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जहां विराजैं देव

by The Photon News Desk
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हम एक लंबी यात्रा के बाद दिल्ली से रुद्रप्रयाग पहुंचे। हम लोगों ने होटल लिया और कुछ देर तक आराम किया। रात को खाने के बाद कुछ लोगों ने हमें रुद्रप्रयाग और इसके दायरे में आने वाली आसपास की जगहों के बारे में बताया जहां हम घूमने जा सकते थे और इसकी शुरुआत रुद्रप्रयाग से हुई।

अलकनंदा और मंदाकिनी नदियों के संगम पर स्थित इस स्थान के बारे में पौराणिक मान्यता है कि यहां भगवान शिव रुद्रनाथ के रुप में यहां विराजमान हैं। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार अलकनंदा और मंदाकिनी दोनों नदियों को बहनों की संज्ञा दी गई है, कहा जाता है कि अलकनंदा गौरवर्ण व मन्दाकिनी श्याम वर्ण की थी जिसका अंतर आज भी दोनों नदियों के पानी के रंगों में देखने को मिलता है ।

पौराणिक मान्यताओं के संदर्भ में, स्कन्दपुराण केदारखण्ड से प्राप्त वर्णन के अनुसार महाभारत काल में पांडवों ने युद्ध विजय के उपरान्त अपने कौरव भाईयों की हत्या के पश्चाताप हेतु अपने राज्य का त्याग करके मंदाकिनी नदी के तट पर केदारनाथ पहुंच गये तथा यहीं से स्वर्गारोहिणी के द्वारा स्वर्ग को प्रस्थान किया।

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केदारखण्ड के अनुसार इसी स्थान पर महर्षि नारद ने भगवान शिव की, एक पैर पर खड़े रहकर उपासना की थी जिनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने महर्षि नारद को रुद्र रुप में आकर दर्शन दिये थे। यही वह स्थान है जहां महर्षि नारद ने रुद्र रुप भगवान से संगीत की शिक्षा ली थी और यहीं पर भगवान शिव ने उन्हें वीणा प्रदान की थी।

इस स्थान पर शिव और माता जगदम्बा के मन्दिर हैं जिनका बहुत बड़ा धार्मिक महत्व है। उत्तराखंड के पंच प्रयागों में से एक रुद्रप्रयाग का भी अपना ही एक विशिष्ट महत्व है। इसका इतिहास बहुत ही पुराना और समृद्ध है।

इस जिले की स्थापना चमोली, टिहरी और पौड़ी जनपद के कुछ हिस्सों को लेकर 1997 को हुई थी, जिसमें चमोली जिले के पूरे अगस्त्यमुनि व उखीमठ विकासखण्ड तथा कुछ हिस्सा पोखरी और कर्णप्रयाग विकासखण्ड का लिया गया, टिहरी जिले से जखोली एवं कीर्तिनगर विकासखण्ड का कुछ हिस्सा, पौड़ी जिले से खिर्सू विकासखण्ड का कुछ हिस्सा लिया गया तथा जनपद का मुख्यालय रुद्रप्रयाग नगर को बनाया गया।

हिमालय चार धाम यात्रा में रुद्रप्रयाग का अत्यधिक महत्व इसलिए भी है क्योंकि बद्रीनाथ एवं केदारनाथ धाम की यात्रा हेतु रास्ते अलग-अलग यहीं से होते हैं। यह पूरा क्षेत्र विशाल प्राकृतिक सौंदर्य, ताल, ग्लेशियर व धार्मिक महत्व के स्थानों से परिपूर्ण है । जिले की भौगोलिक स्थिति विविधतापूर्ण है। जिसका असर ऊंचाई के साथ-साथ तापमान पर भी पड़ता है। ऊंचाई वाले स्थानों पर सर्दियों में जमकर हिमपात होता है। अलकनंदा तथा मंदाकिनी नदियां यहां की मुख्य नदियां हैं। मंदाकिनी नदी केदारनाथ पर्वत शिखर पर स्थित चोराबरी ग्लेशियर से निकलकर ढलानों से बहते हुए यहीं पर अलकनन्दा नदी से मिलती है।

जंगलों में मानवों के बढ़ते हुये हस्तक्षेप को देखते हुये वन तथा वन्य जीवों के संरक्षण हेतु पूरे प्रदेश में कई तरह की परियोजना देखने को मिलती हैं।

