धर्मकर्म डेस्क: सनातन धर्म में चित्रगुप्त पूजा का खास महत्व है। इस दिन चित्रगुप्त भगवान की पूजा करने का विधान है। भगवान चित्रगुप्त को यमराज का सहायक माना जाता है। भगवान चित्रगुप्त ही मृत्यु के बाद मनुष्यों के अच्छे-बुरे कर्मों का हिसाब-किताब यमराज को बताते हैं। किसे स्वर्ग जाना है और किसे नर्क इसका निर्णय भी चित्रगुप्त भगवान ही लेते हैं। चित्रगुप्त पूजा दीवाली के बाद मनाई जाती है, जो कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को होती है। इस दिन कायस्थ परिवार के लोग भगवान चित्रगुप्त की पूजा करते हैं और कलम-स्याही की पूजा की जाती है। इस दिन कायस्थ समाज के लोग न कागज उठाते हैं और न ही कलम।
कब है चित्रगुप्त पूजा?
पंचांग के अनुसार, कार्तिक महिने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को हर साल चित्रगुप्त पूजा की जाती है। इस साल यह पर्व 14 नवंबर, दिन मंगलवार को है। द्वितीया तिथि की शुरुआत 14 नवंबर के दोपहर 02:36 बजे से होगी और अगले दिन 15 नवंबर को दोपहर 01:47 बजे इसका समापन होगा। इस दिन राहुकाल को छोड़कर किसी भी मुहूर्त में आप चित्रगुप्त भगवान की पूजा कर सकते हैं।
क्या है धार्मिक महत्व?
कहा जाता है कि भगवान चित्रगुप्त का जन्म ब्रह्मा जी की काया हुआ था, कायस्थ समाज इन्हें अपना आराध्य मानते हैं। इस दिन कारोबार से जुड़े काम का लेखा-जोखा चित्रगुप्त के समक्ष रखा जाता है। चित्रगुप्त की पूजा से व्यवसाय में बरकत बनी रहती है। भगवान चित्रगुप्त मनुष्यों के जीवन के प्रत्येक कर्म का लेखा-जोखा रखते हैं। वे मृत्यु के बाद मनुष्यों को उनके कर्मों के अनुसार फल प्रदान करते हैं। चित्रगुप्त पूजा करने से मनुष्यों के पापों का नाश होता है और उन्हें पुण्य की प्राप्ति होती है। इससे उन्हें मोक्ष की प्राप्ति में भी मदद मिलती है। चित्रगुप्त भगवान की पूजा करने से व्यापार और व्यवसाय में सफलता मिलती है। विधि-विधान के साथ पूजा करने से बुद्धि और विवेक में वृद्धि होती है। कलयुग में चित्रगुप्त पूजा का विशेष महत्व है। मृत्यु के उपरांत कर्मों के अनुरूप व्यक्ति को स्वर्ग और नर्क में स्थान मिलता है। बुरे कर्म करने वाले लोगों को नर्क की यातनाएं सहनी पड़ती हैं। चित्रगुप्त जी की पूजा करने से जीवन में मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। इसके अलावा, चित्रगुप्त जी की कृपा से नर्क की यातनाओं से मुक्ति मिलती है।
चित्रगुप्त पूजा के लिए शुभ मुहूर्त
सुबह का मुहूर्त – सुबह 10.48 से दोपहर 12.13बजे तक
अभिजित मुहूर्त – सुबह 11.50 से दोपहर 12.36 तक
अमृत काल मुहूर्त – शाम 05.00 से शाम 06.36 तक
राहुकाल समय – दोपहर 03.03 से शाम 04.28 तक
भगवान चित्रगुप्त पूजा विधि
चित्रगुप्त जी की पूजा विधि-विधान से करनी चाहिए। पूजा के लिए चौक बनाकर उस पर एक पाटा या चौकी रखें। इस चौकी पर भगवान चित्रगुप्त की तस्वीर को रखें। इसके बाद श्रद्धापूर्वक उन्हें रोली, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, दक्षिणा, प्रसाद आदि अर्पित करें। इसके बाद एक नए कलम से एक कागज पर राम-राम लिखकर उस कागज को भरें। इसके बाद कागज और पेन को उस चौकी पर रखें, जहां चित्रगुप्त महाराज की तस्वीर रखी है। इस कलम और कागज की पूजा करें। रोली, अक्षत वगैरह समर्पित करें। इसके बाद भगवान चित्रगुप्त से जाने अनजाने में हुए पापों की क्षमा याचना करें और इसके बाद भगवान चित्रगुप्त की आरती करें। अंत में अपनी गलतियों के लिए क्षमा याचना कर उनसे सुख-समृद्धि की प्रार्थना करें।
क्या है मान्यता?
कायस्थ परिवार और व्यवसाय से जुड़े लोगों के लिए चित्रगुप्त पूजा का बहुत महत्व होता है। भगवान चित्रगुप्त की पूजा अधिकतर कायस्थ लोगों में की जाती है क्योंकि उन्हें चित्रगुप्त महाराज की ही संतान माना जाता है। भगवान चित्रगुप्त को ब्रह्मा जी की संतान माना जाता है। कहा जाता है कि जब ब्रह्मा जी ने इस संसार की रचना की, तो यमराज को पृथ्वी पर रहने वाले मनुष्यों को कर्मों के अनुसार सजा देने का कार्य सौंपा। यमराज ने इसके लिए ब्रह्मा जी से एक सहयोगी की मांग की। इसके बाद ब्रह्मा जी ने एक हजार वर्ष तक तपस्या की। इस तप के प्रभाव से ब्रह्मा जी की काया से चित्रगुप्त भगवान का जन्म हुआ और उन्हें यमराज का सहयोगी बना दिया गया। भगवान चित्रगुप्त का जन्म ब्रह्मा जी की काया से हुआ था, इसलिए उनकी सभी संतानें कायस्थ कहलाईं।