अखिलेंद्र मिश्रा, एक ऐसा नाम जिसने अपने हर किरदार को शिद्दत से जिया है। बिहार के एक छोटे से गांव से निकले इस कलाकार ने मनोरंजन की दुनिया में अपनी अनोखी पहचान बनाई। 90 के दशक में जब टीवी सीरियल चंद्रकांता आया, तो ‘क्रूर सिंह’ के रोल ने अखिलेंद्र को घर-घर में मशहूर कर दिया। इसके बाद फिल्म सरफ़रोश में ‘मिर्ची सेठ’ हो या लगान में ‘अर्जन’, उन्होंने हर रोल को ऐसे निभाया कि मानो वो उनके लिए ही लिखा गया हो। 2008 में आए सीरियल ‘रामायण’ में अखिलेन्द्र मिश्रा ने ‘रावण’ का किरदार निभाकर खूब वाहवाही लूटी थी। लेकिन, अभिनय की इस लंबी यात्रा के दौरान, अखिलेन्द्र मिश्रा ने एक ऐसे एहसास का आभास किया और उसपर पुस्तक लिखी, जो हर व्यक्ति व अभिनेता के लिए किसी वरदान से कम नहीं है।
19 अक्टूबर को जमशेदपुर के आदित्यपुर ऑटो क्लस्टर में आयोजित ‘छाप’ इनॉगरल लिटरेचर फेस्टिवल में अखिलेन्द्र मिश्रा ने अपनी किताब “अभिनय, अभिनेता और अध्यात्म” पर चंद बातें कही। उन्होंने बताया अध्यात्म क्या है और अभिनेता के लिए ये क्यों जरूरी है। एक्टर ने अपनी किताब का सारांश कुछ उदाहरणों के साथ समझाया।
अध्यात्म का हमारी जिंदगी से क्या रिश्ता है, और इसे कैसे पहचान सकते हैं, इसपर अखिलेन्द्र मिश्रा ने अपनी बात कुछ ऐसे शुरू की। “ब्रह्मांड का जन्म ही आध्यात्मिक है। चाहे हम हो, आप हो, ये माइक हो, कुर्सी, टेबल, फूल, ऑडिटोरियम हो, सभी कुछ अक्षुण्ण से बना है। और पूरी प्रक्रिया आध्यात्मिक है। मनुष्य का जन्म भी आध्यात्मिक है। मनुष्य, शिशु रूप में जब माँ के गर्भ में होता है, तब नाभि से सांस ले रहा होता है, और जैसे धरती पे आता है, दाई नाड़ी काटती है, फिर शिशु की सांस नाक से चलनी शुरू हो जाती है। ये पूरा प्रोसेस आध्यात्मिक है। अपने अंदर की जो आतंरिक व्यवस्था है, इसे जानना स्वः को जानना, अपने आप को जानना ही अध्यात्म है। प्रत्येक मनुष्य आध्यात्मिक है।”
उन्होंने अपने विचारों को आगे बढ़ाते हुए अभिनेता की जिंदगी में अध्यात्म कैसे मौजूद है, इसपर प्रकाश डाला। वे कहते हैं, “क्योंकि मैं अभिनेता हूं, इसलिए अभिनेता के लिए ये पुस्तक लिखी है। इस सृष्टि रुपी मंच पर प्रत्येक मनुष्य अभिनेता है, अपने-अपने किरदार अदा कर रहा है। प्रत्येक मनुष्य इस सृष्टि रुपी मंच पर अपना किरदार निभाता है और फिर अपने किरदार को पूरा कर निकल जाता है। अभिनय, अभिनेता, और अध्यात्म, पूरी सृष्टि का जो मूल है, वो अध्यात्म ही है।”
पूर्ण शरीर कुछ नहीं करता, सूक्ष्म शरीर सब करता है: अखिलेन्द्र
“मनुष्य जीवन में एक चरित्र निभा रहा है। लेकिन अगर वो अभिनेता है इस जीवन में, और उसे दूसरा एक किरदार मिला है, तो उस आवरण को जो ओढ़ता है, वह केवल इस शरीर के ऊपर से नहीं ओढ़ता, क्योंकि अभिनेता की जो तैयारी है, वो सिर्फ इस शरीर का नहीं होता। आपके अपने निजी जीवन में भी, तैयारी सूक्ष्म शरीर का है। पूर्ण शरीर, सूक्ष्म शरीर, और सूक्ष्तम शरीर। ये शरीर तो उपकरण है, शरीर कुछ नहीं है। शरीर कुछ नहीं करता, करने वाला हमारे अंदर है, वो सूक्ष्म शरीर है। ये जो शरीर है ये इस शरीर को चला रहा है। करण भीतर है, ये उपकरण है, ये पांच ज्ञानेन्द्रियां और पांच कर्मेन्द्रियां।”
“ये शरीर जो है हमारा, ये पूरा का पूरा ब्रह्मांड है, और ब्रह्मांड की जितनी शक्तियां है वो हमारे भीतर है। जब आप उस मार्ग में प्रशस्त होंगे तो धीरे धीरे वो शक्तियां जागृत होने लगेंगी। ये है साधना। ये पूरी की पूरी आध्यात्मिक प्रक्रिया है।”
अखिलेन्द्र मिश्रा को कब हुआ अध्यात्म का आभास?
