पॉलिटिकल डेस्क: संयुक्त राष्ट्र की ताजा बैठक दुबई में शुरू हो गई है और इसकी सफल शुरुआत को लेकर तमाम कयास लगाए जा रहे हैं। संयुक्त अरब अमीरात की अध्यक्षता में आयोजित जलवायु शिखर सम्मेलन (सीओपी 28) में बहुचर्चित और बहुप्रतिक्षित जलवायु-नुकसान निधि (क्लाइमेट डैमेज फंड) को आधिकारिक रूप से मंजूरी मिल गई है। इससे दुनियाभर के देश गरीब और विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन की वजह से हो रहे नुकसान के खिलाफ मुआवजा मिलेगा। मुआवजे के लिए इस कोष की स्थापना को लेकर लंबे समय से बहस चल रही थी। आइए जानते हैं क्या है लॉस एंड डैमेज फंड।
लॉस एंड डैमेज फंड के मायने
‘लॉस एंड डैमेज’फंड एक वित्तीय सहायता तंत्र है, जिसे जलवायु परिवर्तन के उन अपरिवर्तनीय परिणामों का समाधान करने के लिए डिजाइन किया गया है, जिन्हें अनुकूलन प्रयासों के माध्यम से टाला अथवा कम नहीं किया जा सकता है। अनुकूलन प्रयास जलवायु परिवर्तन के प्रति सक्रिय प्रतिक्रिया और जीवित रहने की कला है, जिसका उपयोग कर समुदाय एवं देश जलवायु-संबंधी चुनौतियों से निपटने तथा तैयारी के लिए कारागार विकल्प चुनते हैं। इस फंड का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण समुदायों, देशों और पारिस्थितिक तंत्रों को हुई हानि की पहचान करना है तथा उसकी क्षतिपूर्ति करना है। ये हानियां मौद्रिक मूल्य से परे हैं तथा मूलतः मानव अधिकारों, कल्याण एवं पर्यावरणीय स्थिरता को प्रभावित करते हैं।
ऐसे आया लॉस एंड डैमेज फंड का विचार
साल 2015 में सीओपी 21 में पेरिस समझौते ने लॉस एंड डैमेज फंड के लिए आधार तैयार किया। सीओपी21 में यह पहली बार था कि अमीर देशों ने अंततः स्वीकार किया कि चरम मौसम की घटनाओं से होने वाले नुकसान और क्षति या लॉस एंड डैमेज को पहचानने की आवश्यकता है। लेकिन, इससे जलवायु कार्यवाही वित्तपोषण के लिए अलग कोई ठोस मुआवजा नहीं मिला। जो था ,वो भी बहुत कम पड़ रहा था। ऐसा माना गया कि लॉस एंड डैमेज फंड लगभग सात साल बाद मिस्र में सीओपी 27 में स्थापित किया जाएगा। लेकिन, ऐसा कुछ नहीं हुआ।
गरीब देशों के लिए लॉस एंड डैमेज फंड की मिली मंजूरी
भारत लॉस एंड डैमेज फंड के लिए ग्लोबल साउथ से आने वाली एक महत्वपूर्ण आवाज है। एलायंस ऑफ द स्मॉल आइलैंड स्टेट्स (एओएसआईएस) जैसे अन्य संगठन, जो एक अंतरसरकारी संगठन है, जो पर्यावरण नीतियों से संबंधित वकालत करता है, भी इस विचार को आगे बढ़ाने में भूमिका निभाई।
जलवायु परिवर्तन से अर्थव्यवस्था पर असर
यूनिवर्सिटी ऑफ डेलावेयर ने इस फंड की एनाबेस की है और बताया है कि इस फंड के संचालन के लिए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। इस रिपोर्ट से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन से दुनिया का पैसा और अर्थव्यवस्था कितनी प्रभावित हो रही है। इससे पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन विशेष रूप से गरीब देशों और क्षेत्रों के लिए पैदा हो रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अमीर देशों को गरीबों को इन संस्थानों में दाखिला दिलाने में मदद करनी चाहिए।
सबकी निगाह सीओपी 28 पर
सीओपी-27 में व्यापक चर्चा के बाद यूएनएफसीसीसी के सदस्य देशों के प्रतिनिधि लॉस एंड डैमेज फंड स्थापित करने पर सहमत हुए। इसके अतिरिक्त यह पता लगाने के लिये एक ट्रांजिशनल कमेटी (टीसी) की स्थापना की गई थी कि फंड के तहत नए फंडिंग तंत्र का संचालन किस प्रकार से होगा। टीसी को सिफारिशें तैयार करने का काम सौंपा गया था, जिन पर सीओपी-28 के दौरान विचार किया जा सके तथा देशों द्वारा संभावित रूप से उन सिफारिशों को अपनाया जा सके। जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में अपना पैसा लगाने की जिम्मेदारी अमीर देशों पर है, क्योंकि पहले ही इस दिशा में कार्यवाही के लिए बहुत देर हो चुकी है।
पिछले साल शर्म अल-शेख में घोषित लॉस एंड डैमेज फंड पर वैश्विक समुदाय द्वारा की गई प्रगति के लिए सभी की निगाहें सीओपी 28 पर हैं। सितंबर में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) की ट्रांसनेशनल कमेटी की रिपोर्ट में फंडिंग व्यवस्था को चालू करने की कोशिश में “महत्वपूर्ण प्रगति” का उल्लेख किया गया था, लेकिन यह देखना होगा कि क्या यह किसी बड़ी घोषणा में तब्दील होता है।
यूएई ने 10 करोड़ डॉलर दिए
फंड बनाने की शुरुआत करते हुए यूएई ने अपनी तरफ से 10 करोड़ डॉलर का योगदान दिया है। जर्मनी ने भी 10 करोड़ डॉलर के योगदान का एलान किया है। ब्रिटेन ने 7.5 करोड़ डॉलर, अमेरिका ने 1.7 करोड़ डॉलर, जापान ने 1 करोड़ डॉलर के योगदान का एलान किया है। अमेरिका की तरफ से कम योगदान को लेकर काफी आलोचना हो रही है। जबकि, ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में अमेरिका दुनिया में सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाले देशों में शामिल रहा है।
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