RANCHI: आर्थिक रूप से कमजोर महिलाओं को सशक्त बनाने के उद्देश्य से झारखंड में कई सरकारी योजनाएं चलाई जा रही है। लेकिन लाभुकों ने अब इसे आत्मनिर्भर बनने का जरिया बना लिया है। कुछ ऐसी ही महिलाएं जिन्होंने सरकार की मईयां सम्मान योजना और विधवा पेंशन योजना से मिलने वाली राशि से न केवल खुद को आत्म निर्भर बना लिया है। बल्कि अब दूसरों को रोजगार देकर उनका घर रौशन कर रही है।

महिलाओं ने बना लिया अपना समूह
रांची के करमटोली की महिलाएं, जिन्होंने मईयां सम्मान और विधवा पेंशन की राशि को केवल भरण-पोषण तक सीमित न रखकर उसे आत्मनिर्भरता और रोजगार का माध्यम बना दिया है। करमटोली में रहने वाली कुछ महिलाओं ने छह महीने तक मिलने वाली मईया सम्मान योजना की 2500 रुपये मासिक राशि और विधवा पेंशन की 1000 रुपये प्रति माह को इकट्ठा किया। इस छोटी-सी पूंजी को खर्च करने के बजाय उन्होंने कुम्हारों से दीये खरीदकर उन्हें सजाकर बेचने की योजना बनाई। जिससे कि वे उसी पैसे से कमाई कर रही है। दीपावली और छठ जैसे त्योहारों के मद्देनज़र उन्होंने आकर्षक रंगों, डिजाइनों और पारंपरिक कलाकृतियों से इन साधारण दीयों को नया रूप दिया।
मार्केट में प्रोडक्ट बढ़ रही डिमांड
धीरे-धीरे इन दीयों की मांग इतनी बढ़ी कि महिलाएं घर-घर जाकर भी बिक्री करने लगीं। स्थानीय लोगों से मिली सराहना ने उनके आत्मविश्वास को और बढ़ाया। आज स्थिति यह है कि करमटोली में इन महिलाओं ने एक स्व-सहायता समूह के रूप में संगठित होकर दर्जनों अन्य महिलाओं को भी इस काम से जोड़ा है। अब वे केवल दीये ही नहीं, बल्कि कई ओर हैंड क्राफ्ट गिफ्ट आइटम भी तैयार कर रही हैं। ग्रुप की महिलाएं लिफाफा, ठोंगा, पेपर फाइल जैसी चीजें बनाकर मार्केट में सप्लाई कर रही है।
हर तरह के मिल रहे ऑर्डर
ग्राहकों की लगातार बढ़ती मांग के चलते इनमें से कई महिलाओं ने अपने घरों में ही अपना काम शुरू कर लिया है। उनके उत्पाद अब सिर्फ मोहल्ले तक सीमित नहीं हैं, बल्कि ऑर्डर भी मिलने लगे हैं। कुछ स्थानीय दुकानदार भी ज्यादा मात्रा में उनसे सामान खरीद रहे हैं। जिसे वे अपने दुकानों में बेच रहे हैं।
छोटी राशि से बड़ा बदलाव
समूह का नेतृत्व करने वाली शीला लिंडा कहती है कि इच्छा शक्ति हो तो छोटी राशि भी बड़ा बदलाव ला सकती है। पहले मईया सम्मान की राशि को देखकर लगा कि इससे क्या हो पाएगा। फिर मैंने 6 महीने की राशि को जमा कर लिया। उससे मैंने कुम्हार से दीया खरीदा और उसे आकर्षक बनाने के लिए महिलाओं को पेंटिंग का काम दे दिया। आज उन महिलाओं के कारण मुझे काफी ऑर्डर मिला। उन्हें भी हर दिन के हिसाब से मेहनताना दिया जाता है।

समाज में मिल रही अलग पहचान
वहीं बसंती मूटकुंवर का कहना है कि पेंशन में सरकार हमें 1 हजार रुपया देती है। इससे तो खर्च पूरा नहीं हो सकता। इसलिए हमलोग संस्था से जुड़ गए। अपना पेंशन कारोबार के लिए दे दिया। अब उससे ज्यादा आमदनी हो रही है। वहीं काम करने और आत्म निर्भर बनने से समाज में अलग सम्मान मिल रहा है। घर में भी अपना कद ऊंचा हो गया है। सबलोग के साथ काम करने से संपर्क भी बढ़ रहा है।
