सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की अनदेखी का आरोप, कहा-खनन को प्राथमिकता देना दुर्भाग्यपूर्ण
Jamshedpur (Jharkhand): जमशेदपुर पश्चिमी के विधायक एवं सारंडा संरक्षण अभियान के संयोजक सरयू राय ने झारखंड सरकार पर सारंडा वन क्षेत्र को लेकर सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों की अनदेखी का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि सरकार को पर्यावरण और वन्यजीव संरक्षण की जगह लौह-अयस्क खनन को प्राथमिकता देना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है।
सर्वोच्च न्यायालय का आदेश और सरकार की ढिलाई
सरयू राय ने कहा कि वन एवं पर्यावरण विभाग के सचिव द्वारा 24 जून को सर्वोच्च न्यायालय में शपथ पत्र दाखिल कर सारंडा सघन वन (858.18 वर्ग किमी) में से 575.19 वर्ग किमी को वन्यजीव अभयारण्य और 136.03 वर्ग किमी को कंजर्वेशन रिजर्व घोषित करने पर सहमति जताई गई थी। बावजूद इसके सरकार अब तक आदेश को लागू नहीं कर पाई है।
उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि यदि प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और खनन के बीच हितों का टकराव हो तो पर्यावरण संरक्षण को वरीयता दी जाएगी। बावजूद इसके राज्य सरकार खनन गतिविधियों को बढ़ावा देने का प्रयास कर रही है।
अवैध खनन और आयोगों की सिफारिशें
सरयू राय ने याद दिलाया कि वे वर्ष 2003-04 से ही सारंडा में अवैध खनन को लेकर सरकार को सचेत करते आ रहे हैं।
जस्टिस एम. बी. शाह आयोग (2010) ने अवैध खनन की जांच कर ठोस सुझाव दिए थे।
समन्वित वन्यजीव प्रबंधन योजना समिति (2011) ने भी अविवेकपूर्ण खनन पर रोक की सिफारिश की।
भारत सरकार की कैरिंग कैपेसिटी समिति (2014) ने सारंडा क्षेत्र के संरक्षण का महत्वपूर्ण सुझाव दिया।
सस्टेनेबल माइनिंग मैनेजमेंट प्लान ने खनन की अधिकतम सीमा निर्धारित कर पर्यावरण संरक्षण की जरूरत बताई।
उन्होंने कहा कि झारखंड सरकार के वन विभाग ने 2007-08 में 630 वर्ग किमी क्षेत्र को अभग्न क्षेत्र घोषित करने का प्रस्ताव भी भेजा था, जिसे तत्कालीन खान मंत्री सुधीर महतो की सहमति मिलने के बाद भी अधिसूचित नहीं किया गया।
सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी और मुख्यमंत्री से आग्रह
सरयू राय ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट चेतावनी दी है कि यदि 8 अक्टूबर 2025 तक सारंडा को सैंक्चुअरी घोषित नहीं किया गया तो झारखंड सरकार के मुख्य सचिव को जेल भेजने तक की कार्रवाई हो सकती है।
उन्होंने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से अपील की कि वे इस मामले को गंभीरता से लें और सारंडा सघन वन को शीघ्र अभयारण्य घोषित करें।
वन विभाग पर सवाल
विधायक ने आरोप लगाया कि झारखंड सरकार का वन विभाग भी खान विभाग की तरह काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट, देहरादून की स्पष्ट सिफारिशों के बावजूद अधिकारियों ने गैरकानूनी ढंग से उसमें बदलाव करने का प्रयास किया।
उन्होंने यह भी कहा कि हाल ही में गठित झारखंड राज्य वन्यजीव पर्षद में 27 सदस्यों में मुश्किल से एकाध वन्यजीव विशेषज्ञ हैं। 1 जून को विधानसभा में हुई पर्षद की बैठक में सारंडा सैंक्चुअरी का विषय प्रमुख एजेंडे में था, लेकिन मुख्यमंत्री केवल कुछ मिनट उपस्थित रहे और उनकी अनुपस्थिति में गैरकानूनी तरीके से निर्णय लिए गए।