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व्यंग्य: “ओम टॉपराय नमः”

by Rakesh Pandey
ओम टॉपरॉय नमः
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व्यंग्य: “ओम टॉपराय नमः”

व्यंग्यकार: दिलीप सिंह

हाल के दिनों में टॉपरों की बहार आयी हुई है, फिर चुनावी मौसम में लोगों को न तो चुनाव,न ही आईपीएल और ना तो करन जौहर की फिल्में लुभा पा रही हैं । कुछ वक्त पहले “कलंक” फ़िल्म क्या रिलीज हुई थी तभी से कई लोगों के रोजगार पर ग्रहण ही लग गया।इस वक्त सिर्फ रिपोर्टर की चांदी है जो वैरायटी खोजते खोजते हिंदी के टॉपर के पास पहुंच गया । रिपोर्टर ने उसका इंटरव्यू लेना चाहा मगर इंटरव्यू देने के कारण ही कई टॉपरों की पोल खुल गई और उन्हें जेल जाना पड़ा।
इस कारण टॉपर ने कैमरे पर बोलने से मना कर दिया ।तो फिर रिपोर्टर ने लिखित सवाल किए जिसमें से कुछ के ऐसे मानीखेज जवाब आये।
रिपोर्टर – “टॉपर बन कर आपको कैसा महसूस हो रहा है”।
विद्यार्थी – “जी बहुत अच्छा महसूस हो रहा है और थोड़ी पीड़ा भी हो रही है ।अच्छा तो ये लग रहा है कि हमने टॉप किया है मगर बुरा ये लग रहा है कि मम्मी हमारी सुरक्षा की प्रार्थना करने रोज मन्दिर जाने लगी हैं।वैसे पहले वह सिर्फ सेल्फी लेने के लिए ही पूजा स्थलों पर जाती थीं और पापा एक वकील से मिलने गए हैं कि अगर मेरे जेल जाने की नौबत आयी तो जमानत वगैरह में खर्चा कितना लगेगा”?
रिपोर्टर- “लेकिन आपको किस बात का डर? टॉप करना तो गर्व की बात होती है । टाप करने पर आप जेल क्यों जाएंगे”।
विद्यार्थी- “वो सब हमको पता नहीं जैसे ही हमने टॉप किया वैसे ही हमारे कॉलेज के प्रिंसिपल साहब को फोन आ गया कि अगर किसी रिपोर्टर को इंटरव्यू दिया तो जेल जाने की नौबत आ सकती है। याद रखने को बोले कि पिछले कई टॉपर इंटरव्यू देने की वजह से ही जेल चले गए थे।
रिपोर्टर- “आप किस कॉलेज में पढ़ते हैं और आपने परीक्षा किस कॉलेज में दी थी”?
विद्यार्थी-“जी हम जिस कॉलेज में पढ़ते हैं वहां सिर्फ पढ़ने के लिए पढ़ते हैं”।
रिपोर्टर- “ इस बात का क्या मतलब है भाई?कॉलेज पढ़ने के लिए ही होता है फिर सिर्फ पढ़ने के लिये पढ़ने से क्या मतलब है”?
विद्यार्थी – “जी मेरा मतलब है कि हम फॉर्म गांव के कॉलेज से भरे थे और असली विद्यार्थी तो उसी कॉलेज के हैं।लेकिन वहां हम पढ़ने नहीं जाते थे क्योंकि वहां कोई पढ़ने न जाता था और न ही कोई पढ़ाने आता था।तो हमारे उस कॉलेज के प्रबंधक और प्रिंसिपल ने हमसे कहा कि रोज-रोज कॉलेज आकर क्यों अपना संसाधन और ऊर्जा बर्बाद करते हो ?तुम्हारी वजह से हमको भी पढ़ने -पढ़ाने का इंतजाम करना पड़ता है । ये दूरदराज का कॉलेज सिर्फ फॉर्म भरवाने और परीक्षा दिलवाने के लिये मशहूर है ।जो पूरे वर्ष भर में सिर्फ प्रवेश और परीक्षा के महीनों में ही सक्रिय रहता है। इसलिये अगर रोज -रोज पढ़ना है, तो कहीं और भी नाम लिखवा लो। पढ़ना उस कॉलेज में औऱ परीक्षा इस कॉलेज के नाम से दे देना, सो हमने ऐसा ही किया। साल भर शहर के कॉलेज में पढ़ाई की और परीक्षा गांव के कॉलेज से दे दी थी”।
रिपोर्टर- “आपको इसमें कुछ अजीब नहीं लगा कि आपने पढाई एक जगह से की परीक्षा दूसरी जगह से दी”।
