Home » मकर संक्रांति का क्या है आध्यात्मिक महत्व, आप भी जानिए

मकर संक्रांति का क्या है आध्यात्मिक महत्व, आप भी जानिए

इस दिन सूर्योदय से सूर्यास्त तक वातावरण अधिक चैतन्यमय होता है। साधना करने वाले को इस चैतन्य का लाभ होता है। इस दिन ब्रह्मांड की चंद्रनाडी कार्यरत होती है।

by Reeta Rai Sagar
WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Follow Now

फीचर डेस्क : ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने स्‍वयं उनके घर जाते हैं। क्योंकि शनिदेव मकर राशि के स्‍वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। इस बार यह 14 जनवरी को मनाया जाएगा।

सनातन संस्था की बबीता गांगुली बताती हैं कि इस दिन सूर्योदय से सूर्यास्त तक वातावरण अधिक चैतन्यमय होने से साधना करने वाले को इस चैतन्य का लाभ हाेता है। कर्क संक्रांति से मकर संक्रांति तक के काल को दक्षिणायन कहते है। उत्तरायण में मृत्‍यु हुए व्यक्ति की अपेक्षा दक्षिणायन में मृत्‍यु हुए व्‍यक्‍ति की दक्षिण (यम) लोक में जाने की संभावना अधिक होती है।

यहां पर हमें ध्‍यान में यह लेना है कि, भारत में सभी स्‍थानों पर यह उत्‍सव मनाया जाता है। जिससे हिन्दू धर्म का महत्‍व भी ध्‍यान में आता है। संस्‍कृति के कारण एकता साध्‍य होती है। देश तो केवल भौगोलिक सीमाएं है, पर संस्‍कृति के कारण वह राष्‍ट्र का रूप धारण कर भिन्‍न भाषा और भौगोलिक प्रदेश के लोगों को भी एक धागे में कैसे पिरोता है, यह हमें इससे ध्‍यान में आता है। इसलिए त्‍योहारों का एक अनन्‍य साधारण महत्त्व है। इससे भी यह स्‍पष्ट होता है कि, भारत में भाषा, राज्‍य भिन्न हो, तो भी एक संस्कृति-एक राष्ट्र है। इस कारण भारत कभी एक राष्‍ट्र नही था, इस आरोप का मिथ्‍या रूप भी ध्‍यान में आता है।

मकर संक्रांति में दान का महत्व

मकर संक्रांति से रथ सप्तमी तक का काल पर्वकाल होता है। इस पर्वकाल में किया गया दान एवं पुण्यकर्म विशेष फलप्रद होता है। धर्मशास्त्र के अनुसार इस दिन दान जप और धार्मिक अनुष्ठानों का बहुत महत्व होता है। इस दिन दिया गया दान पुनर्जन्म के बाद सौ गुना प्राप्त होता है।

किन वस्तुओं का दान करना चाहिए

‘नए बर्तन, वस्त्र, अन्न, तिल, तिलपात्र, गुड़, गाय, घोड़ा, स्वर्ण अथवा भूमिका यथाशक्ति दान करें। इस दिन सुहागिनें दान करती हैं। कुछ पदार्थ वे कुमारिकाओं से दान करवाती हैं और उन्हें तिल-गुड़ देती हैं।’ सुहागिनें जो हल्दी-कुमकुम का दान देती हैं, उसे ‘उपायन देना’ कहते हैं।

उपायन में क्या न दें

आजकल स्टील के बर्तन, प्लास्टिक की वस्तुओं जैसी अधार्मिक सामग्री उपायन के रूप में देने की अनुचित प्रथा है। ये असात्त्विक उपयान देने के कारण, उपयान लेनेवाला और देनेवाला, दोनों व्यक्तियों के बीच लेन-देन बढता है। इसकी अपेक्षा सौभाग्य की वस्तु जैसे उदबत्ती (अगरबत्ती), उबटन, धार्मिक ग्रंथ, पोथी, देवताओं के चित्र, अध्यात्म संबंधी दृश्य श्रव्य-चक्रिकाएं (CDs) जैसी अध्यात्म के लिए पूरक वस्तुएं उपायन स्वरूप देनी चाहिए। सात्विक उपायन देने के कारण ईश्वर से अनुसन्धान होकर दोनों व्यक्ति को चैतन्य मिलता है जिसके कारण ईश्वर की कृपा होती है।

तीर्थस्नान करने का महापुण्य

मकर संक्रांति पर सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक पुण्यकाल रहता है। इस काल में तीर्थस्नान का विशेष महत्त्व हैं । गंगा, यमुना, गोदावरी, कृष्णा एवं कावेरी नदियों के किनारे स्थित क्षेत्र में स्नान करनेवाले को महापुण्य का लाभ मिलता है।

तिल का उपयोग

तिल में सत्त्वतरंगें ग्रहण करने की क्षमता अधिक होती है। इसलिए तिल-गुड़ का सेवन करने से अंतःशुद्धि होती है और साधना अच्छी होने हेतु सहायता होती हैं। तिल के दानों में घर्षण होने से सात्त्विकता का आदान-प्रदान होता है। श्राद्ध में तिल का उपयोग करने से असुर इत्यादि श्राद्ध में विघ्न नहीं डालते । मकर संक्रांति के दिन तिल का तेल एवं उबटन शरीर पर लगाना, तिल-मिश्रित जल से स्नान, तिल-मिश्रित जल पीना, तिल-होम करना, तिल-दान करना, इन छह पद्धतियों से तिल का उपयोग करने वालों के सर्व पाप नष्ट होते हैं। सर्दी के दिनों में आने वाली मकर संक्रांति पर तिल खाने से लाभ होता है।

काले वस्त्र न पहनें!

मकर संक्रांति के दिन छोटे बालक तथा सुवासिनी काला वस्त्र परिधान करते हैं; किंतु हिन्दू धर्म में काला रंग अशुभ माना जाता है तथा अध्यात्म के अनुसार काला रंग वातावरण के तमोगुणी स्पंदन आकृष्ट करता है । अतः इस रंग के वस्त्र परिधान करने से तमोगुणी स्पंदन आकृष्ट होते हैं । उस कारण व्यक्ति को कष्ट हो सकते हैं ।

मकर संक्रांति का साधना की दृष्टि से महत्व

इस दिन सूर्योदय से सूर्यास्त तक वातावरण अधिक चैतन्यमय होता है। साधना करने वाले को इस चैतन्य का लाभ होता है। इस दिन ब्रह्मांड की चंद्रनाडी कार्यरत होती है। इसलिए, वातावरण में रज-सत्व तरंगों की मात्रा बढती है। अतः मकर संक्रांति काल को साधना-उपासना के लिए बहुत अनुकूल बताया गया है और यहां यह भी ध्‍यान में आता है कि ऋषि-मुनियों को ग्रहों की गति का यथायोग्य आकलन था। आज वैज्ञानिक उपकरणों से उसकी प्रामाणिकता भी स्‍पष्ट हो रही है। ऋषि-मुनियों ने ग्रहों की इस गति का व्‍यक्‍ति और वातावरण पर होने वाले परिणामों का आकलन कर विभिन्न त्योहारों के माध्यम से धर्माचरण की ऐसी कृतियां बताई, जिससे सभी को लाभ हो पाए और इन ग्रहों के भ्रमण को भी सभी समझ पाएं । सनातन संस्कृति की यह विशेषता हमें यहां पर ध्‍यान में लेनी चाहिए।

सन्दर्भ : सनातन द्वारा संकलित ग्रंथ ‘त्योहार, धार्मिक उत्सव और व्रत’

Related Articles