पटना– बिहार विधानसभा चुनाव से पहले एक बार फिर ताड़ी और शराबबंदी कानून को लेकर सियासत गरमा गई है। केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री चिराग पासवान ने ताड़ी को “प्राकृतिक उत्पाद” बताते हुए कहा है कि इसे शराब की श्रेणी में नहीं रखा जाना चाहिए।
वहीं, राजद नेता और विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने भी घोषणा की है कि अगर INDIA गठबंधन बिहार में सत्ता में आता है, तो ताड़ी को शराबबंदी कानून से छूट दी जाएगी। इस बयान के बाद दलित वोट बैंक, खासकर पासी समुदाय को साधने की कोशिशें तेज हो गई हैं।
ताड़ी को लेकर तेजस्वी यादव का बड़ा ऐलान
तेजस्वी यादव ने पटना में पासी समुदाय को संबोधित करते हुए कहा, “जब मैं महागठबंधन सरकार में उपमुख्यमंत्री था, तब मैंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से ताड़ी को शराब की श्रेणी से बाहर रखने का आग्रह किया था, लेकिन उन्होंने मेरी बात नहीं मानी।”
उन्होंने कहा कि उनके पिता लालू प्रसाद यादव के मुख्यमंत्री रहते हुए ताड़ी पर से कर माफ कर दिया गया था। तेजस्वी ने यह भी कहा कि बिहार उत्पाद एवं मद्य निषेध अधिनियम ने पासी समुदाय की आजीविका पर सीधा प्रभाव डाला है, क्योंकि उनकी पारंपरिक आजीविका ताड़ी दोहन पर निर्भर रही है।
पासी समुदाय और ताड़ी: पारंपरिक संबंध
बिहार जाति सर्वेक्षण 2022 के अनुसार, पासी समुदाय की जनसंख्या 12,88,031 है, जो राज्य की कुल जनसंख्या का लगभग 1% से भी कम है। यह समुदाय महादलित श्रेणी में आता है।
ताड़ी, जो खजूर या ताड़ के पेड़ से निकाली जाती है, को पासी समुदाय पारंपरिक रूप से एकत्रित करता है। लेकिन अप्रैल 2016 में लागू पूर्ण शराबबंदी कानून के तहत ताड़ी को भी मादक पेय की श्रेणी में शामिल कर दिया गया, जिससे हजारों परिवारों की रोजी-रोटी पर संकट आ गया।
राजद और भाजपा, दोनों ने उस समय ताड़ी पर प्रतिबंध लगाने का विरोध किया था और इसे गरीब समुदाय के हितों के खिलाफ बताया था।
चिराग पासवान का बयान: ताड़ी शराब नहीं
लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान ने कहा, “ताड़ी एक प्राकृतिक उत्पाद है और इसे शराब के समान नहीं माना जाना चाहिए। यह प्रतिबंध पासी समुदाय की पारंपरिक पहचान और आजीविका पर हमला है।”
JDU और BJP का पलटवार
जेडीयू के एमएलसी नीरज कुमार ने राजद पर पलटवार करते हुए कहा कि राजद अपने संविधान में लिखता है कि उसकी सदस्यता उन्हीं को मिलेगी जो नशीले पदार्थों से दूर रहते हैं। उन्होंने चुनौती दी कि राजद महिलाओं से हस्ताक्षर अभियान चलाकर पूछे कि वे ताड़ी को प्रतिबंध से छूट देने के पक्ष में हैं या नहीं।
भाजपा प्रवक्ता मनोज कुमार शर्मा ने भी कहा कि शराबबंदी कानून को विधानसभा में सर्वसम्मति से पारित किया गया था, जिसमें राजद भी शामिल थी। उन्होंने कहा, “अब ताड़ी के बहाने पासी समुदाय को लुभाने की कोशिश करना राजद के दोहरे चरित्र को दिखाता है।”
ताड़ी पर राजनीतिक दांव और चुनावी समीकरण
बिहार में जातीय राजनीति में दलित और महादलित वोटर्स की अहम भूमिका है। ताड़ी पर हो रही यह सियासत दरअसल पासी समुदाय को साधने की रणनीति मानी जा रही है, जिनकी परंपरागत आजीविका ताड़ी पर निर्भर है।
वहीं, नीतीश सरकार शराबबंदी को अब भी सामाजिक सुधार की मिसाल बताती है, जिसका उद्देश्य घरेलू हिंसा कम करना, महिलाओं को सशक्त बनाना, और स्वास्थ्य सुधार है। हालांकि कानून में समय-समय पर संशोधन होते रहे हैं, जैसे मई 2023 में दंड की राशि घटाना।
बिहार में ताड़ी पर छिड़ी बहस केवल परंपरा बनाम कानून की नहीं, बल्कि राजनीतिक गणित और वोट बैंक की है। जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, ताड़ी एक बार फिर चुनावी मुद्दा बनती जा रही है, जिससे न केवल दलित समुदाय, बल्कि राज्य की सामाजिक नीति और राजनीतिक प्राथमिकताओं पर भी असर पड़ सकता है।