, तब अमेरिकी कस्टम्स और बॉर्डर प्रोटेक्शन ने इन्हें रोक दिया। अधिकारियों ने निर्यातकों को दो विकल्प दिए: या तो इन खेपों को अमेरिका में नष्ट किया जाए या फिर भारत वापस भेजा जाए।
चूंकि आम एक नाशवंत फल है और उसे वापस भारत लाना न केवल बेहद महंगा है बल्कि इसमें समय भी अधिक लगता है, इसलिए अधिकांश निर्यातकों ने खेप को अमेरिका में ही नष्ट करने का निर्णय लिया।
गलती कहां हुई?
इस पूरे मामले की जड़ इरैडिएशन प्रक्रिया से जुड़े कागज़ों की त्रुटि बताई जा रही है। इरैडिएशन वह प्रक्रिया होती है जिसमें फलों को एक निश्चित रेडिएशन प्रक्रिया से गुजारकर उनमें मौजूद कीड़ों को मारा जाता है और उनकी शेल्फ लाइफ को बढ़ाया जाता है। भारतीय आमों के अमेरिका निर्यात से पहले यह प्रक्रिया मुंबई के पास नवी मुंबई स्थित एक अधिकृत इरैडिएशन सेंटर में होती है, जो अमेरिकी कृषि विभाग (USDA) के पर्यवेक्षण में संचालित होता है।
जानकार सूत्रों के मुताबिक, इन आमों को 8 और 9 मई को इस प्रक्रिया से गुजारा गया था। इसके बावजूद, जब खेप अमेरिका पहुंची, तो वहां के अधिकारियों ने कहा कि PPQ203 नामक जरूरी फॉर्म को गलत तरीके से जारी किया गया था। यही फॉर्म प्रमाणित करता है कि फल इरैडिएशन प्रक्रिया से सही ढंग से गुजरे हैं और कीट मुक्त हैं।
निर्यातकों में रोष
नाम न छापने की शर्त पर दो निर्यातकों ने बताया कि गलती इरैडिएशन सेंटर की थी, लेकिन इसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ रहा है। उनका कहना है कि सभी दस्तावेज USDA अधिकारी की निगरानी में तैयार होते हैं, और उसी अधिकारी की मंजूरी के बाद ही खेप अमेरिका के लिए रवाना की जाती है।
निर्यातकों ने यह भी स्पष्ट किया कि आमों की गुणवत्ता में कोई कमी नहीं थी, न ही किसी खेप में कीड़े या बीमारी पाई गई। पूरा मामला सिर्फ दस्तावेजों की तकनीकी गड़बड़ी तक सीमित है।
अमेरिका ने खारिज की जिम्मेदारी
अमेरिकी कृषि विभाग द्वारा जारी एक नोटिफिकेशन में कहा गया है कि पीपीक्यू203 फॉर्म की त्रुटियों के कारण ही आम की खेप को रोका गया और अमेरिका सरकार इस नुकसान के लिए किसी भी प्रकार की जिम्मेदारी नहीं लेगी, न ही इस बारे में कोई उपाय किया जाएगा।
आगे क्या?
इस घटनाक्रम के बाद भारत के निर्यातकों और इरैडिएशन प्रक्रिया से जुड़े अधिकारियों में खलबली मच गई है। निर्यातकों ने मांग की है कि इरैडिएशन सेंटर और संबंधित अमेरिकी अधिकारियों की जवाबदेही तय की जाए, ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं से बचा जा सके।
संभावित असर: यह घटना भारतीय आमों के अमेरिकी बाजार में निर्यात पर नकारात्मक असर डाल सकती है, खासकर ऐसे समय में जब अल्फांसो और केसर जैसे प्रीमियम आम की मांग अपने चरम पर होती है।