वे कहते हैं, “मैं एक्टिंग करता गया, करता गया और एक दिन पता चला कि मैं भी एक्ट कर रहा हूं और मुझे लगा कि मैं वहीं हूं। शो चल रहा है, दर्शक बैठे हुए हैं, और अचानक, पता नहीं कहां से क्या पावर आया और मैं बिलकुल फ्लो में बह गया। मैंने IPTA (Indian People’s Theatre Association) के सचिव एमएस सथ्यू साहब जिनके साथ मैंने मैक्सिमम थिएटर किया, उन्हें प्रणाम करता हूं, वे कभी बोलते नहीं कि तुम्हारा परफॉरमेंस बहुत कमाल का हुआ। लेकिन उस दिन उन्होंने मुझसे पूछा- ‘क्या हुआ तुम्हें? आउटस्टैंडिंग काम किया तुमने।’ उस दिन मुझे लगा मुझे भारत रत्न मिल गया। उसके बाद जब दूसरे शो के लिए रिहर्सल कर रहा था जिसका नाम है ‘द्रोणाचार्य’, वो शो आज भी होता है और मैं 35 सालों से उस शो में एक्ट कर रहा हूं। मैं उस नाटक से इसलिए जुड़ा हुआ हूं, क्योंकि उस नाटक में मैंने बैकस्टेज से काम शुरू किया ऑनस्टेज तक अपनी जर्नी। वो नाटक मुझे मेरी जड़ें याद दिलाता है, कि मैं कहां से शुरू हुआ था, कहां तक पहुंचा, वो नेपथ्य, वो बैकस्टेज वर्क।”
दिलीप कुमार और आमिर खान ने भी अध्यात्म को स्वीकारा
अखिलेन्द्र मिश्रा ने अभिनेता के जीवन में अध्यात्म की महत्ता को फिल्म इंडस्ट्री के लेजेंड्स के उदाहरण के साथ कुछ ऐसे समझाया। एक्टर ने कहा, “स्वर्गीय दिलीप कुमार जी कहा करते थे- ‘मैं पहले फिल्में करने के लिए करता था लेकिन बाद में फिल्म करते करते मुझे पता चला कि मैं तो ये कर ही नहीं रहा हूं, जब मैं फिल्म कर रहा हूं, तो एक रूहानी ताकत मेरे अंदर आ जाती है, जो मुझसे ये सब करवा देती है। मुझे पता ही नहीं होता कि मैं अपना सीन कहां ख़त्म करूंगा।’ अखिलेन्द्र मिश्रा ने आगे कोनस्टैनटिन स्टेनिसलाव्स्की (Konstantin Stanislavski) की किताब का भी उदाहरण देते हुए अध्यात्म के बारे में समझाया। एक्टर ने आमिर खान से अपनी मुलाकात और उस दौरान हुई बातचीत के कुछ अंश साझा किए। उन्होंने कहा, “पिछले दिनों आमिर खान से मेरी बात हुई थी। उन्होंने कहा- ‘मैं भी फिल्में, काम करने के लिए करता था, मुझे भी बाद में ये लगने लगा कि ये मैं नहीं कर रहा हूं, कोई करवा रहा है, होता चला जा रहा है।’ इसके अलावा अखिलेन्द्र मिश्रा ने डायरेक्टर सुभाष घई के अध्यात्म से रिश्ते का भी जिक्र किया।
अखिलेन्द्र मिश्रा ने अपनी पुस्तक में अभिनय, अभिनेता और अध्यात्म के रिश्ते को बड़ी ही गहराई से समझाया है। उन्होंने इस पुस्तक की खासियत तो बताई ही, साथ ही ये भी बताया की ‘अभिनय, अभिनेता और अध्यात्म’ पिछले आठ महीनो से बेस्ट सेल्लिंग बुक्स में से एक बनी हुई है।
जैसे अध्यात्म में इंसान खुद को गहराई से समझने की कोशिश करता है, वैसे ही एक अभिनेता भी अलग-अलग किरदारों को निभाते हुए अपनी भावनाओं को पहचानता है। एक सफल अभिनेता वही होता है जो हर किरदार को अंदर से महसूस करे, ठीक वैसे ही जैसे एक साधक ध्यान में डूबकर खुद को जानने की कोशिश करता है। और ये बात अखिलेन्द्र मिश्रा ने अपनी बातों और अपनी किताब के माध्यम से बखूबी समझाई है।