Jamshedpur : दलमा वाइल्ड लाइफ सेंचुरी (Dalma Wildlife Sanctuary) की हालत इन दिनों बदतर हो रही है। इस इलाके के ग्रामीणों का आरोप है कि दलमा में एक एकड़ जमीन से साल के पेड़ों की कटाई की गई है। कटाई के बाद यह पेड़ वहीं रखे गए थे और अब इनकी लकड़ी गायब हो गई है। इससे ग्रामीणों में नाराजगी है। ग्रामीणों का आरोप है कि वन विभाग की मिलीभगत से यह कटाई हुई है। ग्रामीण इस मामले की उच्चस्तरीय जांच की मांग कर रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि अगर वन विभाग इन पेड़ों का हिसाब नहीं देता तो जोरदार आंदोलन किया जाएगा। ग्रामीणों का आरोप है कि वन विभाग की लापरवाही से गज परियोजना और वन्यजीव संरक्षण भी प्रभावित हो रहा है।
सड़कें खराब होने से मरीजों को दिक्कत
इस इलाके के गांव रोड, शुद्ध पानी और बिजली के लिए तरस रहे हैं। सड़कें जर्जर हैं और शुद्ध पानी का इंतजाम नहीं है। बिजली का भी आना-जाना लगा रहता है। नागरिक सुविधाओं की दिक्कत होने की वजह से पर्यटकों को भी दिक्कत हो रही है। इस वजह से यहां पर्यटकों का आना कम हो रहा है। सड़क जर्जर होने की वजह से पर्यटकों को दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। नागरिक सुविधाओं के अभाव के चलते मकुलकोचा और आसपास के आदिवासी गांवों के ग्रामीण भी परेशान हैं। एक ओर सैकड़ों साल के पेड़ों की कटाई और लकड़ी की रौली गायब होने का मामला सामने आया है, दूसरी ओर चाकुलिया से मुख्य चेकनाका जाने वाली सड़क की जर्जर हालत ने लोगों का जीवन जोखिम में डाल दिया है। ग्रामीणों ने बताया कि सड़क जगह-जगह गड्ढों में बदल गई है और बरसात में उनमें पानी भर गया है। इस वजह से सड़क से आवागमन दूभर हो गया है। बीमार को अस्पताल ले जाने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। गर्भवती महिलाओं, बीमारों और बच्चों को कीचड़ भरे रास्ते से अस्पताल तक ले जाना पड़ता है। दुर्घटनाओं का खतरा लगातार बढ़ रहा है।
आमदनी का एक हिस्सा विकास पर खर्च करे महकमा
इस कारण से वन विभाग की तरफ से जनता में नाराजगी पनप रही है। लोगों का कहना है कि वन विभाग इस इलाके से हर साल लाखों रुपये के राजस्व की कमाई करता है। फिर भी इलाके के विकास पर खर्च नहीं करता। अब ग्रामीण बैठकों के जरिए अपना विरोध प्रकट करने लगे हैं। लोगों का कहना है कि वन विभाग इस इलाके से जो कमाई करता है उसका जनता को हिसाब दे। इस कमाई का कुछ हिस्सा इस इलाके में शुद्ध पेयजल, बिजली और सड़क पर खर्च करना चाहिए। क्षेत्र के बुद्धजीवी चंदन कहते हैं कि वन विभाग ने गांव-गांव में वन समिति बना रखी है। वन समितियों को भी विभाग आमदनी के बारे में कोई जानकारी नहीं देता है।
वह कहते हैं कि वन विभाग हाथियों की सुविधा के लिए भी कम खर्च कर रहा है। जो रकम पहले खर्च होती थी उसमें काफी कटौती कर दी गई है। इधर बीच हाथियों ने जो फसल बरबाद की है, उसके बारे में कहा जा रहा है कि 50-50 रुपये मुआवजा ले लो। चंदन सवाल उठाते हैं कि किसान अपने परिवार का पेट भरने के लिए फसल लगाता है कि हाथियों को खिलाने के लिए। हाथियों का पेट भरने का जिम्मा तो वन विभाग को उठाना चाहिए।
ग्रामीणों ने की मीटिंग
मकुलकोचा चेकनाका के हिरण पार्क गेस्ट हाउस में झारखंड मुक्ति वाहिनी की बैठक हुई, जिसमें स्थानीय आदिवासियों ने विकास कार्यों में कोताही और सुविधाओं की कमी पर नाराज़गी जताई। ग्रामीणों ने मांग की कि अन्य राज्यों की तरह झारखंड के दलमा इको-सेंसिटिव जोन में भी योजनाएं लागू की जाएं।