

Jamshedpur : राज्य की निजी कंपनियों में स्थायी प्रकृति की नौकरियों को ठेका व्यवस्था के तहत कराए जाने के गंभीर मुद्दे पर झारखंड सरकार ने विधानसभा में जवाब मांगा गया है। जमशेदपुर पूर्वी की विधायक पूर्णिमा साहू द्वारा विधानसभा में पूछे गए सवाल के जवाब में सरकार ने कहा है कि ऐसी कोई शिकायत उन्हें प्राप्त नहीं हुई है। सरकार का कहना है कि शिकायत मिलने के बाद मामले में जांच कर आगे की कार्रवाई की जाएगी।

हालांकि, सरकार ने यह भी माना कि वर्ष 2006 में ठेका मजदूर परामर्शदात्री समिति ने राज्य के कुछ उद्योगों में श्रम कानूनों के उल्लंघन की पुष्टि की थी। फिर भी, वर्तमान में किसी भी प्रकार की श्रमिक शोषण या ठेका प्रथा के दुरुपयोग की शिकायत नहीं मिलने का हवाला देकर सरकार ने दिया है। विधायक पूर्णिमा साहू ने विधानसभा में विशेष रूप से पूछा था कि क्या टिमकेन, टाटा रायसन, टाटा ब्लूस्कोप, टाटा स्टील डाउनस्ट्रीम प्रोडक्ट लिमिटेड जैसी कंपनियों में स्थायी नौकरियां ठेका प्रणाली के तहत कराई जा रही हैं। इसके उत्तर में सरकार ने कहा कि उन्हें इस संबंध में कोई विशिष्ट शिकायत प्राप्त नहीं हुई है।

जब पूछा गया कि क्या स्थायी कार्यों को ठेका कर्मियों से कराना श्रम कानूनों का उल्लंघन नहीं है, तो सरकार ने स्वीकार किया कि अधिसूचित कार्यों में ऐसा करना कानून के विपरीत है। हालांकि, ठेका मजदूर अधिनियम की प्रक्रिया के तहत जांच और सिफारिश के बाद ही ऐसी प्रथा पर रोक लगाई जा सकती है। पूर्णिमा साहू ने सवाल उठाया कि जब वर्षों से ठेका मजदूर कंपनियों में कार्यरत हैं, तब भी सरकार शिकायत न मिलने का हवाला कैसे दे सकती है। उन्होंने सरकार से श्रमिकों को प्राकृतिक न्याय दिलाने की ठोस योजना और समयसीमा पूछी, लेकिन सरकार का जवाब फिर से जांच और रिपोर्ट पर आधारित रहा। झारखंड में बड़ी संख्या में श्रमिक ऐसे हैं जो वर्षों से ठेका पर कार्य कर रहे हैं, लेकिन उन्हें स्थायी नहीं किया जा रहा है। यह न केवल श्रम कानूनों का उल्लंघन है, बल्कि श्रमिकों के हक के साथ अन्याय भी है। यह श्रमिक कई साल से ठेका मजदूरी कर रहे हैं। आरोप लगते रहे हैं कि कंपनियों में इनसे स्थायी प्रकृति का काम कराने के बाद इन्हें ठेका मजदूरों वाला वेतन दिया जाता है। ऐसा भाजपा सरकार में भी होता रहा है। लेकिन, कभी सरकार इस पर ठोस कार्रवाई नहीं कर पाई।

