Jharkhand Bureaucracy : गुरु बहुत भन्नाए हुए थे। पता चला कि सुबह-सुबह किसी ने गाड़ी का शीशा तोड़ दिया। मन-मिजाज देख कर लगा, आज काम नहीं बनने वाला। शायद नई कहानी के बगैर ही लौटना पड़े। उम्मीद ने भरोसे का दामन नहीं छोड़ा। सो, दम साधकर बरामदे में बैठे रहे। गुरु पड़ोसियों को खूब खरी-खोटी सुना रहे थे। ड्राइविंग की कला समझा रहे थे। बीच-बीच में अपनी तरफ से बस तीन-चार शब्द ‘सही कह रहे गुरु’ जोड़ना था। थोड़ी देर में गुरु का ग़ुस्सा बुखारी पारे की तरह नीचे आया।
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गुरु ने पानी का गिलास मंगाया। पहला खुद उठाया, दूसरा आगे बढ़ाया। कहा- पानी लो, यहां तो खिचखिच रोज की है। गुरु की बात से एक चीज साफ थी। मोहल्ला चाहे आम हो या खास। कहानी कमोबेश हर तरफ एक जैसी है। अपनी से निपट गुरु दूसरी तरफ मुखातिब हुए। पूछा- और बताओ। क्या चल रहा सत्ता के गलियारे में? तुम्हारे कई साथी तो लंबी-चौड़ी भविष्यवाणी बांच रहे हैं। सरकार इधर गई, सरकार उधर गई। उत्तर दिया- पता नहीं गुरु। अपनी इतनी पहुंच कहां? कुछ लोगों के सूत्र सत्ताधीशों के ड्राइंगरूम से बेडरूम तक हैं।
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अपना पूरा मामला ले देकर नौकरशाही तक निपट जाता है। हम प्रणामी से नमामि तक नहीं पहुंच पा रहे। सत्ता की खबर कौन कहे? बात पूरी होते ही गुरु के भाव बदल गए। चेहरे पर कुटिल मुस्कान फैल गई। बोले- अरे अब तक तुम वहीं फंसे हो। यहां नदी में कितना पानी और बह गया? कहा- गुरु समझा नहीं। यह बात सुनने के बाद गुरु समझाने पर उतर गए। बताया- तुम प्रणामी महिमा में लटके हो, बात उससे आगे पहुंच गई है।
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पता चला है कि, ‘भूदान’ आंदोलन में दो और ‘दान पत्र’ तैयार कराए गए थे। कुछ शिकायती टाइप जीवों ने पड़ताल की। बात सामने आई कि ‘दान पत्र’ में तय राशि बाजार मूल्य से कम है। अब पूरा खेल दानी और दानदाता के बीच के अन्योन्याश्रित संबंध पर आकर टिक गया है। देखने-सुनने वाले अपने-अपने तरीके से इसकी व्याख्या कर रहे हैं। अब खोज इस बात की है कि किसकी महिमा कहां फंसी है? गुरु बोलते-बोलते अचानक रुक गए। कहा- चलो पहले गाड़ी ठीक करा लें। आगे की कहानी फिर कभी।
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