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NSUI : कन्हैया कुमार के बहाने एक तीर से तीन निशाने लगाने में जुटी कांग्रेस : JNU छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष को एनएसयूआई का प्रभारी बनाने के क्या हैं मायने-मतलब, बिहार की किस सीट पर लगी निगाह

by Rakesh Pandey
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सेंट्रल डेस्क, नई दिल्ली : जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार का करीब दो वर्षों के इंतजार के बाद राजनीतिक पुनर्वास हो गया। कांग्रेस ने उन्हें NSUI का इंचार्ज बनाया गया है। माना जा रहा है कि कन्हैया कुमार को नयी जिम्मेदारी देकर पार्टी ने एक तीर से तीन निशाने साधने का प्रयास किया है।

एक तरफ जहां पार्टी के इस कदम से देश के अधिकांश राज्यों में लगभग निष्क्रिय हो चुकी एनएसयूआइ को नये सिरे से जीवित करने का लक्ष्य रखा गया है। वहीं बिहार और देश की राजनीति में भी इसके बहुत सारे मायने-मतलब हैं। पूरे मामले पर क्या है राजनीतिक विश्लेषकों की राय है:-

पहला : निष्क्रिय हो चुकी एनएसयूआइ में फूंकी जायेगी जान

राजनीति शास्त्र के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. राजेंद्र भारती के अनुसार कन्हैया जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष रह चुके हैं। उनमें अपने जोशीले भाषण के जरिये युवाओं में उत्साह व जज्बा पैदा करने का कौशल है। सबको साथ लेकर चलने का हुनर भी है। इस हुनर का इस्तेमाल कांग्रेस अपनी निष्क्रिय हो चुके छात्र इकाई एनएसयूआइ को नये सिरे से जीवित करने के लिए करेगी। युवाओं के बीच कन्हैया कुमार की लोकप्रियता इसमें काफी कारगर साबित हो सकती है।

दूसरा : तेजस्वी का इगो भी किया सेटिस्फाइड

कन्हैया कुमार व तेजस्वी यादव के बीच पुरानी राजनीतिक प्रतिस्पर्धा है। ऐसा माना जाता है कि तेजस्वी यादव किसी भी सूरत में कन्हैया कुमार को बिहार की राजनीति में बड़ा चेहरा नहीं बनने देना चाहते हैं। पिछले महीने बिहार कुम्हार प्रजापति समन्वय समिति की ओर से आयोजित कार्यक्रम में जब कन्हैया कुमार की इंट्री हुई, तो पूर्व से ही कार्यक्रम में आने की सहमति प्रदान करने वाले तेजस्वी वहां नहीं पहुंचे।

ऐसा कहा जाता है कि वह कन्हैया कुमार के साथ मंच भी साझा नहीं करना चाहते हैं। कन्हैया कुमार के साथ इसी अदावत के कारण 2019 के लोकसभा चुनाव में जब सीपीआइ की टिकट पर बेगूसराय से कन्हैया कुमार चुनावी मैदान में उतरे तो तेजस्वी ने उनके सपनों को कुचलने के लिए वहां से अपने उम्मीदवार तनवीर हसन को मैदान में उतार दिया।

अगर राष्ट्रीय राष्ट्रीय जनता दल चाहती तो वह तनवीर हसन को उनकी मुफीद सीट मुंगेर से भी चुनाव लड़ा सकती थी। इन सबके बीच जब 2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्षी एकता की कवायद शुरू हुई है तो कांग्रेस ने एक सोची समझी रणनीति के तहत कन्हैया कुमार को बिहार की राजनीति से अलग रखा। अब विपक्षी एकता के जहाज में ड्राइविंग सीट पर बैठी कांग्रेस भूमिहार बहुल बेगूसराय सीट कांग्रेस के लिए मांगेगी।

वहां से कन्हैया कुमार को प्रत्याशी बनायेगी। इससे आरजेडी को एक तीर से दो निशाना साधने का मौका मिल जाएगा। एक तो तेजस्वी को चुनौती देने वाले कन्हैया बिहार की राजनीति से बाहर हो जाएंगे और दूसरा कि इसी बहाने कांग्रेस को भी आरजेडी खुश कर सकेगी। इससे तेजस्वी बिहार विधानसभा में विपक्ष का इकलौता युवा चेहरा रहेंगे। उनका इगो भी सेटिस्फाइड होगा।

तीसरा : युवाओं के बीच सकारात्मक संदेश
चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के जब कांग्रेस में शामिल होने की अटकलें तेज थी, उस वक्त विभिन्न सर्वे में यह बात भी उभर कर सामने आयी थी कि कांग्रेस में वर्षों से पदों पर काबिज नेता युवाओं को आगे बढ़ने नहीं देना चाहते हैं। बदलाव के मूड में दिख रही कांग्रेस ने कहीं ना कहीं इस बात को महसूस भी किया। यही कारण है कि पार्टी को रिवाइव करने के लिए सीडब्ल्यूसी में यह तय किया गया कि अधिक से अधिक युवाओं को पार्टी में ना सिर्फ शामिल किया जायेगा, बल्कि उन्हें सम्मानजनक पद भी दिया जायेगा।

कन्हैया कुमार को एनएसयूआइ का राष्ट्रीय अध्यक्ष पद देकर कांग्रेस ने युवाओं के बीच यह संदेश देने का प्रयास किया है।

जानें क्या है NSUI
नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (NSUI) कांग्रेस पार्टी की स्टूडेंट विंग है। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी ने 9 अप्रैल 1971 को इसकी नींव रखी थी। केरल छात्र संघ और पश्चिम बंगाल राज्य छात्र परिषद का विलय करके इसे बनाया गया था। कन्हैया से पहले रुचि गुप्ता NSUI की प्रभारी थी।

हालांकि उन्‍होंने करीब 2.5 साल पूर्व अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। तब से यह पद अब तक खाली था। NSUI का सदस्य बनने के लिए पहली शर्त यह है कि सदस्य बनने वाले व्यक्ति की आयु 27 वर्ष से कम हो और वह छात्र हो। उसे भारतीय नागरिक होने के साथ ही किसी राजनीतिक संगठन का उसे हिस्सा नहीं होना चाहिए। इसके अलावा किसी भी आपराधिक मामले में उसे कोर्ट द्वारा दोषी नहीं ठहराया गया हो।

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