Home » दिल्ली हाईकोर्ट ने व्यभिचार का मामला किया खारिज, कहा- “महिलाएं पति की संपत्ति नहीं होतीं”

दिल्ली हाईकोर्ट ने व्यभिचार का मामला किया खारिज, कहा- “महिलाएं पति की संपत्ति नहीं होतीं”

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि यह निर्णय न केवल कानून में सुधार का प्रतीक है, बल्कि समाज में महिलाओं को लेकर रूढ़िवादी सोच के विरुद्ध भी एक मजबूत संदेश है।

by Reeta Rai Sagar
WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Follow Now

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति द्वारा दायर व्यभिचार (Adultery Case) के मामले को खारिज कर दिया, जिसमें उसने अपनी पत्नी के साथ कथित संबंध रखने वाले एक अन्य व्यक्ति के खिलाफ शिकायत की थी। अदालत ने स्पष्ट किया कि किसी महिला को “पति की संपत्ति” की तरह नहीं देखा जा सकता और इस मानसिकता को खत्म करने की आवश्यकता है।

व्यभिचार कानून और सुप्रीम कोर्ट का जोसेफ शाइन केस
न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा ने सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले जोसेफ शाइन बनाम भारत सरकार (2018) का हवाला दिया, जिसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 497 (Section 497 of IPC) को असंवैधानिक घोषित किया गया था। अदालत ने कहा कि यह निर्णय न केवल कानून में सुधार का प्रतीक है, बल्कि समाज में महिलाओं को लेकर रूढ़िवादी सोच के विरुद्ध भी एक मजबूत संदेश है।

महाभारत की द्रौपदी का संदर्भ
न्यायमूर्ति कृष्णा ने महाभारत की पात्र द्रौपदी का उल्लेख करते हुए कहा, “द्रौपदी को उसके पति युधिष्ठिर ने जुएं में दांव पर लगा दिया था। द्रौपदी को अपनी मर्जी से कुछ कहने या करने का अधिकार नहीं था और इसका परिणाम एक विनाशकारी युद्ध के रूप में सामने आया।” उन्होंने कहा कि यद्यपि यह कथा बहुत प्रचलित है, लेकिन समाज को यह समझने में सदियों लग गए कि महिलाओं को वस्तु समझना गलत है।

शिकायतकर्ता के दावे और अदालत की प्रतिक्रिया
शिकायतकर्ता ने दावा किया कि उसकी पत्नी और आरोपी ने लखनऊ के एक होटल में एक विवाहित जोड़े के रूप में रुककर यौन संबंध बनाए। जब उसने अपनी पत्नी से इस विषय में बात की, तो पत्नी ने उसे कहा कि यदि उसे समस्या है तो वह उसे छोड़ दे।

इस पर न्यायालय ने कहा कि केवल होटल के एक कमरे में साथ रुकने से यह सिद्ध नहीं होता कि दोनों के बीच यौन संबंध बने हैं। अदालत ने स्पष्ट किया कि “एक ही कमरे में रहना किसी यौन क्रिया का प्रमाण नहीं हो सकता।”

धारा 497 रद्द होने के बाद का प्रभाव
अदालत ने अपने निर्णय में कहा कि किसी कानून को असंवैधानिक घोषित किए जाने के बाद उसका प्रभाव सभी लंबित मामलों पर भी लागू होता है। इसी आधार पर अदालत ने आरोपी व्यक्ति को मामले से डिस्चार्ज कर दिया और शिकायत को रद्द कर दिया।

दिल्ली हाईकोर्ट का यह निर्णय न केवल कानूनी दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि समाज में महिलाओं के प्रति व्याप्त पितृसत्तात्मक सोच को भी चुनौती देता है। यह फैसला पुनः स्मरण कराता है कि किसी महिला के अधिकार और स्वतंत्रता को नजरअंदाज करना संविधान की आत्मा के विरुद्ध है।

Related Articles