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Manmohan Singh Death : वह ऐतिहासिक रात जब डॉ. मनमोहन सिंह ने अमेरिका से न्यूक्लियर डील को फाइनल करने के लिए सरकार को दांव पर लगाया

by Rakesh Pandey
Manmohan Singh Death
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नयी दिल्ली : पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का 92 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनका प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल और उनके द्वारा लिए गए कई ऐतिहासिक निर्णय हमेशा याद किए जाएंगे। इनमें से एक था भारत और अमेरिका के बीच न्यूक्लियर डील। इस डील को लेकर एक ऐतिहासिक रात हुई थी, जब मनमोहन सिंह ने अपने व्यक्तिगत और राजनीतिक संकटों को दरकिनार करते हुए इस डील को अंतिम रूप दिया। यह घटना उस समय की है, जब मनमोहन सिंह और कोंडोलीजा राइस के साथ अमेरिका में एक महत्वपूर्ण बैठक के दौरान दुनिया भर के लोगों का ध्यान केंद्रित था।

भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव और डील की आवश्यकता

1974 में पोखरण में परमाणु परीक्षण के बाद से भारत और अमेरिका के रिश्ते तनावपूर्ण थे। मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री बनने के बाद, उन्होंने भारत और अमेरिका के रिश्तों को सुधारने की पहल की। मई 2004 में सत्ता संभालने के बाद मनमोहन सिंह ने अमेरिका के साथ न्यूक्लियर डील की दिशा में कदम बढ़ाए। जुलाई 2005 में उनका अमेरिका दौरा इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।

कोंडोलीजा राइस और डॉ. मनमोहन सिंह का नेतृत्व

इस डील को अंतिम रूप देने में कोंडोलीजा राइस का भी अहम योगदान था, जिन्होंने जनवरी 2005 में अमेरिका के विदेश मंत्री का पद संभाला था। राइस ने भारत के साथ न्यूक्लियर डील को अपनी प्राथमिकता में शामिल किया और मार्च 2005 में भारत का दौरा किया। यहां उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और विदेश मंत्री नटवर सिंह से मुलाकात की और दोनों नेताओं को बताया कि राष्ट्रपति बुश भारत के साथ इस डील को लेकर सकारात्मक हैं।

17 जुलाई 2005 की रात के अहम फैसले

17 जुलाई 2005 को जब डॉ. मनमोहन सिंह अमेरिका पहुंचे, तो उनके साथ उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल था। मनमोहन सिंह को पूरा विश्वास था कि वह अमेरिका के साथ न्यूक्लियर डील को अंतिम रूप देंगे। लेकिन जैसे ही वह अमेरिका पहुंचे, उन्होंने दो बड़े निर्णायक फैसले लिए। पहले, उन्होंने एटॉमिक एनर्जी कमीशन (एईसी) के चेयरमैन अनिल काकोडकर को अपने प्रतिनिधिमंडल में शामिल किया। उन्हें यह अंदेशा था कि अमेरिका के साथ इस डील में कुछ आपत्तियां हो सकती हैं, विशेषकर भारत के न्यूक्लियर रिएक्टर्स को अंतरराष्ट्रीय निगरानी में लाने को लेकर।

डील को लेकर समर्थन जुटाने की थी चुनौती

इसके अलावा, लेफ्ट पार्टियों और सोनिया गांधी की भी आपत्तियां थीं। सोनिया गांधी, जो यूपीए सरकार को समर्थन दे रही थीं, चाहती थीं कि लेफ्ट पार्टियों के साथ अच्छे रिश्ते बनाए रखें। ऐसे में, मनमोहन सिंह को इस डील को लेकर राजनीतिक समर्थन जुटाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

18 जुलाई 2005 की रात कोंडोलीजा राइस का हस्तक्षेप

18 जुलाई 2005 की रात को एक महत्वपूर्ण मोड़ आया, जब कोंडोलीजा राइस ने नटवर सिंह से फोन पर संपर्क किया। राइस ने नटवर सिंह से कहा कि वह मनमोहन सिंह से मुलाकात करना चाहती हैं। यह मिलन उस समय हुआ जब नटवर सिंह और भारतीय प्रतिनिधिमंडल विलार्ड होटल में ठहरे हुए थे। राइस ने कहा कि वह इस डील को बर्बाद नहीं होने देना चाहती थीं और मनमोहन सिंह से मिलकर डील पर आगे बढ़ने के लिए उनका समर्थन हासिल करना चाहती थीं।

कोंडोलीजा राइस की ताकत और मनमोहन का निर्णायक कदम

इसके बाद, राइस ने मनमोहन सिंह से मुलाकात के लिए उन्हें मनाने में सफलता पाई। 19 जुलाई की सुबह, राइस ने मनमोहन सिंह से कहा, “मुझे बताइए कि कहां दिक्कत आ रही है, मैं उसका समाधान करना चाहती हूं।” राइस ने मनमोहन सिंह को यह विश्वास दिलाया कि यह डील भारत-अमेरिका संबंधों के लिए एक नया मोड़ लाएगी और राष्ट्रपति बुश के लिए भी यह एक महत्वपूर्ण निर्णय होगा।

इस बातचीत के बाद, मनमोहन सिंह ने इस डील पर आगे बढ़ने की अनुमति दी। राइस ने राष्ट्रपति बुश से मुलाकात की और उन्हें बताया कि इस डील को अब मंजूरी मिल गई है। इसके बाद, 19 जुलाई को राष्ट्रपति बुश और मनमोहन सिंह के बीच एक ऐतिहासिक बैठक हुई, जिसमें दोनों नेताओं ने इस डील को अंतिम रूप दिया।

भारत-अमेरिका के रिश्तों में आया नया मोड़
इस महत्वपूर्ण डील के फाइनल होने के बाद, भारत और अमेरिका के रिश्तों में एक नया मोड़ आया। यह उस रात की कहानी है जब डॉ. मनमोहन सिंह ने राजनीतिक जोखिम उठाकर, अपने आदर्शों और राष्ट्रहित को ध्यान में रखते हुए भारत के लिए एक ऐतिहासिक समझौता किया। उनका यह निर्णय आज भी एक उदाहरण के तौर पर देखा जाता है, जब एक नेता ने अपनी संप्रभुता और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के बीच सही संतुलन बनाए रखा।

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