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Mahakumbh 2025: प्रयागराज में अखाड़ों की धर्म ध्वजा से सजने लगा संगम तट

महाकुंभ का आयोजन सनातन धर्म के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है, जिसमें लाखों लोग श्रद्धा और आस्था के साथ प्रयागराज आते हैं।

by Rakesh Pandey
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प्रयागराज: महाकुंभ 2025 के लिए संगम नगरी प्रयागराज में तैयारियां तेज हो गई हैं। अगले साल 13 जनवरी से शुरू होने वाले इस ऐतिहासिक धार्मिक आयोजन की शुरुआत अभी से दिखाई देने लगी है, जब विभिन्न अखाड़ों की धर्म ध्वजाएं फहराने लगीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज इस आयोजन के सिलसिले में प्रयागराज पहुंचे, जहां उन्होंने लगभग 6,000 करोड़ रुपये की परियोजनाओं का उद्घाटन किया और महाकुंभ में भाग लेने वाले अखाड़ों के संतों से मुलाकात की।

अखाड़ों की ध्वजा और तप का महत्व

महाकुंभ में भाग लेने वाले हर अखाड़े की अपनी धर्म ध्वजा होती है, जो उनके शिविर के केंद्र में स्थापित की जाती है। यह ध्वजा ना केवल अखाड़े के सम्मान का प्रतीक है, बल्कि इसे धार्मिक दृष्टि से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। अखाड़े के मंदिर में स्थापित होने वाली इस धर्म ध्वजा के साथ ही इष्टदेवता की स्थापना भी की जाती है, जो इसे और भी पवित्र बनाती है। यह स्थान पूरे अखाड़े का सबसे पवित्र माना जाता है, जहां से सभी धार्मिक अनुष्ठान और कर्मकांड होते हैं।

प्रायश्चित और पूजा की विधि

जब अखाड़े में कोई गलती होती है, तो उस गलती का प्रायश्चित इस धर्म ध्वजा के नीचे किया जाता है। इस प्रक्रिया को बहुत ही पवित्र माना जाता है, और इसे विधिवत रूप से पूरा किया जाता है। इसके लिए विशेष आचार्य की देखरेख में मंत्रोच्चारण और यज्ञ जैसे कर्मकांड किए जाते हैं, जो ध्वजा फहराने से पहले होते हैं। यह सभी कार्य संपूर्ण विधि और पद्धतियों के अनुसार किए जाते हैं, ताकि कोई भी दोष न हो और धर्म की मर्यादा बनी रहे।

मुहूर्त का महत्व

धर्म ध्वजा की स्थापना के समय मुहूर्त का ध्यान रखना बेहद आवश्यक होता है। अखाड़ों में ध्वजा फहराने से पहले इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि ग्रह-नक्षत्र किस स्थिति में हैं और कौन सा समय विशेष रूप से शुभ है। श्रीपंचायती निरंजनी अखाड़े के महंत रवींद्र पुरी ने बताया कि इस समय को देखे बिना कोई भी धर्म ध्वजा स्थापित नहीं की जाती। शुभ मुहूर्त में ही इसे स्थापित किया जाता है, ताकि समस्त अखाड़े का कार्य मंगलमय और सफल हो सके।

ध्वजा का प्रतीकात्मक महत्व

धर्म ध्वजा का लहराना न केवल अखाड़े के वर्चस्व और प्रतिष्ठा का प्रतीक है, बल्कि यह बल और इष्टदेव की शक्ति का भी प्रतीक है। धार्मिक विद्वानों के अनुसार, यह ध्वजा राजा के विशेष चिह्न के समान मानी जाती है, जो उस अखाड़े की धर्मिक और सांस्कृतिक प्रतिष्ठा को दर्शाती है। महाकुंभ में भाग लेने वाले सभी अखाड़े इस प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिए विशेष ध्यान देते हैं और हर संभव प्रयास करते हैं कि उनकी धर्म ध्वजा धूमधाम से फहरे और पूरे क्षेत्र में उनकी प्रतिष्ठा बनी रहे।

महाकुंभ की शुरुआत

महाकुंभ के आयोजन के पहले सभी अखाड़ों ने अपने-अपने शिविर में धर्म ध्वजा को शुभ मुहूर्त में और शुभ दिन पर स्थापित कर लिया है। इसके साथ ही संतों का कठोर तप भी प्रारंभ हो चुका है, जो अगले तीन महीने तक चलेगा। यह तप महाकुंभ के सबसे महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में माना जाता है, जो न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है।

महाकुंभ का आयोजन सनातन धर्म के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है, जिसमें लाखों लोग श्रद्धा और आस्था के साथ प्रयागराज आते हैं। यह एक ऐसा आयोजन है, जहां विभिन्न अखाड़ों के साधु-संतों के साथ-साथ सामान्य भक्त भी आत्मिक शुद्धि के लिए स्नान करते हैं और अपने पापों से मुक्ति पाने की कोशिश करते हैं। यह आयोजन न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। इस महाकुंभ में भाग लेने वाले संतों का तप और उनके द्वारा किए जाने वाले धार्मिक कर्मकांड यह साबित करते हैं कि महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि एक महान धार्मिक और सामाजिक धरोहर है, जो हर साल लाखों लोगों के जीवन में आत्मिक शांति और श्रद्धा का संचार करता है।

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