विद्यार्थी- “जी हमको भी बहुत अजीब लगा और हम तो समझ ही नहीं पा रहे हैं कि लोगों को क्या बताएं कि कहां के विद्यार्थी हैं? शहर के या गांव के ,पढ़े कहाँ, परीक्षा कहां दिए, लेकिन हमारी मम्मी ने हमको समझाया कि आजकल बड़े -बड़े लोग भी ऐसा करते हैं जैसे कि राहुल गांधी जी का राजनीतिक कॉलेज अमेठी रहा था और परीक्षा देने वायनाड चले गए थे।मेरी मम्मी ने कहा कि इतने बड़े नेता होने के बावजूद ज़रूर उन्होंने अपनी मम्मी की बात मानकर ऐसा किया होगा तो मुझे भी अपनी मम्मी की बात मान लेनी चाहिए ।सो मैंने भी अपनी मम्मी की बात मान ली”।
रिपोर्टर- “वो तो ठीक है लेकिन क्रेडिट तो कोई एक कॉलेज ही लेगा।किसी एक को ही तो आप अपना मानेंगे”।
विद्यार्थी – “जी किसी एक कालेज पर तो ही लफड़ा फंसा हुआ है। पापा कह रहे हैं कि वकील साहब और कुछ लोगों से पूछकर ही दो में से किसी एक कॉलेज का नाम मुझे लेना है ।क्योंकि जांच पड़ताल में उस कॉलेज की कोई बात फ़र्ज़ी निकली तो मुझे जेल जाना पड़ सकता है।उधर मम्मी दोनों कॉलेज के प्रिंसिपल से भी बात कर रही हैं कि जो पूरे साल की मेरी पढाई-लिखाई में जो खर्चा लगा जो भी कॉलेज वो खर्चा दे देगा उसी का मुझे नाम लेना है ।मम्मी-पापा में इसी बात को लेकर रार चल रही है ।देखिये क्या नतीजा निकलता है “?
रिपोर्टर – “आपने किस कोचिंग/अध्यापक से पढ़ाई की इसमें तो कोई सीक्रेट नहीं है ये तो आप बता ही सकते हैं”?
विद्यार्थी – “जी मैं इस सवाल का जवाब नहीं दे सकता ।मेरी मम्मी ने कहा है कि मेरे विवाह के दहेज की रकम से भी बड़ी ‘बिग डील’ का सवाल ये होगा कि मैंने किस कोचिंग /अध्यापक से पढ़ाई की ।सभी कोचिंग वाले अपना ब्रोशर और रेट लिस्ट दे गए हैं कि किसका नाम लेने पर कितने पैसे मिलेंगे ।मम्मी इन सारे ऑफर्स का तुलनात्मक अध्ययन कर रही हैं ,वो मोल भाव करके बतायेंगी कि मुझे किस कोचिंग/अध्यापक का नाम लेना है तभी मैं बोलूंगा। वैसे मोटे तौर पर मैं आपको बता दूं कि मैने किसी कोचिंग या अध्यापक से लगातार प्राइवेट ट्यूशन नहीं लिया है”।
रिपोर्टर- “और भी कुछ आफर मिले हैं क्या आपको”?
विद्यार्थी – “जी बहुत किस्म के आफर मिल रहे हैं जैसे कि रामऔतार दूधवाले ने हमारे घर पर आज से ही दूध का भाव दस रुपये कम कर दिया है और हर महीने एक किलो शुद्ध देशी घी देने की पेशकश की है। उन्होंने शर्त रखी है कि वह अपने तबेले के सामने मेरी फ़ोटो टाँग कर ये प्रचार कर सकें कि उनकी भैंस का दूध पीकर मैं टॉपर बना हूँ। वैसे वह दूधवाले भैया हाल ही में मिलावटी दूध के केस मेँ जेल से छूटकर जमानत पर बाहर आये हैं ।लाला छन्नूमल पंसारी ने इस बात का आफर दिया है कि वो हर महीने हमें एक किलो बादाम फ्री में देंगे अगर मैं सबके सामने ये कह दूं कि मेरे टॉपर बनने में उनकी दुकान के बादाम का बड़ा योगदान है , ये और बात है कि परसों ही नमक की कमी होने की अफवाह उड़ाकर नमक को सौ रुपये किलो बेचने के आरोप में वह कोतवाली पहुंच गए थे। बड़ी मुश्किलों से ले -देकर छूटे हैं कोतवाली से।मम्मी ने इन सबके ऑफर्स को नोट कर लिया है ।अब वही डिसिजन लेंगी”।
