NISAR Mission: नई दिल्ली : भारत की अंतरिक्ष एजेंसी ISRO और अमेरिका की NASA मिलकर एक अत्याधुनिक संयुक्त मिशन पर काम कर रहे हैं, जिसका नाम NISAR (NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar) है। यह मिशन जुलाई 2025 में श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SDSC) से लॉन्च किया जाएगा। मिशन का उद्देश्य पृथ्वी की सतह पर हो रहे बदलावों की उच्च सटीकता के साथ निगरानी करना है।
क्या है NISAR सैटेलाइट?
NISAR दुनिया का पहला ऐसा उपग्रह होगा जो दोहरी फ्रिक्वेंसी (L-बैंड और S-बैंड) सिंथेटिक एपर्चर रडार से लैस होगा। इस सैटेलाइट का कुल वजन लगभग 3 टन है और यह 12 मीटर व्यास के रडार एंटीना के साथ लॉन्च होगा, जो पृथ्वी की सतह को अत्यंत सूक्ष्मता से स्कैन करने में सक्षम होगा।
खास तकनीक और अनुप्रयोग
रात, बारिश और बादलों के दौरान भी स्कैनिंग संभव –
मौजूदा ऑप्टिकल सैटेलाइट्स सूरज की रोशनी पर निर्भर होते हैं, लेकिन NISAR रडार तकनीक के माध्यम से 24×7 डेटा प्रदान कर सकता है।
कृषि: किसानों को सिंचाई की आवश्यकता, फसल स्वास्थ्य और पैटर्न में बदलाव की जानकारी देगा।
आपदा प्रबंधन: बाढ़, भूकंप, भूस्खलन जैसी आपदाओं के दौरान रियल-टाइम डेटा प्रदान करेगा।
क्लाइमेट चेंज निगरानी: आर्कटिक व अंटार्कटिक में बर्फ की चादरों, ग्लेशियरों और समुद्र में तेल रिसाव की पहचान कर सकता है।
वन्यजीव और भूमि क्षरण: जंगलों की कटाई, नदी कटाव और समुद्री भूमि क्षरण की भी सटीक निगरानी करेगा।
वैज्ञानिक सहयोग और लागत
यह मिशन भारत और अमेरिका के बीच अब तक का सबसे बड़ा वैज्ञानिक सहयोग माना जा रहा है।
इस पर करीब 1.5 बिलियन डॉलर की लागत आई है और इस परियोजना पर पिछले 10 वर्षों से काम चल रहा है।
क्यों है NISAR खास?
पराबोलॉइड एंटीना पृथ्वी की सतह को अधिक क्षेत्र में कवर करने के लिए अपनी धुरी पर घूम सकता है।
यह ग्लोबल इकोलॉजिकल सिस्टम्स, पृथ्वी की टेक्टॉनिक प्लेट्स की गति, और वन संसाधनों की जानकारी देने में सक्षम होगा।
समुद्री तेल रिसाव का पता लगाने और उसे रोकने की रणनीति तैयार करने में सहायक।
क्या बोले ISRO अधिकारी?
ISRO से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि NISAR सिर्फ एक सैटेलाइट नहीं, बल्कि रियल-टाइम प्लेनेट वॉचर है। जब दुनिया को इसकी सबसे अधिक आवश्यकता होगी, यह तब भी डेटा देगा—चाहे वह भूकंप हो, बाढ़ हो या खेती की जरूरत। एक पूर्व ISRO वैज्ञानिक ने कहा कि NISAR ग्लेशियरों की निगरानी, समुद्री क्षरण, जलवायु परिवर्तन और भू-वैज्ञानिक परिवर्तनों के आकलन में क्रांतिकारी भूमिका निभाएगा। यह संयुक्त मिशन हमारे वैज्ञानिक कौशल और वैश्विक विश्वसनीयता का प्रमाण है।