क्या आपने कभी जानने की कोशिश की है कि पक्षियों से जुड़े आँकड़े और तथ्य कहाँ से आते हैं? कैसे मालूम चलता है कि कोई पक्षी लुप्त होने की कगार पर पहुँच गयी है? किसी की संख्या में उम्मीद से ज्यादा बढ़ोत्तरी हो रही है। किस पक्षी के बारे में ज्यादा चिंता किये जाने की जरुरत है और किसके बारे में बेफिक्र रहा जा सकता है। दरअसल यह सब जिस तरीके से संभव होता है वह अपने आप में खासा दिलचस्प और हैरतंगेज है। पक्षी प्रेमियों का अपना एक नेटवर्क है जो सोशल मीडिया के अनेक प्लेटफार्म से जुड़े होने के साथ-साथ कई एप्स के जरिये एक मजबूत नेटवर्क का निर्माण करते हैं। उस नेटवर्क में शामिल होने के बाद पक्षियों के बारे में थोड़ी भी दिलचस्पी आपको हो तो साल भर के भीतर आप अपने आस-पड़ोस के पक्षियों की पूरी दुनिया से साल भर में ना केवल परिचित हो जायेंगे बल्कि आप खुद पक्षियों के डेटाबेस को समृद्ध करने की स्थिति में आ जायेंगे।
ऐसे कुछ एप्स और सोशल मीडिया प्लेटफार्म के बारे में आज हम जानने की कोशिश करेंगे। पक्षियों के मामले में जो दो सबसे काम के ऐप गूगल के प्ले स्टोर में उपलब्ध हैं उनमें से एक है, मर्लिन और दूसरा है ई बर्ड। मर्लिन पक्षियों के शिनाख्त के साथ-साथ अन्य तमाम जरुरी जानकारी मुहैया कराता है। मसलन् आपने किसी चिड़िया की चहचहाहट रिकार्ड की है तो उस आवाज के जरिये आप मर्लिन के जरिये उसकी पहचान कर सकते हैं। पक्षी की क्लिक आपके पास है तो उसे अपलोड करके उस पक्षी की पूरी जानकारी पाई जा सकती है।
पक्षी के गतिविधियों को आपने आब्जर्व कर रखा है तो उसके जरिये भी इस ऐप की सहायता से उसकी पहचान की जा सकती है। इसके लिए करना इतना भर होता है कि आप जिस राज्य में पक्षियों को आब्जर्व कर रहे हैं। उस राज्य के पक्षियों की जानकारी वाला फाईल डाउनलोड करना होता है। उस फाईल से आपको आपके राज्य में उपलब्ध पक्षियों की पूरी सूची उपलब्ध हो जाती है। 50 के आस-पास पक्षी तो आप बस थोड़ी सजगता से अपने पास-पड़ोस में देख सकते हैं। उसके बाद आपको उन पक्षियों के हैबिटेट की जानकारी जुटा कर जंगल, पहाड़, मैदान, कछार आदि में तलाशना होता है। यकीन मानिये एक बार इसकी आदत हो जाये तो आप इसको जीने लगते हैं।
ज्यों-ज्यों पक्षियों की नयी-नयी प्रजातियों से आप रुबरु होने लगते हैं आपका उत्साह बढ़ने लगता है। शुरु में यकीन करना मुश्किल होता है कि इतने किस्म के पक्षी हमारे आस-पास मौजूद हैं लेकिन एक आम आदमी एकाध दर्जन पक्षियों के बारे में ही जागरुक होता है।
मर्लिन एप की मदद से आप किसी भी पक्षी की पूरी कुंडली जान सकते हैं। मतलब उस पक्षी से संबंधित बुनियादी जानकारी के अलावा वे संसार के किन हिस्सों में पाये जाते हैं? कहाँ प्रजनन करते हैं? कहाँ माइग्रेट करते हैं? पूरे साल भर की उनकी गतिविधियों का एक आकलन वहाँ मौजूद रहता है। और यह इतना सटीक है कि इससे इतर हट कर किसी भू-भाग में जब कोई नया पक्षी देखने भर को मिलता है तो सोशल मीडिया के समूहों में बकायदा इस पर चर्चा होने लगती है। उसकी मौजूदगी को लेकर अनुमान लगाये जाने लगते हैं और उसको आखिरी बार कब देखा गया था जैसी जानकारियाँ तैरने लगती हैं।
