Home » International Yoga Day : मन की शांति और निरोगी जीवन देने वाली योग विद्या!

International Yoga Day : मन की शांति और निरोगी जीवन देने वाली योग विद्या!

Yoga : भारतीय ऋषि-मुनियों के आत्मसाक्षात्कार से उत्पन्न 'योगविद्या' धर्म, जाति, भाषा या लिंगभेद से परे जाकर संपूर्ण मानवता के कल्याण की कामना करने वाला एक दिव्य ईश्वरीय वरदान है। सं

by Anurag Ranjan
WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Follow Now

सेंट्रल डेस्क : स्वामी विवेकानंद ने जब बीसवीं सदी के प्रारंभ में अमेरिका के ‘धर्म संसद’ में भारतीय तत्वज्ञान और अध्यात्म का दिव्य परिचय कराया, तब संपूर्ण विश्व को भारत की गौरवशाली और वैभवशाली संस्कृति की झलक मिली। इसी महान परंपरा का एक अविभाज्य हिस्सा है योगशास्त्र, जिसका आज पूरे विश्व में महत्व और प्रभाव मान्य हो चुका है। 21 जून को संपूर्ण विश्व ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ के रूप में मना रहा है। सनातन संस्था की बबीता गांगुली बताती हैं कि कोरोना महामारी के समय में भी, आयुर्वेद, योग और प्राणायाम ने लाखों लोगों को जीवनदान दिया। आइए इस योगविद्या के अनुपम लाभों को संक्षेप में समझें।

योग – संपूर्ण मानवता को शांति और आरोग्य प्रदान करने वाली विद्या

भारतीय ऋषि-मुनियों के आत्मसाक्षात्कार से उत्पन्न ‘योगविद्या’ धर्म, जाति, भाषा या लिंगभेद से परे जाकर संपूर्ण मानवता के कल्याण की कामना करने वाला एक दिव्य ईश्वरीय वरदान है। संसार के तापों से ग्रस्त मानवता को मानसिक शांति देने वाली, रोगियों को शारीरिक-मानसिक राहत देने वाली और साधकों को मोक्ष तक पहुँचाने वाली यह योगविद्या वास्तव में भारत की अमूल्य देन है। यह दुर्भाग्य की बात है कि आज भी बहुत से भारतीय योग से दूर हैं, जबकि पश्चिमी देश इसका लाभ बड़े स्तर पर उठा रहे हैं। भोगवाद और रोगों से ग्रस्त विश्व की दृष्टि भारत की ओर आशा से देख रही है, क्योंकि केवल भारत की योगविद्या ही ऐसी है जो आत्मिक और शारीरिक दोनों स्तरों पर संपूर्ण मानवजाति को शांति प्रदान कर सकती है।

योग से दुर्बल शरीर में कार्यक्षमता बढ़ाना संभव

आज रासायनिक खादों और कीटनाशकों से उपजी खाद्य वस्तुओं के कारण मानव शरीर धीरे-धीरे रोगग्रस्त होता जा रहा है। शारीरिक और मानसिक दुर्बलता बढ़ती जा रही है, जिसका समाधान केवल योग के माध्यम से संभव है। योग शरीर में संचित विषों को बाहर निकालता है और रोग प्रतिकारशक्ति तथा कार्यक्षमता को बढ़ाता है।

शरीर एक पवित्र ‘यज्ञकुंड’ – इसे अपवित्र न करें

मानव शरीर एक पवित्र ‘यज्ञकुंड’ है। इसमें मांसाहार, नशा, फास्ट फूड आदि के माध्यम से अशुद्धियाँ न भरें। ऐसा करने वालों की योगसाधना निष्फल होती है। मोक्ष की प्राप्ति ही इस मानव जीवन का परम लक्ष्य है। इसलिए शरीर, मन और वाणी को शुद्ध रखकर योग साधना करनी चाहिए।

योग के माध्यम से परोपकारी और आध्यात्मिक जीवन का मार्ग

‘योग’ का वास्तविक अर्थ है – आत्मा का परमात्मा से मिलन। यह जीवन केवल भोग के लिए नहीं, बल्कि सेवा, साधना और परमार्थ के लिए मिला है। योग साधना से मनुष्य में अंतर्निहित दिव्यता का बोध होता है। केवल स्वयं के लिए नहीं, बल्कि दूसरों को प्रकाशित करने वाली ऊर्जा योग से ही मिलती है। इसलिए भोगी नहीं, बल्कि योगी बनकर परोपकारी जीवन जीना ही सच्चे मानव जन्म की सार्थकता है।

योग साधना से राष्ट्रभक्त और आध्यात्मिक युवा तैयार होंगे

यदि भारत को फिर से आत्मनिर्भर, संस्कारी, गौरवशाली और ‘विश्वगुरु’ राष्ट्र बनाना है, तो इसके लिए हमें ऐसे तेजस्वी, धर्मनिष्ठ और राष्ट्रभक्त नागरिकों की आवश्यकता है जो योग के मार्ग से ही तैयार होंगे। आज जब पूरा विश्व शारीरिक-मानसिक रोग, महामारी और अशांति से जूझ रहा है, तब योग ही एकमात्र समाधान है जो हमें मोक्ष, शांति, स्वास्थ्य और राष्ट्रीय पुनर्जागरण की दिशा में ले जा सकता है।

योग जैसे दिव्य विज्ञान का देश-विदेश में प्रचार-प्रसार करने वाले समस्त भारतीय संस्थानों, योगाचार्यों, साधकों और सहयोगियों का इस दिन विशेष पर अभिनंदन!

Read Also: Sahitya Academy Yuva Puraskar Jharkhand : गुमला की बेटी पार्वती तिर्की को साहित्य अकादमी का युवा पुरस्कार

Related Articles