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छठ घाटों पर अब सुनाई देने लगा – उग हे सूरज देव, कांच ही बांस के बहंगी…

by Rakesh Pandey
छठ घाटों पर अब सुनाई देने लगा - उग हे सूरज देव
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धनबाद : उग हे सूरज देव.., कांच ही बांस के… छठ के गीत घाटों पर अब सुनाई देने लगा है। पूजा कमेटियां टेंट-तंबू लगा रहे हैं। लाइट की व्यवस्था की जा रही है। सड़कों पर बड़े-बड़े माइक लग चुके हैं। धनबाद के लगभग हर छठ घाट की यही स्थिति है। राजेंद्र सरोवर पार्क, रानीबांध तालाब, राजा तालाब, खोखन तालाब, लोको टैंक पंपू तालाब, विकास नगर छठ तालाब, मनईटांड़ छठ तालाबा में तैयारी पूरी हो चुकी है।

स्थानीय लोगों ने इन घाटाें पर अपना नाम तक लिखना शुरू कर दिया है। जगह कब्जा करने का सबसे अधिक मारामारी राजेंद्र सरोवर की है। यहां कोई ऐसी जगह नहीं बची जहां किसी का नाम न लिखा हो। प्रत्येक घाट पर कपड़े से घेरकर चेंजिंग रूम तैयार किया गया है। पानी में लगभग एक से दो मीटर की दूरी पर बांस-बल्ली खड़ाकर बैरीकेडिंग की गई है। कई संवेदनशील तालाबों में गोताखोर भी तैनात हैं।
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बेटियों के मान में इस बार का छठ महापर्व
शनिवार को हर घर में खरना का प्रसाद बनेगा और रिश्तेदारों-दोस्तों में वितरण भी होगा। अधिकतर जगह छठव्रतियों ने इस बार के छठ पर्व को बेटियों के मान से जोड़ा। 50 वर्षों से भी अधिक समय से महापर्व छठ कर रहीं कोल बोर्ड कालोनी की सुशीला देवी का कहना है कि जहां नारियों का सम्मान, वहां देवता का वास। छठ महापर्व में विद्यमान वह भारतीय सांस्कृतिक परिवेश, जहां बेटियों की कामना में नारी सशक्तीकरण का संदेश छिपा है। यह भाव हर समाज, हर वर्ग के बीच समान रूप से स्थापित है। पुत्र हो या पुत्री, दोनों के लिए समान भाव।

यह पर्व विशेष की सामाजिक मान्यता भर नहीं, अपितु व्यवहार में भी परिलक्षित होता दिखाई पड़ता है। सुशीला देवी अपनी सास की आर्योग्यता के लिए 1970 से लगातार छठ महापर्व कर रही हैं। परिवार की जो भी बेटी बहु, छठ व्रत प्रारंभ करती हैं, पहली बार इनके साथ छठ की विधि विधान सीखते हुए प्रारंभ करती हैं। इसबार पति पारसनाथ दुबे के साथ लगभग 75 वर्ष की आयु में भी पर्व कर रही हैं। पहले गोंदूडीह कोलियरी क्षेत्र में आवास था तो वहीं छठ घाट जाती थी, लेकिन कोरोना बीमारी के बाद सामाजिक दूरी तथा अपनी वृद्धता को देखते हुए कोल बोर्ड कालोनी पुलिस लाइन आवास में ही छठ घाट बना कर पूजा करती हैं।

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