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Madhya Pradesh News : मध्य प्रदेश में ‘सांप घोटाला’ का खुलासा : 38 बार सांप के काटने से मिली 1.52 करोड़ की रकम, जानें पूरी कहानी!

by Rakesh Pandey
Snake scam' exposed in Madhya Pradesh
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भोपाल/सिवनी (मध्य प्रदेश) : मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में एक बेहद चौंकाने वाला और अनोखा घोटाला सामने आया है, जिसे अब ‘सांप घोटाला’ के नाम से जाना जा रहा है। इस घोटाले में सांप के काटने से हुई मौतों के नाम पर फर्जी मुआवजा राशि जारी कर 1.52 करोड़ रुपये से अधिक की रकम का गबन किया गया। इस मामले का खुलासा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने किया है, जिन्होंने इसे राज्य सरकार की लापरवाही और भ्रष्टाचार का ज्वलंत उदाहरण बताया है।

सर्पदंश पर मुआवजे की सरकारी योजना का दुरुपयोग

राज्य सरकार की ओर से चलाई जा रही योजना के तहत सांप के काटने से मौत होने पर पीड़ित परिवार को 4 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाता है। लेकिन सिवनी जिले में इस योजना का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग करते हुए फर्जी दस्तावेजों के आधार पर भुगतान जारी कर दिया गया।

चौंकाने वाले आंकड़े : एक ही व्यक्ति 38 बार मरा!

जांच में सामने आया कि एक व्यक्ति ‘रमेश’ के नाम पर 30 बार और ‘रामकुमार’ के नाम पर 19 बार मुआवजा लिया गया। सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि कागजों में एक ही व्यक्ति को 38 बार सांप ने काटा और हर बार उसकी मौत दिखाई गई।
प्रत्येक बार 4 लाख रुपये मुआवजा दर्शाया गया और कुल मिलाकर 1.52 करोड़ रुपये की हेराफेरी की गई।

फर्जी दस्तावेज और बिना जांच भुगतान

यह घोटाला इस कारण और भी गंभीर हो जाता है, क्योंकि इन मामलों में कोई मृत्यु प्रमाण पत्र, पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट या पुलिस सत्यापन तक मौजूद नहीं था। इसके बावजूद, मुआवजा फाइल पास की गई और रकम कोषालय से सीधे जारी कर दी गई।

जीतू पटवारी का आरोप

कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष जीतू पटवारी ने प्रेस को संबोधित करते हुए कहा कि हमने बहुत से घोटाले सुने हैं, लेकिन कभी नहीं सोचा था कि सांप के काटने पर भी घोटाला हो सकता है। ये सिर्फ मध्य प्रदेश में ही संभव है’ उन्होंने एक वीडियो सबूत भी साझा किया, जिसमें दस्तावेजों के माध्यम से घोटाले की पुष्टि की गई है। पटवारी ने सरकार से उच्च स्तरीय जांच और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है। सरकार और प्रशासन सवालों के घेरे में इस घोटाले के खुलासे के बाद राज्य सरकार और प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठने लगे हैं। यह मामला न केवल वित्तीय अनियमितताओं को उजागर करता है, बल्कि सरकारी योजनाओं की जवाबदेही और पारदर्शिता पर भी प्रश्नचिन्ह लगाता है।

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