Jamshedpur : जमशेदपुर के उपायुक्त कार्यालय के सामने सोमवार को एक अभूतपूर्व नज़ारा देखने को मिला, जब हजारों की संख्या में ग्रामीण पारंपरिक हथियारों, ढोल-नगाड़ों और पारंपरिक वेशभूषा के साथ जुलूस की शक्ल में पहुंचे। ये सभी लोग नगर निगम के खिलाफ गुस्से से भरे हुए थे और अपनी पारंपरिक व्यवस्था को बचाने के लिए सड़कों पर उतर आए थे। इस प्रदर्शन का नेतृत्व तीसरी सरकार यानी पारंपरिक ग्रामसभा के जनप्रतिनिधि कर रहे थे। गौरतलब है कि सरकार बागबेड़ा, करनडीह, गोविंदपुर आदि इलाके को नगर निकाय बनाना चाहती है। एक प्लान बागबेड़ा इलाके को जुगसलाई नगर परिषद में जोड़ने का भी है। आदिवासी इसी का विरोध कर रहे हैं।
इलाके के ग्रामीण साकची आम बागान मैदान से जुलूस निकालते हुए उपायुक्त कार्यालय पहुंचे और नारेबाजी करते हुए नगर निगम के विस्तार का विरोध किया। उनका कहना है कि यह एक सुनियोजित साजिश के तहत ग्रामीण इलाकों को नगर निगम में शामिल किया जा रहा है, जिससे उनकी पारंपरिक व्यवस्थाएं जैसे माझी-परगना व्यवस्था समाप्त हो जाएंगी।
प्रदर्शन में शामिल माझी बाबा दुर्गा चरण मुर्मू ने कहा, *”हमारे गांवों में हमारी ही व्यवस्था को खत्म करने की कोशिश की जा रही है। नगर निगम हमारे जीवनशैली और परंपराओं के खिलाफ है। हम पेसा कानून को पूरी तरह से लागू करने की मांग कर रहे हैं ताकि हमारी पारंपरिक स्वशासन प्रणाली सुरक्षित रह सके। साथ ही, हम आदिवासी समुदाय के लिए ‘सरना धर्मकोड’ की मान्यता भी चाहते हैं।” मुर्मू ने यह भी चेतावनी दी कि अगर सरकार ने इन मांगों पर विचार नहीं किया, तो झारखंड एक बार फिर नए उलगुलान (विद्रोह) की ओर बढ़ेगा।
प्रदर्शन में बड़ी संख्या में महिलाएं, युवा और बुजुर्ग शामिल थे, जिनका कहना था कि आदिवासी समुदाय के अस्तित्व और पहचान की यह लड़ाई अब निर्णायक मोड़ पर है। इस आंदोलन ने एक बार फिर राज्य में आदिवासी अधिकारों, पेसा कानून और धार्मिक पहचान को लेकर जारी संघर्ष को प्रमुखता से सामने ला दिया है।