एक दूसरा एप है-इ बर्ड। इस एप के जरिये दुनिया भर के पक्षी प्रेमी अपने पक्षी अवलोकन की सूची इसमें अपलोड करते रहते हैं। इसी से पक्षियों की दुनिया का वह कमाल का आँकड़ा सामने आता है, जिसके जरिये पक्षियों के वितरण, माइग्रेशन, मौजूदगी, संख्या आदि का ब्यौरा पक्षी प्रेमियों को उपलब्ध हो पाता है। इसकी फंक्शनिंग कमाल की है। यह ओपन सोर्स की तरह है। मर्लिन एक ओपन सोर्स है, जिससे कोई भी जानकारी ली जा सकती है तो इ बर्ड में आप अपनी चेकलिस्ट लगातार अपलोड करते रह सकते हैं।
यह जीपीएस के जरिये आपके पूरे मूवमेंट को कैप्चर करता है। और आपके पक्षियों के आब्जर्वेशन के आधार पर उस इलाके के पक्षियों के हॉटस्पॉट की पहचान करता है। अगर आपके किसी इंट्री पर उसे संदेह होता है तो वह अलग से आपको उस पर कमेंट के जरिये डिटेल लिखने को कहता है। एक सामान्य पक्षी प्रेमी जब पक्षियों के अवलोकन के बाद अपनी सूची इस एप में अपलोड करता है। तो भले आपने कौवा, कबूतर, मैना जैसे सामान्य पक्षियों का अवलोकन करके ही क्यों ना वह सूची अपलोड की हो। साल के अंत में आपके इस छोटे योगदान को भी अलग से सर्टिफिकेट के जरिये वह नवाजती है। इससे हुआ भर इतना है कि भारत के 735 जिलों में अब इ बर्ड का नेटवर्क है जो दो जिले अब तक इनके नेटवर्क से बाहर थे उनमें एक अरुणाचल प्रदेश का क्रा दादी जिला था और दूसरा नागालैंड का हुएनसांग जिला दोनों इसी नवम्बर में इ बर्ड के नेटवर्क से जुड़ गये हैं। मतलब पक्षियों को प्यार और उनकी परवाह करनेवाले लोग इसके जरिये एक सूत्र से बंधे हैं। फेसबुक, इंस्टाग्राम, एक्स और व्हाट्सएप के जरिये भी पक्षियों को जानने समझने की एक अद्भुत दुनिया आबाद हो रखी है।
इसमें ना केवल फोटोग्राफर्स, बर्ड वाचर्स, ओरनिथोलॉजिस्ट बल्कि और भी अलग-अलग रुचियों के लोगों की पूरी श्रृंखला मौजूद है। मतलब आप किसी पक्षी के लिए किसी अनजाने भूभाग की यात्रा कर रहे हों तो उसकी उपलब्धता के इलाके से लेकर उस क्षेत्र के सबसे जानकार गाईड तक का पता चुटकी बजाते आपको उपलब्ध हो जाता है। इस दुनिया में दाखिल होना एक समानांतर दुनिया में दाखिल होना है जो हमारे आस-पास ही है लेकिन हम उसके बारे में बहुत कम जानते हैं। पक्षियों को जानना अपनी परिवेश को जानना है ,अपने मनुष्य होने को जानना है। मनुष्य होने के नाते अन्य जीवों के प्रति जो हमारी जवाबदेही उसे जानना है। वक्त मिले तो इस दुनिया का हिस्सा बन कर देखिये जिंदगी बदल सी जायेगी।
राहुल सिंह
एसोसिएट प्रोफेसर, विश्व भारती, शांति निकेतन