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बिहार में धूमधाम से मनाया जा रहा सतुआन, आज से दो दिन मिथिला में जुड़शीतल का त्योहार

जुड़शीतल के दिन जल की पूजा की जाती है। शीतला माता से शीतलता बनाए रखने की कामना की जाती है।

by Reeta Rai Sagar
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Satuan 2025 : पटना : बिहार में नववर्ष की शुरूआत सतुआन पर्व के साथ होती है और इसी के साथ मिथिलांचल में दो दिवसीय जुड़-शीतल त्योहार का आगाज हो गया है। इस त्योहार के पहले दिन 14 अप्रैल को सतुआन तो दूसरे दिन 15 अप्रैल को धुरखेल होता है। जिस प्रकार से छठ पूजा सूर्य देव की उपासना की जाती है, उसी प्रकार जुड़ शीतल जल की पूजा का पर्व होता है। मिथिला समेत कई इलाकों में इसे नववर्ष के तौर पर मनाया जाता है। जुड़शीतल के दिन जल की पूजा की जाती है। शीतला माता से शीतलता बनाए रखने की कामना की जाती है।

शीतलता के इस लोकपर्व का प्रकृति से सीधा संबंध

बिहार समेत भारत के अधिकांश त्योहार प्रकृति को समर्पित हैं। छठ जैसे सूर्य की आराधना है, वैसे ही जुड़ शीतल जल की आराधना है। इस दौरान मिथिला में चने की नई पैदावार होती है, जिससे सत्तू और बेसन तैयार किए जाते है। गर्मी के मौसम में लोग सत्तू और बेसन का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करते हैं, क्योंकि इससे बने व्यंजन जल्दी खराब नहीं होते और शरीर को शीतलता प्रदान करते है। इसलिए जुड़ शीतल पर्व के पहले दिन सतुआन में सत्तू की कई चीजें बनाई जाती हैं। न केवल मिथिला में बल्कि असम, बंगाल, ओडिशा में भी आज का पकाया हुआ भात कल खाया जाता है। इसलिए आज पूरे दिन महिलाएं खास तौर पर बेसन और चावल से बने व्यंजन बनाती हैं। इस दिन प्याज-लहसुन का सेवन नहीं किया जाता है।

क्या होता है सतुआन के दिन

मिथिला के घर-घर में आज लोग तुलसी के पेड़ को नियमित जल देने के लिए एक घड़ा बांध देते हैं। ऐसा करने के पीछे की मान्यता है कि इससे पितरों की प्यास बुझ जाती है। इसके अलावा इस दिन कई घरों में कुलदेवता की पूजा की जाती है और उन्हें आटा, सत्तू, शीतल पेय, आम्रफल और पंखा चढ़ाया जाता है। आज कुलदेवी के पास पानी से भरा लोटा रखा जाता है, इस पानी को अगले दिन मां अपने बच्चों के सिर पर डालकर थाप देती हैं, माना जाता है कि इससे बच्चों पर पूरे साल शीतलता बनी रहती है और गर्मी से राहत मिलती है। दोपहर बाद लोग पेड़-पौधों में जल डालते हैं, जिससे वे सूखे नहीं। आज के दिन सत्तू का सेवन अनिवार्य रूप से किया जाता है। मान्यता है कि आज के दिन सत्तू खाने से कोई कभी भूखा नहीं सोता है।

धुरखेल की रात होता है मांसाहार

जुड़ शीतल पर्व के दूसरे दिन धुरखेल होता है। इस दिन सभी लोग मिलकर सुबह से कुआं, तालाब की सफाई करते हैं। इस दौरान एक दूसरे पर कीचड़ फेंक धुड़ (मैथिली में धुड़ या धुर का मतलब धूल होता है) खेल खेला जाता है। स्त्री-पुरुष सभी मिलकर जल संग्रह क्षेत्र की सफाई करते हैं, इसलिए पूरे दिन चूल्हे को आराम दिया जाता है। दोपहर बाद जहां महिलाएं रसोई को सुव्यवस्थित करती हैं, वहीं पुरुष शिकार करने जाते हैं। मिथिला के इलाके में इस दिन रात में मंसाहार खाने की परंपरा है।

भोजपुर-मगध में सतुआन का महत्व

बिहार के मिथिलांचल क्षेत्र में यह पर्व जुड़-शीतल के रूप में मनाया जाता है, जबकि भोजपुर और मगध क्षेत्र में अलग ढंग से मनाया जाता है। जानिए सतुआन का महत्व और इसे मनाने का तरीका।

  • सूर्य के मीन राशि से निकलकर मेष राशि में प्रवेश करने के दिन मनाया जाता है।
  • इस दिन सूर्य भगवान अपनी उत्तरायण की आधी परिक्रमा पूरी करते हैं।
  • यह पर्व गर्मी के आगमन का संकेत देता है।
  • इस दिन चना और जौ का सत्तू खाया जाता है, इसलिए इसका नाम सतुआन है।
  • यह पर्व बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल हिस्सों में धूमधाम से मनाया जाता है।
  • सतुआन के त्योहार की खास बातें
  • इस दिन सत्तू और आम के टिकोरा की चटनी खाने की परंपरा है।

इस दिन भगवान को भोग के रूप में सत्तू अर्पित किया जाता है और सत्तू का प्रसाद खाया जाता है। सत्तू को गुड़ के साथ खाने की परंपरा है। बाद में कुछ लोग नमक मिलाकर भी सत्तू सान कर या पानी में घोलकर भी खाते-पीते हैं।

इस दिन दान-पुण्य का भी बहुत महत्व है। लोग मंदिर के पुजारी या पुरोहित को चने और जौ का सत्तू, गुड़ और आम का टिकोरा दान करते हैं।

इस दिन लोग अपने पूजा घर में मिट्टी या पीतल के घड़े में आम का पल्लव स्थापित करते हैं।

इस दिन पेड़ में बासी जल डालने की भी परंपरा है।

इस दिन बासी खाना खाने की भी परंपरा होती है। हालांकि कुछ जगह बेसन की कढ़ी और भात खाने की भी परंपरा है।

ॐ शांति, अंतरिक्ष शांति, पृथ्वी शांति, वनस्पतय शांति ….. का सुंदर उदाहरण है सतुआन और वैशाखी जैसे त्यौहार।

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