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कौन हैं पीएम मोदी के कंधे पर सिर रखकर रोने वाले कृष्णा मडिगा ? जानिए इनके बारे में

by Rakesh Pandey
कौन हैं पीएम मोदी के कंधे पर सिर रखकर रोने वाले कृष्णा मडिगा
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नई दिल्ली। पिछले कुछ दिनों से एक तस्वीर समाचारपत्रों में चर्चा में रही तो इस दृश्य के वीडियो भी वायरल हुए। इस तस्वीर व वीडियो में एक व्यक्ति को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कंधे पर सिर रखकर भावुक होते देखा गया। दरअसल, पीएम मोदी के कंधे पर सिर रखकर रोने वाले कृष्णा मडिगा समाजिक कार्यकर्ता हैं, जो आरक्षण संघर्ष समिति के संस्थापक हैं।

सिकंदराबाद में हुई एससी उपजातियों की विश्वरूप महासभा
दरअसल, तेलंगाना विधानसभा चुनाव 2023 में सभी पार्टियों की ओर से अपनी-अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए प्रचार किया जा रहा है। इस दौरान, शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैदराबाद आए। उन्होंने सिकंदराबाद परेड ग्राउंड में आयोजित एससी उपजातियों की विश्वरूप महासभा में मोदी जी ने भाग लिया। इस महासभा में पीएम मोदी द्वारा मडिगा आरक्षण संघर्ष समिति (एमआरपीएस) के संस्थापक अध्यक्ष मंदा कृष्णा मडिगा की भावनात्मक वार्ता की जा रही है, जबसे अध्यक्ष मंडा कृष्णा मडिगा के आंखों में आंसू देखकर प्रधानमंत्री ने उन्हें सांत्वना दी।

मोदी ने सम्मक्का और सरम्मा को किया याद
इस अवसर पर मोदी जी ने मंच पर अपने भाषण की शुरुआत तेलुगु में की। साथ ही, उन्होंने सम्मक्का और सरम्मा को याद किया, इसे दलित समुदाय की सबसे बड़ी सभा कहा गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मौके पर मंदा कृष्णा मडिगा की गरिमामय यात्रा और उनके संघर्ष की सराहना की। मडिगा को गले लगाकर सांत्वना दी गई। प्रधानमंत्री ने मडिगा समुदाय को बधाई दी और उन्हें उनके संघर्ष की प्रशंसा की।

मंदा कृष्णा मडिगा कौन हैं?
मंडा कृष्णा मडिगा तेलंगाना के समाजिक कार्यकर्ता हैं, जो आरक्षण संघर्ष समिति के संस्थापक हैं। उन्होंने अनुसूचित जातियों और जातिगत विवादों के मुद्दों पर अपने संघर्ष से महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने उन वर्गों की बढ़ती हुई मांगों को सुनिश्चित करने के लिए समर्पित कार्य किया है।

अधिकारों की लड़ाई से मडिगा को मिली पहचान
मंदा कृष्णा मडिगा की जिद और लड़ाई ने अनुसूचित जातियों के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए उन्हें महत्वपूर्ण बना दिया है। उनका कार्य सामाजिक समानता और न्याय के लिए एक उदाहरण साबित होता है। बता दे कि 1965 में येलैया के नाम से जन्मे मडिगा ने 1980 के दशक में अपनी यात्रा शुरू की जो जातिगत भेदभाव, बच्चों के स्वास्थ्य और विकलांगता अधिकारों जैसे मुद्दों पर वकालत के प्रयासों के जरिए पहचाना गया है।

लड़ाई कैसे हुई?
1980 के दशक में वारंगल में जाति-विरोधी कार्यकर्ता के रूप में मडिगा ने अपनी यात्रा शुरू की। उन्होंने निचली जातियों के साथ दुर्व्यवहार कर रहे व्यक्तियों के खिलाफ आवाज बुलंद की और इस दौरान उन्हें नक्सली गुट पीपुल्स वॉर ग्रुप से समर्थन मिला। गौरतलब है कि उन्होंने बाद में कानूनी रास्ते अपनी लड़ाई की और दलित वर्ग के अधिकारों के लिए कानून का रास्ता चुना।

मडिगा की संघर्ष यात्रा की मोदी ने की तारीफ
प्रधानमंत्री मोदी से मिलने पर मंदा कृष्णा ने आवाज बुलंद की और उन्होंने प्रधानमंत्री की जिनकी सरकार गरीब कल्याण, वंचितों को वरीयता देने की दिशा में काम कर रही है, की प्रशंसा की।

मंदा कृष्णा मडिगा को मोदी जी ने गर्मजोशी से संबोधित किया और उन्हें आमंत्रित करने की विशेष प्रस्तावना की। वे मडिगा समुदाय के प्रति आदर और सम्मान जताते हुए बोले कि मडिगा उनके छोटे भाई जैसे हैं। मोदी जी ने मडिगा समुदाय को उनके संघर्ष के लिए धन्यवाद दिया और उनकी इस लड़ाई की प्रशंसा की।

दोहराई सबका साथ-सबका विकास की बात
मडिगा की यह आमंत्रित बैठक पीएम मोदी के साथ दोनों के बीच मिले सम्बंध की एक नई धारा जोड़ती है। प्रधानमंत्री मोदी के मडिगा समुदाय के विरोधी जटिलताओं को हल करने के लिए जुड़ाव से जोड़कर इसे देखा जा रहा है। इस अवसर पर पीएम मोदी ने कहा कि हमारी सरकार का सर्वोच्च मानदंड गरीब कल्याण, वंचितों को सहायता देना है। उन्होंने भाजपा की मंत्रियों की यह प्राथमिकता रखी है कि सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास हो।

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