झांसी : उत्तर प्रदेश के झांसी जिले में शुक्रवार रात एक बेहद दर्दनाक घटना घटी, जब महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज के नवजात शिशु देखभाल इकाई (NICU) में आग लगने से 10 बच्चों की जान चली गई। यह हादसा रात करीब 10.30 से 10.45 के बीच हुआ, जब आग ने NICU के एक हिस्से को अपनी चपेट में ले लिया। प्रारंभिक जानकारी के अनुसार, आग शार्ट सर्किट के कारण लगी थी। हालांकि, इस घटना से एक सकारात्मक पहलू यह रहा कि NICU के बाहर जितने भी बच्चे थे, उन्हें बचा लिया गया, लेकिन अंदर मौजूद 10 बच्चों की जलकर मौत हो गई।
दिल्ली में भी हुआ था ऐसा ही हादसा
यह पहली बार नहीं है जब नवजातों की मौत आग के कारण हुई हो। इससे करीब 174 दिन पहले, दिल्ली के विवेक विहार इलाके में भी इसी प्रकार का हादसा हुआ था। 26 मई 2024 को पूर्वी दिल्ली के बेबी केयर सेंटर में आग लगने से सात नवजात बच्चों की मौत हो गई थी। यह घटना तब हुई थी, जब रात में एक सिलेंडर ब्लास्ट के बाद आग ने पूरे अस्पताल को अपनी चपेट में ले लिया था। हादसे में घायल 12 बच्चों को रेस्क्यू कर अस्पताल भेजा गया था, लेकिन दुर्भाग्यवश 7 बच्चों की जान चली गई थी।
दिल्ली के बेबी केयर सेंटर में आग के कारणों को लेकर जांच में यह सामने आया था कि ऑक्सीजन सिलेंडर ब्लास्ट के कारण यह हादसा हुआ। बताया गया था कि एंबुलेंस में ऑक्सीजन रिफिलिंग के दौरान सिलेंडर ब्लास्ट हुआ था और इससे एक के बाद एक तीन सिलेंडर फटे, जिससे आग फैल गई। यह घटना दिल दहला देने वाली थी, क्योंकि आग के बाद बच्चों के इलाज के लिए कोई समय नहीं मिल पाया और अस्पताल में स्थिति बहुत बुरी हो गई थी।
झांसी में बचाव कार्य जारी
झांसी में हुई घटना के बाद, स्थानीय प्रशासन और राहत-बचाव टीमों ने तुरंत कार्य करना शुरू किया। जिलाधिकारी अविनाश कुमार ने मीडिया को बताया कि आग लगने की जानकारी मिलने के बाद, अग्निशमन विभाग और स्थानीय अधिकारियों की मदद से बचाव कार्य जारी है। उन्होंने यह भी बताया कि झुलसे हुए बच्चों का इलाज जारी है और जो बच्चे गंभीर रूप से घायल हैं, उनकी स्थिति पर निगरानी रखी जा रही है। फिलहाल, घटना की जांच के लिए एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया गया है, जिसमें मंडलायुक्त और पुलिस उपमहानिरीक्षक के नेतृत्व में जांच की जा रही है।
इन घटनाओं से सबक लेने की जरूरत
इन घटनाओं ने देशभर में शिशु देखभाल केंद्रों की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं। झांसी और दिल्ली की घटनाओं से यह स्पष्ट है कि शिशु देखभाल इकाइयों में सुरक्षा के मानकों का पालन करना अत्यंत आवश्यक है। इन दोनों हादसों के बीच समय का अंतर लगभग 6 महीने का था, फिर भी ऐसी घटना फिर से घटी। यदि पहले से इस दिशा में ठोस कदम उठाए गए होते, तो शायद इन दुर्घटनाओं से बचा जा सकता था।
शिशु देखभाल केंद्रों में बच्चों की सुरक्षा से जुड़ी गंभीर सवाल उठते हैं। अस्पतालों में आग से बचाव के लिए उचित उपायों की कमी और सुरक्षा व्यवस्था में लापरवाही स्पष्ट रूप से नजर आ रही है। इन घटनाओं से यह साबित होता है कि बेहतर निरीक्षण, सुरक्षा उपायों और आग से बचाव के मानकों को सख्ती से लागू करने की आवश्यकता है।
झांसी और दिल्ली में हुईं यह घटनाएं बहुत ही दुखद हैं और हमें यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि अस्पतालों और शिशु देखभाल केंद्रों में बच्चों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता क्यों नहीं दी जाती। अब वक्त आ गया है कि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए सख्त कानून और नियम बनाए जाएं, ताकि भविष्य में इस तरह के हादसों से बच्चों की जान को बचाया जा सके।