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भगवान शिव को केतकी के फूल क्यों नहीं चढ़ाए जाते? जानें इस रिपोर्ट में

by Rakesh Pandey
भगवान शिव को केतकी के फूल क्यों नहीं चढ़ाए जाते भगवान शिव को उनके प्रिय धतूरे के फूल के साथ बेलपत्र, गुलाब, मंदार का फूल चढ़ाते हैं महादेव को केतकी के फूल नही चढ़ाने का वर्णन शिव पुराण में भी है भगवान शिव ने केतकी के फूल को श्राप दिया है
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धार्मिक डेस्क : देवों के देव महादेव भगवान शिव को ऐसे तो सभी फूल पसंद हैं और चढ़ाए भी जाते हैं। क्या आप जानत हैं कि एक ऐसा भी फूल है जो भगवान शिव को नहीं चढ़ाया जाता। देवो के महादेव को सबसे प्रिय धतूरे का फूल होता है। सावन का महीना महादेव को बेहद प्रिय है। भक्त इस महीने में भगवान शिव को उनके प्रिय धतूरे के फूल के साथ बेलपत्र, गुलाब, मंदार का फूल चढ़ाते हैं।

यह है पौराणिक मान्यता

एक ऐसा फूल है जिसे भगवान शिव को नहीं चढ़ाया जाता। इस फूल का नाम है “केतकी।” महादेव को केतकी के फूल नही चढ़ाने का वर्णन शिव पुराण में भी है। इस फूल के बारे में एक पौराणिक मान्यता बहुत प्रचलित है।

यह है पूरा प्रसंग

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा जी में श्रेष्ठता को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया। दोनों में से कोई पीछे हटने के लिए तैयार नहीं था। भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी में श्रेष्ठता को लेकर विवाद हल नहीं होता देख देवों के देव महादेव को आना पड़ा।

उन्होंने एक शिवलिंग उत्पन कर ब्रह्मा और विष्णु जी के बीच एक शर्त रख दी। उन्होंने कहा कि जो भी इस शिवलिंग के आदि और अंत का पता लगा लेगा वहीं श्रेष्ठ कहलायेगा। भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा जी दोनों ही इस शर्त के लिए तैयार हो गए। भगवान विष्णु ज्योतिर्लिंग के ऊपर की ओर गए। वहीं ब्रह्मा जी ज्योतिर्लिंग का आरंभ खोजने नीचे पाताल की ओर जाने लगे।

काफी समय बीतने के बाद दोनों ब्रह्मा और विष्णु शिवलिंग के छोर तक नहीं पहुंच पाए। ज्योतिर्लिंग के आदि और अंत का पता नहीं कर सके। भगवान विष्णु जी ने अपनी असमर्थता जताते हुए भगवान शिव से कहा महादेव हम इसके अंत का पता लगाने में असमर्थ हूं। वहीं दूसरी ओर ब्रह्मा जी ज्योतिर्लिंग का आरंभ नहीं मिल पाने पर दुखी हुए, लेकिन अपनी श्रेष्ठता साबित करने के लिए उनके दिमाग में एक बात सूझी, उनके रास्ते में एक केतकी का फूल मिला था, और वे इस केतकी के फूल को लेकर भगवान शिव के पास पहुंचे और कहा – देखिए मैं इस ज्योतिर्लिंग का आरंभ खोज लाया हूं।

अब मै श्रेष्ठ हूं। सबूत के रूप में एक केतकी फूल लेकर शिव जी को दिखाया। भगवान शिव ब्रह्मा जी की इस करतूत को जान रहे थे। उनकी झूठी बातों पर उन्होंने काफी क्रोध किया और उसी समय ब्रह्मा जी के पंचमुख में से एक मुख काट दिया। उसके बाद ब्रह्मा जी चार मुंह के हो गए। उसके बाद ब्रह्मा जी को भी अपनी गलती का एहसास हुआ।

बाद में भगवान शिव ने केतकी के फूल को भी श्राप दिया। उन्होंने कहा कि मेरी पूजा में केतकी का फूल मान्य नहीं होगा। उसके बाद से केतकी फूल भगवान शिव के लिए मान्य नहीं माना जाता है। कोई भी भक्त भगवान शिव को केतकी का फूल नहीं अर्पित करता।

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