बिहार बोर्ड मैट्रिक परीक्षा 2025 के नतीजे घोषित कर दिए गए हैं, और इस बार सफलता की नई कहानी लिखी है रंजन वर्मा ने। बेहद साधारण परिवार से ताल्लुक रखने वाले रंजन ने पूरे राज्य में पहला स्थान हासिल किया है। उनके इस शानदार प्रदर्शन ने यह साबित कर दिया कि मेहनत और लगन के दम पर कोई भी मुश्किल आसान बनाई जा सकती है।
कैसे किया टॉप?
रंजन वर्मा ने गणित में 100 में से 100 अंक हासिल किए, जबकि संस्कृत में 98 और हिंदी, विज्ञान तथा सामाजिक विज्ञान में 97 अंक मिले। उनकी इस सफलता के पीछे उनकी कड़ी मेहनत, अनुशासन और निरंतर अभ्यास का बड़ा योगदान रहा।
संघर्ष भरी जिंदगी, लेकिन कभी नहीं हारी हिम्मत
रंजन का परिवार आर्थिक रूप से कमजोर है। उनकी मां मजदूरी करके घर चलाती हैं, लेकिन उन्होंने कभी अपने बेटे की पढ़ाई में कोई रुकावट नहीं आने दी। सीमित संसाधनों के बावजूद रंजन ने अपनी पढ़ाई जारी रखी और अपनी मेहनत से पूरे बिहार में पहला स्थान हासिल किया।
रंजन की सफलता की कहानी सिर्फ उनकी मेहनत और लगन तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे उनका संघर्ष और कठिन परिस्थितियों से लड़ने का जज्बा भी छिपा है। रंजन का परिवार बेहद साधारण और आर्थिक रूप से कमजोर था। उनके पिता का देहांत हो चुका था, जिसके बाद उनकी मां ने परिवार की सारी जिम्मेदारियां अपने कंधों पर उठा लीं। मजदूरी करके घर चलाने वाली उनकी मां ने बेहद मुश्किल हालातों में भी अपने बेटे की पढ़ाई का ख्याल रखा और उसे कभी महसूस नहीं होने दिया कि उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर है।
लालटेन की रोशनी में की पढ़ाई
रंजन का घर पढ़ाई के लिए बहुत अनुकूल नहीं था। अक्सर बिजली न होने पर उन्हें मिट्टी के दीये या लालटेन की रोशनी में पढ़ाई करनी पड़ती थी। कभी-कभी उन्हें रात भर जागकर पढ़ाई करनी पड़ती ताकि अगले दिन के लिए वह पूरी तरह तैयार रहें। संसाधनों की कमी के बावजूद उन्होंने कभी हार नहीं मानी और अपनी पढ़ाई को प्राथमिकता दी।
रंजन की मां चाहती थीं कि उनका बेटा पढ़-लिखकर एक बेहतर भविष्य बनाए। मजदूरी से जो थोड़ा-बहुत पैसा बचता, वह रंजन की पढ़ाई में खर्च हो जाता। किताबें खरीदना, स्कूल की फीस भरना और कोचिंग की व्यवस्था करना उनकी मां के लिए आसान नहीं था, लेकिन उन्होंने अपने बेटे की पढ़ाई में कोई कमी नहीं आने दी। इस संघर्ष को देखकर रंजन ने भी ठान लिया कि वह अपनी मां की मेहनत को बेकार नहीं जाने देंगे।
पढ़ाई के साथ साथ मां की भी करते थे मदद
रंजन को पढ़ाई के साथ-साथ घर के कामों में भी हाथ बंटाना पड़ता था। मां की मदद करने के लिए वह खाली समय में छोटे-मोटे काम भी कर लिया करते थे। लेकिन उन्होंने इस संघर्ष को कभी अपनी पढ़ाई पर हावी नहीं होने दिया। उनका सपना हमेशा से पढ़ाई में बेहतर प्रदर्शन करके अपनी मां का नाम रोशन करना था।
रंजन को पढ़ाई के लिए इंटरनेट और ऑनलाइन संसाधनों का सहारा नहीं मिल पाया। उन्होंने ज्यादातर पढ़ाई किताबों और पुराने प्रश्न-पत्रों के सहारे की। गणित और विज्ञान जैसे विषयों में बेहतर करने के लिए उन्होंने रोजाना घंटों तक अभ्यास किया। कई बार समस्याएं हल न होने पर वे अपने शिक्षकों से पूछते और बार-बार कोशिश करके उन्हें हल करते।
परीक्षा से पहले रंजन ने दिन-रात मेहनत की। उन्होंने मॉक टेस्ट दिए और पुराने प्रश्न-पत्र हल किए ताकि परीक्षा के पैटर्न को समझ सकें। इस कठिन परिश्रम और संघर्ष का ही नतीजा था कि उन्होंने बिहार बोर्ड 10वीं परीक्षा में पूरे राज्य में पहला स्थान हासिल किया।
रंजन वर्मा की इस सफलता के पीछे उनका संघर्ष और कठिन परिस्थितियों से लड़ने का जज्बा साफ झलकता है। उन्होंने साबित किया कि अगर मन में दृढ़ निश्चय हो और मेहनत के प्रति ईमानदारी हो तो संसाधनों की कमी भी सफलता की राह में बाधा नहीं बन सकती। उनका संघर्ष उन तमाम छात्रों के लिए प्रेरणा है जो कठिन हालातों में भी अपने सपनों को साकार करना चाहते हैं।