केदारनाथ वन्य जीव अभ्यारण्य उन्हीं परियोजनाओं का एक अहम हिस्सा है जो जिले के उत्तर में स्थित है। इस वन्य जीव अभ्यारण्य में हिम तेन्दुआ, भूरा भालू, भरल, कस्तूरी मृग, काला भालू तथा पक्षियों में मोनाल, तीतर, चकोर तथा बर्फ में पाये जाने वाले कबूतर मिलते हैं। इसके अलावा हमें इस जनपद में आने वाली उन तमाम महत्वपूर्ण जगहों की भी जानकारी मिली जहां लोग जाने की इच्छा रखते हैं। जैसे कि अगस्तमुनि, गुप्तकाशी, सोनप्रयाग, खिरसू, गौरीकुंड, देवरियाताल, चोपता आदि।

रुद्रप्रयाग से अगस्त्यमुनि की दूरी 18 किलोमीटर है। यह समुद्र तल से 1000 मीटर की ऊंचाई पर मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित है। यह वही स्थान है जहां ऋषि अगस्त्य ने कई वर्षों तक तपस्या की थी। इस मंदिर का नाम अगस्तेश्वर महादेव ने ऋषि अगस्त्य के नाम पर रखा था। बैसाखी के अवसर पर यहां बहुत ही बड़ा मेला लगता है। यहां दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं और अपने इष्ट देवता से प्रार्थना करते हैं।

इसी जिले में स्थित है गुप्तकाशी। लोग कहते हैं कि गुप्तकाशी का वही महत्व है जो महत्व काशी का है। यहां गंगा और यमुना नदियां आपस में मिलती है। ऐसा माना जाता है कि महाभारत के युद्ध के बाद पांडव भगवान शिव से मिलना चाहते थे और उनसे आशीर्वाद प्राप्‍त करना चाहते हैं। लेकिन भगवान शिव पांडवों से मिलना नहीं चाहते थे इसलिए वह गुप्तकाशी से केदारनाथ चले गए।

इस जगह की ऊंचाई अगस्तमुनि से काफी ज्यादा है। यह एक स्‍तूप नाला पर स्थित है जो कि ऊखीमठ के समीप स्थित है। कुछ स्‍थानीय निवासी इसे राणा नल के नाम से बुलाते हैं। इसके अलावा पुराना विश्वनाथ मंदिर, अराधनेश्रवर मंदिर और मणिकारनिक कुंड गुप्तकाशी के प्रमुख आकर्षण केंद्र है।

सोनप्रयाग की ऊंचाई और भी बढ़ जाती है। यह केदारनाथ के प्रमुख मार्ग पर स्थित है। सोन प्रयाग जिले के प्रमुख धार्मिक स्‍थलों में से एक है। ऐसा कहा जाता है कि सोन प्रयाग के इस पवित्र पानी को छू लेने से बैकुंठ धाम पंहुचने में मदद मिलती है। सोनप्रयाग से केदारनाथ की दूरी 19 किलोमीटर है।

सोनप्रयाग वही स्‍थान है जहां भगवान शिव और पार्वती का विवाह हुआ था। सोनप्रयाग से त्रियुगीनारायण की दूरी बस द्वारा 14 किलोमीटर है और इसके बाद पांच किलोमीटर पैदल यात्रा करनी पड़ती है। कुछ सैलानी जो अपना समय एकांत और शांत जगह पर बिताना चाहते हैं उनके लिए खिरसू बहुत ही आदर्श जगह है। इस जगह पर दूर-दूर तक बस बर्फ से ढंके पर्वत ही पर्वत दिखाई देते हैं। यह जगह हिमालय के मध्‍य स्थित है। इसी कारण यह जगह पर्यटकों को अपनी ओर अधिक आकर्षित करती है। इसके अलावा यहां से कई अन्‍य जाने-अनजाने शिखर दिखाई पड़ते हैं।

इस जगह पर आकर गौरीकुंड देखने की इच्छा हर सैलानी के मन में रहती है। सोनप्रयाग से गौरीकुंड की दूरी 5 किलोमीटर है। केदारनाथ मार्ग पर गौरीकुंड ही अंतिम बस स्‍टेशन है। केदारनाथ में प्रवेश करने के बाद लोग यहां पूल पर स्थित गर्म पानी से स्‍नान करते हैं। इसके बाद गौरी देवी मंदिर दर्शन के लिए जाते हैं। यह वही स्‍थान है जहां माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए तपस्या की थी।

हमने इतनी सारी जगहों की जानकारी तो इकठ्ठा कर ली लेकिन सभी जगहों पर जाना संभव नहीं था। इसलिए सोचा क्यों ना सिर्फ उन जगहों की बात की जाये जहां जाना है। सबसे पहले मेरा मन चोपता जाने का था क्योंकि इस बारे में हमने पहले से ही पढ़ रखा था। सबसे पहले मैं चोपता गया उसके बाद सभी प्रमुख जगहों की यात्रा की जोकि अभी तक मेरी स्मृतियों में ताजा है।

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