Home » Shibu Soren : झारखंड आंदोलन की धुरी थे दिशोम गुरु, जंगल से हुई थी आंदोलन की शुरुआत

Shibu Soren : झारखंड आंदोलन की धुरी थे दिशोम गुरु, जंगल से हुई थी आंदोलन की शुरुआत

दिशोम गुरु शिबू सोरेन के संघर्ष और दूरदृष्टि ने झारखंड को आंदोलन की आग से निकालकर एक अलग राज्य के रूप में दुनिया के नक्शे पर खड़ा किया।

by Mujtaba Haider Rizvi
shibu soren jharkhand
WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Follow Now

Ranchi News : दिशोम गुरु शिबू सोरेन के निधन के साथ ही झारखंड आंदोलन की शुरुआत करने वाले एक युग का पटाक्षेप हो गया। यह वही युग था, जिसकी नींव बिनोद बिहारी महतो, कामरेड एके राय और शिबू सोरेन ने मिलकर रखी थी। इन तीनों नेताओं की दोस्ती, संघर्ष और दूरदृष्टि ने झारखंड को आंदोलन की आग से निकालकर एक अलग राज्य के रूप में दुनिया के नक्शे पर खड़ा किया।

तीनों नेताओं ने धनबाद की धरती से शुरू किया था सफर

बिनोद बिहारी महतो, एके राय और शिबू सोरेन तीनों ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत धनबाद की धरती से की थी। झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना भी यहीं हुई और यहीं से अलग राज्य की मांग ने व्यापक आंदोलन का रूप लिया। आज, इन तीनों नेताओं की स्मृतियां ही झारखंड आंदोलन की आत्मा के रूप में जीवित हैं।

बिनोद बिहारी महतो: अलग राज्य आंदोलन के अग्रदूत

एक वकील और प्रखर राजनेता के रूप में बिनोद बिहारी महतो को झारखंड की राजनीति में विशेष स्थान प्राप्त है। वे 1972 में झारखंड मुक्ति मोर्चा के गठन के बाद आंदोलन का नेतृत्व करने लगे। तीन बार बिहार विधानसभा और एक बार लोकसभा के सदस्य बने बिनोद बाबू ने हमेशा झारखंडी अस्मिता को सर्वोपरि रखा। 18 दिसंबर 1991 को उनका निधन हो गया, लेकिन उनकी राजनीतिक सोच आज भी प्रासंगिक बनी हुई है।

कामरेड एके राय : राजनीति के संत और मजदूरों के नेता

एके राय ने एक केमिकल इंजीनियर के रूप में सिंदरी के पीडीआईएल से करियर शुरू किया था, लेकिन 1966 में एक मजदूर आंदोलन में भाग लेने के बाद उन्होंने राजनीति का रास्ता चुना। तीन बार सांसद और तीन बार विधायक रहे राय की छवि साफ-सुथरी और निष्कलंक रही। उन्होंने जीवन भर पेंशन तक नहीं ली और राजनीति को सेवा का माध्यम माना। 21 जुलाई 2019 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा।

शिबू सोरेन: जंगलों से निकला जननेता


शिबू सोरेन ने महाजनी प्रथा और आदिवासी शोषण के खिलाफ टुंडी से आंदोलन शुरू किया था। जल, जंगल, जमीन की रक्षा के लिए उन्होंने अपना घर तक छोड़ दिया। आदिवासियों के अधिकारों के लिए लड़ी गई उनकी लड़ाई ने उन्हें ‘दिशोम गुरु’ की उपाधि दिलाई। वे झारखंड आंदोलन के सबसे बड़े चेहरे बने। राज्य बनने के बाद वे मुख्यमंत्री बने, लेकिन आदिवासी समाज को जागरूक करने की मुहिम जारी रखी।

Read also Shibu Soren Tribute : दिशोम गुरु शिबू सोरेन के सम्मान में डीसी ऑफिस में शोकसभा, उपायुक्त समेत अधिकारियों ने दी श्रद्धांजलि



Related Articles

Leave a Comment