सेंट्रल डेस्क। Indian Government will construct a fence along 1,643 kilometer border with Myanmar: भारत ने भारत और म्यांमार सीमा (India-Myanmar border) पर मुक्त आवाजाही व्यवस्था समाप्त कर सीमा पर बाड़ लगाने का फैसला किया है। सीमा पर बाड़ लगाने और मुक्त आवाजाही पर रोक लगाने के फैसले का कुछ राज्य और संगठन विरोध कर रहे हैं तो कुछ इसका समर्थन भी। मिजोरम इस फैसले के खिलाफ है।
India-Myanmar border- मणिपुर की घटनाओं के बाद लिया गया फैसला
मणिपुर की घटनाओं के बाद भारत सरकार ने भारत से लगने वाली 1,643 किलोमीटर लंबी सीमा पर बाड़ लगाने का फैसला किया है। म्यांमार की तरफ से होने वाली अवैध घुसपैठ, उग्रवादी सदस्यों की मुक्त आवाजाही, ड्रग्स की तस्करी तथा आंतरिक सुरक्षा के खतरे को देखते हुए भारत सरकार ने यह फैसला किया है। इसके साथ ही बेहतर निगरानी के लिए सीमा पर एक गश्ती मार्ग भी बनाया जाएगा। हालांकि, यह काम आसान नहीं है।
India-Myanmar border- इस तरह की हैं मुश्किलें
भारत-म्यांमार की सीमा (India-Myanmar border) का अधिकांश हिस्सा ऊंची पहाड़ियों और घने जंगलों के बीच से गुजरता है। कहीं दुर्गम पहाड़ियां हैं तो कहीं गहरी घाटी। इसे पूरा होने में काफी समय और राशि की जरूरत पड़ेगी। सीमा पर बाड़ लगाने से भारत-म्यांमार सीमा पर प्रचलित ‘मुक्त आवाजाही व्यवस्था’ (एफएमआर) समाप्त हो जाएगी। लेकिन केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का मानना है कि नरेंद्र मोदी सरकार सीमाओं को ‘अभेद्य’ बनाने के लिए प्रतिबद्ध है।
दोनों देशों में 16 किलोमीटर तक जाने की थी अनुमति
उन्होंने कहा है कि पूरी 1,643 किलोमीटर लंबी भारत-म्यांमार सीमा (India-Myanmar border) पर बाड़ लगाने का फैसला किया गया है। एक्ट ईस्ट पॉलिसी के तहत सन 2018 से लागू ‘मुक्त आवाजाही व्यवस्था’ के तहत भारत-म्यांमार सीमा(India-Myanmar border) के पास रहने वाले लोगों को बिना किसी दस्तावेज के एक-दूसरे के क्षेत्र में 16 किलोमीटर तक जाने की अनुमति है। इसके पहले सीमावर्ती (India-Myanmar border) इलाके के लोगों को सीमा से पांच किलोमीटर अंदर जाने की इजाजत थी। म्यांमार से भारत के चार राज्यों-मणिपुर, मिजोरम, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश की सीमाएं लगती हैं।
दोनों ओर बसे हैं एक ही जनजाति के लोग
केंद्र सरकार के इस फैसले (India-Myanmar border) से जहां उग्रवादी गतिविधियों, अवैध घुसपैठ तथा ड्रग्स की तस्करी पर रोक लगेगी, वहीं दूसरी तरफ सीमावर्ती इलाके के आम लोगों का आना-जाना प्रभावित होगा। कई इलाके में एक ही जनजाति के लोग सीमा के दोनों पार बसे हुए हैं और उनके बीच रिश्तेदारी भी है। सीमावर्ती इलाके के लोग आपस में व्यापार भी करते हैं और एक-दूसरे की स्थानीय जरूरतों की वस्तुओं का आदान-प्रदान भी करते हैं । यही वजह है कि भारत सरकार के इस फैसले का स्वागत भी हो रहा है और विरोध भी।
कुकी और नगा समूहों के लिए होगी समस्या
बाड़ लगाने में भौगोलिक स्थिति के कारण व्यावहारिक दिक्कत तो है, लेकिन इससे बड़ी दिक्कत मिजोरम तथा मणिपुर के पहाड़ी जिलों में बसे कुकी और नगा समूहों को होगी। मिजो जनजाति से जुड़ी उप जातियां सीमा के उस पार भी हैं। वही हाल कुकी और नगाओं का है। उनकी आवाजाही प्रभावित होगी। मिजोरम से म्यांमार की 404 किलोमीटर लंबी सीमा है।
मिजोरम के संगठनों ने दी है आंदोलन की धमकी
मिजोरम के कई संगठनों ने भारत सरकार के इस फैसले के खिलाफ आंदोलन की धमकी दी है। मणिपुर के मैतेई समूह ने सरकार के फैसले का स्वागत किया है। मैतेई समूह को लगता है कि हाल की हिंसा के लिए खुली सीमा जिम्मेदार है। बड़ी संख्या में म्यांमार से घुसपैठ होती रही है।
मणिपुर को कुकी समूह को हिंसा करने की ताकत सीमा के उस पार से मिलती है। बाड़ लग जाने से मिजो के साथ कुकी और नगा समूहों की मुक्त आवाजाही पर रोक लग जाएगी। इसलिए मिजो और कुकी के साथ नगा समूह भी इसका विरोध कर रहे हैं।
अरुणाचल प्रदेश ने किया फैसले का स्वागत
मणिपुर की कम से कम 398 किलोमीटर की सीमा म्यांमार से लगती है जिसमें 10 किलोमीटर की सीमा पर पहले ही बाड़ लगाई जा चुकी है। मणिपुर के नगा बहुल उखरुल और कमजोंग जिले के लोग सरकार के फैसले का विरोध कर रहे हैं। अरुणाचल प्रदेश ने इस फैसले का स्वागत किया है, क्योंकि पूर्वी अरुणाचल प्रदेश में म्यांमार से आने वाले नगा उग्रवादी समूह हिंसा फैलाकर भाग जाते हैं। उसी रास्ते से अल्फा उग्रवादी भी असम में प्रवेश करते हैं।
India-Myanmar border : व्यावहारिक दिक्कतों पर भी हो विचार
सीमावर्ती क्षेत्रों में रहनेवाले कुछ लोगों का कहना है कि भारत सरकार को भौगोलिक दिक्कतों के साथ सीमावर्ती इलाके के लोगों की व्यावहारिक परेशानियों पर भी विचार करना चाहिए। उग्रवादी समूहों पर लगाम लगाना भी जरूरी है। इस पर भी विचार होना चाहिए कि अवैध घुसपैठ रोकने तथा ड्रग्स तस्करी रोकने के लिए कुछ और विकल्प हो सकता है।
राष्ट्र की सुरक्षा तथा सीमावर्ती नागरिकों की असुविधाओं को ध्यान में रखकर आगे बढ़ना चाहिए। कोई फैसला करने के पहले भारत सरकार को सीमावर्ती राज्यों तथा लोगों के साथ व्यापक चर्चा करनी चाहिए। जबरन फैसले लादने से सीमावर्ती इलाके के लोगों की नाराजगी ठीक नहीं है।
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