रिपोर्टर- “इसके अलावा भी कोई आफर है क्या”?
विद्यार्थी- “जी कई ऑफर्स हैं जैसे कि मोहल्ले की अगरबत्ती बनाने वाली आंटी जो धोनी की फ़ोटो लगाकर अगरबत्ती बेचती थीं। वह आज सुबह ही मम्मी से आकर कह गई हैं कि अब वो सालोंसाल हमें अगरबत्ती मुफ्त देंगी ।बस हमें ये कहना होगा कि उनकी ब्रांड की अगरबत्ती से पूजा-पाठ करने से प्रार्थना ईश्वर ने स्वीकार कर ली और मैं टॉपर बना।जिस टेम्पों से मैं कॉलेज जाता था वो अंकल भी मम्मी से बात कर रहे हैं कि अब वो मुझे हर जगह टेम्पो में मुफ्त ले जाएंगे और मेरी फ़ोटो स्लोगन के साथ अपने टेम्पो पर लिखेंगे कि
“टेम्पो हमारा शुभ है ऐसा,
जिसे टॉपर भी करें पसन्द,
इससे कोचिंग जाओगे तो तेज रहोगे
वरना हो जाओगे मन्द “।
रिपोर्टर – “और भी कोई विशेष आफर है क्या “?
विद्यार्थी- “जिस साईकल से मैं ट्यूशन जाता था ।वो साइकिल बेचने वाले दुकानदार अंकल भी आये थे कह रहे थे कि साइकिल की दुकान पर मेरा फ़ोटो लगाना चाहते हैं कि
“टॉपर्स की सवारी ,
साइकिल है या फेरारी ”
मम्मी ने उनसे एक फिटनेस वाली साइकिल मांगी है ।देखिये सौदा कितने में पटता है”?
रिपोर्टर- “आप की इस कामयाबी में आपके माता पिता का कितना सहयोग और आशीर्वाद है ? ये भी विस्तार से बताएं।“
विद्यार्थी- “जी पिताजी का तो कोई खास योगदान नहीं था ।दो -चार महीने पर झपड़िया देते थे पढ़ने के नाम पर बस। और तो हमें उनका कोई योगदान याद नहीं पड़ता अभी”।
रिपोर्टर- “तो मम्मी की त्याग -तपस्या का फल है आपका टॉप करना”।
विद्यार्थी- “जी मम्मी ने तो ऐसा ही बोला था सभी से कहने के लिए ।लेकिन मैं आपको बता दूं कि मम्मी दिन भर फेसबुक ,व्हाट्सएप्प और इंस्टाग्राम पर ही जुटी रहती थीं ।दिन-रात मोबाइल चलाती थीं वही उनकी दुनिया थी ।एक बार तो मम्मी ने डिप्रेसन में अपनी जीवन को कूड़ा बताकर रोने लगी थीं क्योंकि उनकी पोस्ट पर लाइक कमेंट बहुत कम आये थे ।तब उन्हें दिल्ली वाली आंटी ने समझाया कि बढ़ती उम्र में ऐसे निगेटिव झटकों को सहने के लिये तैयार रहना चाहिए। तब वो नार्मल हुईं वैसे एक बात और थी कि मम्मी दिन भर फ़ोन में उलझी रहीं तो हमें पढ़ने -लिखने का अवसर मिल गया वरना वो दिन भर हमसे ही उलझती रहती थीं ।हमेशा चिक -चिक, कलह,कलपना और पापा को कोसती ही रहती थीं।
रिपोर्टर- “कहाँ हैं आपकी मम्मी?और मुझसे भी तो वो इस सवाल जवाब के पैसे तो नहीं मांगेंगी ?
विद्यार्थी –“जी वो उन कोचिंग वालों से पैसे वसूलने गई हैं जिन्होंने दो तीन दिन से अखबार में मेरी फ़ोटो अपनी कोचिंग के नाम के साथ बिना मम्मी से पूछे और लिए-दिए लगा ली है।और रहा सवाल आपसे पैसा लेने का तो अब आप निकल ही लो। वरना आपकी शामत आ जायेगी वो आ ही रही होंगी, क्योंकि आपने अभी हमें फूटी कौड़ी तक नहीं दी है”।
रिपोर्टर अपना सामान समेटते हुये पूछ बैठा-
“बाई द वे क्या करती हैं आपकी मम्मी”?
विद्यार्थी – “जी वो फेसबुक पर एक लघुकथा ग्रुप की एडमिन-इन-चीफ हैं”।
ये सुनते ही रिपोर्टर वहां से सर पर पैर रखकर भागा।

आपसे वो रिपोर्टर मिला क्या?

 

दाम्पत्य के प्रेत

व्यंग्यकार: दिलीप सिंह

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