Home » Jharkhand Bureaucracy : नौकरशाही : जनपद एक्सप्रेस का टिकट

Jharkhand Bureaucracy : नौकरशाही : जनपद एक्सप्रेस का टिकट

by Dr. Brajesh Mishra
Jharkhand Bureaucracy
WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Follow Now

गुरु बड़े सन्नाटे में थे। मंडली गायब थी। परिवार के लोगों से वजह पूछी। पता चला कि दिल्ली प्रवास को लेकर चिंतित हैं। बात कुछ समझ नहीं आई। लिहाजा वजह जानने के लिए थोड़ी और पड़ताल की। बड़े बेटे ने बताया कि पापा फ्लाइट से जाना नहीं चाहते। फिलहाल रेल का टिकट नहीं मिल रहा है। बात सुनकर सब साफ हो गया। गुरु प्लेन हादसों की खबर से हड़क गए थे। कमरे में पहुंचा तो डायरी पलटते नजर आए। बात शुरू करते हुए पूछा- क्या खोज रहे हैं गुरु? आवाज सुनकर सिर उठाया।

Read Also- Jharkhand Bureaucracy :   नौकरशाही : ससुर जी का कोटा

चेहरा देखा और फिर पन्नों में खो गए। बोले- अरे रेलवे का एक परिचित था। उसका मोबाइल नंबर खोज रहा हूं। पता नहीं कौन सी डायरी में लिखा है? गुरु को सहज करने के लिए टिकट का इंतजाम जरूरी था। सो, अपनी तरफ से आग्रह किया। गुरु कब की टिकट है? दे दीजिए क्लियर कराने की कोशिश करता हूं। गुरु का चेहरा अचानक चमक गया। बोले- अरे यार करा दो। बहुत बड़ा काम हो जाएगा। बात पूरी करते हुए गुरु ने डायरी खोली। बीच से टिकट निकाल कर आगे बढ़ा दिया।

Read Also- Jharkhand Bureaucracy :  नौकरशाही : विशाल भजन भाव

टिकट हाथ में लेकर पीएनआर, गाड़ी नंबर और पैसेंजर का नाम नोट किया। फिर गुरु को लौटा दिया। भरोसा दिलाया कि, कुछ इंतजाम हो जाएगा। गुरु बच्चों की तरह प्रसन्न हो गए। कहा, ये तुमने बड़ा अच्छा काम कर दिया। टिकट की वजह से बहुत परेशान था। गुरु थोड़े जिज्ञासु हुए। पूछा- कोई कोटा-वोटा होता है क्या? जवाब में बताना पड़ा- हां गुरु, कई तरह के कोटे होते हैं। इनमें एक एचओ कोटा होता है। रेलवे की नजर में आम नागरिक से ज्यादा ‘वजन’ रखने वाले अगर रेकमेंड कर दें तो यह मिल जाता है।

Read Also- नौकरशाही: चौबे वाली चौपाल

गुरु बोले- वाह! हम तो कब से ऐसा ही जुगाड़ खोज रहे थे, जिससे शॉर्टकट मिल जाए। इसीलिए हम हमेशा कोटा कायम रखने के पक्ष में रहते हैं। गुरु की बात सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ। गुरु रेलवे का कोटा नहीं जानते। नौकरशाही में इतनी गहरी पकड़ होने के बावजूद आखिर इस सुख से कैसे वंचित हैं? बहरहाल, गुरु का काम निकल गया था। अब बात अपने काम की करनी थी। गुरु को विचलन का अहसास न हो, इसलिए प्रासंगिकता बनाए रखते हुए पूछा, ‘गुरु आप रेलवे छोड़िए, वनांचल पर फोकस कीजिए‘।

Read Also- Jharkhand Bureaucracy : नौकरशाही : कायदे के फायदे

गुरु बोले, अरे यहां तो और अजब हाल है। दूसरी जगहों पर तो सीट आरक्षित होती है। यहां तो पूरा कोच आरक्षित है। कहा जाता है कि नौकरशाही के लिए चलने वाली जनपद एक्सप्रेस में पिछले कई सालों से राजधानी की बोगी बीस ग्यारह के लिए आवंटित है। गलती से एक बार बीस चौदह पीएनआर वाले चढ़ गए थे। गाड़ी जैसे ही स्टेशन पहुंची, पैसेंजर बदल गया। आलम यह है कि बीस ग्यारह के बाद नए वर्जन का पीएनआर लेकर पहुंचे बीस बारह और बीस तेरह को इंट्री तक नहीं मिली। पिछले तीन शासन से यह व्यवस्था बदस्तूर कायम है। गुरु दरअसल बगैर ट्रेन के वैचारिक यात्रा पर निकल चुके थे। अब हाथ जोड़कर विदा लेने का समय था।

Read Also- Jharkhand Bureaucracy : नौकरशाही : बाबा का आशीर्वाद

Related Articles