नई दिल्ली : नवरात्रि का यह दूसरा दिन देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा का है। माता का नाम “ब्रह्मचारिणी” है, जिसका अर्थ है तपस्या करने वाली। यह नाम हमें उनके तप और साधना के प्रति समर्पण की याद दिलाता है। माता की पूजा करने से आत्मविश्वास, आयु, आरोग्य और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। उन्हें ब्राह्मी भी कहा जाता है, और उनकी आराधना से मनुष्य अपने लक्ष्य पर स्थिर रह सकता है।
माता का नाम और उनके तप की कहानी
मां दुर्गा ने पार्वती के रूप में पर्वतराज हिमालय में जन्म लिया। उन्होंने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया। इस तप के कारण ही उनका नाम “ब्रह्मचारिणी” पड़ा। वर्षों तक उन्होंने निराहार रहकर भगवान शिव को प्रसन्न किया, और इसी तप का प्रतीक हैं मां ब्रह्मचारिणी।
माता का स्वरूप
माता ब्रह्मचारिणी का स्वरूप अत्यंत सुंदर और भव्य है। वे श्वेत वस्त्र धारण किए हुए कन्या के रूप में प्रकट होती हैं। उनके एक हाथ में अष्टदल की माला और दूसरे हाथ में कमंडल होता है। यह स्वरूप साधारण और शांति का प्रतीक है। वे अपने भक्तों को ज्ञान और विद्या देकर उन्हें विजय की ओर ले जाती हैं।
पूजा विधि और भोग
नवरात्रि के दूसरे दिन माता को चीनी का भोग अर्पित करने का विधान है। मान्यता है कि चीनी का भोग अर्पित करने से भक्त की आयु लंबी होती है और स्वास्थ्य में सुधार आता है। यह भोग मां के कठिन तप की याद दिलाता है और हमें संघर्ष करने की प्रेरणा देता है।
पीले रंग का महत्व
इस दिन पीले रंग के वस्त्र पहनना चाहिए, क्योंकि यह माता ब्रह्मचारिणी को प्रिय है। पीले रंग के फूल, फल और वस्त्र अर्पित करने से विशेष लाभ मिलता है। भारतीय संस्कृति में पीला रंग ज्ञान, उत्साह और बुद्धि का प्रतीक है।
इस प्रकार, नवरात्रि के दूसरे दिन देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा हमारे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और प्रेरणा लाती है।