मोतिहारीः बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू को एक और बड़ा झटका लगा है। पार्टी के 15 नेताओं ने वक्फ संशोधन बिल के पास होने के बाद अपनी-अपनी पदों से इस्तीफा दे दिया। यह घटना पूर्वी चंपारण जिले के ढाका विधानसभा क्षेत्र से सामने आई, जहां पार्टी के कई बड़े नेताओं ने अपनी नाराजगी व्यक्त की और इस्तीफा सौंप दिया।
क्या है पूरा मामला?
जदयू के नेताओं का कहना है कि पार्टी ने वक्फ बिल को लेकर उनके विश्वास को तोड़ा है। वे चाहते थे कि पार्टी इस बिल को पास करने से पहले अल्पसंख्यक समुदाय के विचारों का ध्यान रखे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इस्तीफा देने वाले नेताओं में ढाका प्रखंड अध्यक्ष युवा जदयू गौहर आलम, नगर परिषद कोषाध्यक्ष मो. मुर्तजा, प्रखंड युवा उपाध्यक्ष मो. शब्बीर आलम, नगर अध्यक्ष अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ मौसिम आलम, नगर सचिव जफीर खान और अन्य प्रमुख कार्यकर्ता शामिल हैं।
नेताओं ने क्या आरोप लगाए?
इस्तीफा देने वाले नेताओं ने आरोप लगाया कि पार्टी ने अल्पसंख्यक समुदाय के हितों को नजरअंदाज किया है, जबकि वे इस बिल के पास होने से पहले आश्वस्त थे कि पार्टी इस पर विचार करेगी और अल्पसंख्यकों की भावनाओं का सम्मान करेगी। गौहर आलम ने कहा, “हमने पार्टी पर विश्वास किया था कि वह वक्फ संशोधन बिल को लेकर हमारे समुदाय के हितों का ध्यान रखेगी, लेकिन पार्टी ने हमारे साथ विश्वासघात किया है।”
गौहर आलम ने यह भी दावा किया कि इस घटनाक्रम के बाद कई और नेता जदयू छोड़ने की योजना बना रहे हैं। उन्होंने साफ तौर पर कहा, “हमें इस बात का गहरा दुख है कि पार्टी ने हमें धोखा दिया है और हम सभी ने मिलकर इस्तीफा सौंप दिया है।”
जदयू का जवाब
जदयू के जिला अध्यक्ष ने इस मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि पार्टी के अंदर लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत सभी मुद्दों को सुलझाया जाएगा। उनका कहना था कि इस्तीफा देने वाले नेताओं से बातचीत की जाएगी और पार्टी के स्टैंड के बारे में उन्हें अवगत कराया जाएगा। उन्होंने यह भी बताया कि वक्फ बिल में पार्टी ने कई अहम सुझाव दिए थे, जिन्हें शामिल किया गया है।
इसके अलावा, पार्टी के नेता यह भी दावा कर रहे हैं कि बिल के पास होने से पहले कई सुझावों को वक्फ संशोधन बिल में शामिल किया गया था और पार्टी ने अल्पसंख्यकों के हितों का ख्याल रखा है।
पहले भी इस्तीफे हुए थे
यह पहली बार नहीं है जब जदयू में असंतोष की स्थिति उत्पन्न हुई है। इससे पहले 4 अप्रैल को भी कई मुस्लिम नेताओं ने इस्तीफा दे दिया था। इनमें जदयू के अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रदेश सचिव नवाज मलिक, कासिम अंसारी, शहनवाज आलम और मोहम्मद तबरेज़ सिद्दीकी जैसे प्रमुख नेता शामिल थे। हालांकि, पार्टी ने इन नेताओं को अपने सदस्य होने से नकार दिया था और दावा किया था कि उन्होंने बिना उचित प्रक्रिया के इस्तीफा दिया है।
पार्टी पर पड़ेगा असर?
हालांकि पार्टी के जिला नेतृत्व का कहना है कि इन इस्तीफों का पार्टी की स्थिति पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा, लेकिन यह घटनाक्रम जदयू के लिए चिंता का विषय बन चुका है। पार्टी के भीतर बढ़ता असंतोष और इस्तीफे के सिलसिले को देखकर यह माना जा सकता है कि वक्फ संशोधन बिल और पार्टी के रुख को लेकर पार्टी के भीतर एक गहरा मतभेद है, जो भविष्य में और भी समस्याएं पैदा कर सकता है।
इस समय, जब राज्य में चुनावी मौसम भी नजदीक है, जदयू के लिए यह वक्त चुनौतीपूर्ण हो सकता है। पार्टी को इस संकट से उबरने और अपने गुस्साए नेताओं को शांत करने के लिए तत्काल कदम उठाने होंगे।