Ranchi: अंग्रेजों के शोषणकारी शासन और जमींदारी प्रथा के खिलाफ झारखंड की धरती से शुरू हुए ऐतिहासिक हूल आंदोलन की स्मृति में आज पूरे राज्य में हूल दिवस श्रद्धा और गर्व के साथ मनाया गया। यह दिन न सिर्फ इतिहास की एक गूंज है, बल्कि आदिवासी अस्मिता और संघर्ष का प्रतीक भी है।
1855 में भोगनाडीह से उठी आज़ादी की आवाज
साहिबगंज जिले के भोगनाडीह गांव से 1855 में प्रारंभ इस जनआंदोलन का नेतृत्व वीर सिदो-कान्हू, चांद-भैरव और फूलो-झानो ने किया था। पारंपरिक हथियारों से लैस इन वीरों ने ब्रिटिश हुकूमत की नींव हिला दी थी। यह आंदोलन सिर्फ विद्रोह नहीं, बल्कि ईमानदारी, आत्मसम्मान और अस्मिता की लड़ाई थी, जिसने झारखंड की धरती को इतिहास में विशेष पहचान दी।
रांची के सिदो-कान्हू पार्क में हुआ श्रद्धांजलि समारोह
हूल दिवस के अवसर पर रांची स्थित सिदो-कान्हू पार्क में श्रद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस समारोह में आजसू पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष सुदेश महतो ने भाग लिया। उन्होंने वीर सिदो-कान्हू की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें नमन किया।
सुदेश महतो ने इस मौके पर कहा—
“हूल आंदोलन केवल एक विद्रोह नहीं था, यह हमारी ईमानदारी, आत्मसम्मान और अस्तित्व की रक्षा के लिए लड़ी गई सबसे बड़ी लड़ाई थी। यह आदिवासी समाज के स्वाभिमान और पहचान का प्रतीक बना।”
राजनीतिक दलों और संगठनों ने दी श्रद्धांजलि
हूल दिवस पर राज्य के विभिन्न राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने भी वीर क्रांतिकारियों को श्रद्धांजलि अर्पित की। पूरे राज्य में कई स्थानों पर माल्यार्पण, श्रद्धांजलि सभा और स्मृति आयोजन किए गए।
इस अवसर पर झारखंड के लोगों ने एक स्वर में हूल आंदोलन के नायकों को याद कर उनके बलिदान को नमन किया, और यह संदेश दिया कि उनकी कुर्बानी को कभी भुलाया नहीं जाएगा।
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