चुनाव विश्लेषण
वीरेंद्र ओझा, संपादकीय प्रभारी
जमशेदपुर
Loksabha Election 2024 Analysis: इंडिया गठबंधन हेमंत के जेल जाने की घटना को आदिवासी अस्मिता से जोड़ने में रहा सफल
संविधान बदलने की तैयारी और आरक्षण पर खतरे का मुद्दा विपक्ष जनता तक पहुंचाने में रहा सफल
लोकसभा चुनाव में इस बार उत्तर प्रदेश, बिहार व महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में भाजपा की सीटें कम हुई हैं, लेकिन झारखंड में भी पार्टी को कम झटका नहीं लगा है। पिछले लोकसभा चुनाव में एनडीए गठबंधन के पास राज्य की 12 लोकसभा सीटें थीं। इस बार गठबंधन को महज 9 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि आखिर झारखंड में ‘भगवा एक्सप्रेस’ पर ब्रेक क्यों लगा?
भाजपा के प्रदेश प्रभारी लक्ष्मीकांत वाजपेयी व प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी मतगणना के एक दिन पहले तक झारखंड की सभी 14 सीटें जीतने का दावा कर रहे थे, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। खासकर, अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित पांचों सीट पर भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा। इसके कारणों की पड़ताल व समीक्षा भाजपा तो करेगी ही, आम कार्यकर्ता भी इसके कारणों पर चर्चा करने लगे हैं।
राजनीति के जानकारों की मानें तो भाजपा की राह में सबसे ज्यादा रोड़े पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की जेल यात्रा ने अटकाए। मुख्यमंत्री चम्पाई सोरेन सहित तमाम झामुमो नेताओं ने हेमंत को जेल भेजने को आदिवासी अस्मिता से जोड़ा और इसका आरोप निवर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह पर लगाया। इसके बहाने केंद्र सरकार की कार्यप्रणाली को तानाशाही से जोड़ा गया।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी जमशेदपुर के भाषण में कहा था कि हेमंत सोरेन देश के इकलौते आदिवासी मुख्यमंत्री थे, जो नरेंद्र मोदी और भाजपा को खटक रहे थे।
केजरीवाल ने कहा था कि हेमंत सोरेन सिर्फ झारखंड नहीं, पूरे देश के आदिवासियों के सबसे बड़े नेता हैं। ऐसा करके भाजपा ने पूरे देश के आदिवासियों को चुनौती दी है, उन्हें ललकारा है।
यह बात झामुमो ने अपने कार्यकर्ताओं के जरिए गांव-गांव तक पहुंचा और इस चुनाव में इसका बदला चुकाने का आह्वान किया। शायद यही वजह रही कि आरक्षित सीटों पर भाजपा का कोई प्रत्याशी नहीं जीत सका। हालांकि, सीता सोरेन बहुत कम अंतर से हारीं, लेकिन उनका हारना भी शुरू से ही तय माना जा रहा था।
अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों पर भाजपा की राह में पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन भी बाधक बन कर खड़ी हो गईं।
मात्र दो माह के राजनीतिक कॅरियर में उन्होंने जिस धमाकेदार अंदाज में इंट्री मारी है, उससे हर कोई हैरान है। राष्ट्रीय स्तर पर कल्पना को उनके भाषणों के लिए सराहा गया।
इन सबके अलावा आदिवासी बहुल सीटों पर जिन फैक्टरों ने भाजपा की राह रोकी, उसमें देश भर में विपक्ष की ओर से प्रचारित किए गए आरक्षण समाप्त करने और संविधान बदलने के दावे की शामिल रहे।
जहां तक बात पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा की हार की है, तो उनके खिलाफ आदिवासी और ईसाई मतदाताओं का एकजुट होना भारी पड़ा। रही-सही कसर महतो वोटरों ने उनकी खिलाफत करके पूरी कर दी।
पिछले दिनों आदिवासी का दर्जा पाने के लिए जितने भी बड़े कुड़मी आंदोलन किए गए थे, उसमें जनजातीय मामलों के मंत्री होने के नाते अर्जुन मुंडा को ही दोषी ठहराया गया था।
उसी समय कुड़मियों ने आह्वान किया था कि इस बार अर्जुन मुंडा को चुनाव में सबक सिखाएंगे। खूंटी लोकसभा क्षेत्र में लगभग 25 फीसद जनसंख्या कुड़मियों की है। माना जा रहा है कि भाजपा को खूंटी सीट पर चौतरफा सामाजिक विरोध का खामियाजा उठाना पड़ा है। इस बार एनडीए गठबंधन को खूंटी, सिंहभूम, लोहरदगा, राजमहल और दुमका सीट पर हार का मुंह देखना पड़ा है।
Loksabha Election 2024 Analysis: आदिवासी आरक्षित इन सीटों पर हुई भाजपा की हार
खूंटी :
कालीचरण मुंडा : 5,11,647
अर्जुन मुंडा : 3,61,972
जीत का अंतर : 1,49,675
सिंहभूम
जोबा मांझी : 5,20,164
गीता कोड़ा : 3,51,762
जीत का अंतर : 1,68,402
दुमका:
नलिन सोरेन : 5,47,370
सीता सोरेन : 5,24,843
जीत का अंतर : 22,537
राजमहल
विजय कुमार हांसदा : 6,13,371
ताला मरांडी : 4,35,107
जीत का अंतर : 1,78,264
लोहरदगा:
सुखदेव भगत : 4,83,038
समीर उरांव : 3,43,900
जीत का अंतर : 1,39,138
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