पटना : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले चुनाव आयोग (ECI) द्वारा शुरू की गई स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) प्रक्रिया पर सियासत गरमा गई है। 11 विपक्षी दलों ने इस प्रक्रिया को गरीब, दलित, आदिवासी और प्रवासी तबकों के खिलाफ साजिश करार दिया है। इन दलों ने मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार से मुलाकात कर एक संयुक्त ज्ञापन सौंपा और इस प्रक्रिया को तत्काल रोकने की मांग की।
विपक्ष का आरोप : लाखों मतदाताओं का नाम हटाने की तैयारी
कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल (राजद), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा), मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा), भाकपा (माले-लिबरेशन), समाजवादी पार्टी (सपा) और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी – शरद पवार गुट) सहित INDIA गठबंधन के नेताओं का कहना है कि यह प्रक्रिया वोटर लिस्ट से लाखों असली मतदाताओं के नाम हटाने की योजना है।
इन दलों का कहना है कि मतदाताओं से स्वयं और उनके माता-पिता का जन्म प्रमाण पत्र मांगा जा रहा है, जो न केवल जटिल प्रक्रिया है, बल्कि 8.1 करोड़ मतदाताओं पर एक अनुचित बोझ भी है।
‘2003 की वोटर लिस्ट’ बना आधार, मचा बवाल
ECI ने प्रस्ताव रखा है कि केवल वही व्यक्ति मतदाता माने जाएंगे जो 2003 की वोटर लिस्ट में दर्ज हैं, बाकी को दोबारा नामांकन हेतु दस्तावेज प्रस्तुत करने होंगे। इस प्रस्ताव पर भाकपा-माले के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा,
‘2003 की वोटर लिस्ट में नहीं होने पर नागरिकता साबित करनी होगी? यह तो सीधी ‘वोटबंदी’ है’।
सिंघवी की चेतावनी : दो करोड़ मतदाता हो सकते हैं बाहर
कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि यह प्रक्रिया कम से कम दो करोड़ मतदाताओं को वोटर लिस्ट से बाहर कर सकती है, जिनमें ज्यादातर दलित, आदिवासी, प्रवासी मजदूर और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग शामिल हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि यदि किसी व्यक्ति का नाम हटाया गया, तो चुनाव घोषित होने के बाद न्यायिक अपील संभव नहीं होगी, क्योंकि अदालतें उस समय चुनाव संबंधी मामलों की सुनवाई नहीं करतीं।
22 सालों में कोई गड़बड़ी नहीं, तो अब संशोधन क्यों?
सिंघवी ने यह सवाल भी उठाया कि जब 2003 से अब तक हुए 4–5 विधानसभा चुनावों में कोई बड़ी गड़बड़ी नहीं पाई गई, तो अब इस विशेष संशोधन की अचानक आवश्यकता क्यों महसूस की गई?
उन्होंने कहा,
’22 सालों में जितने भी चुनाव हुए, क्या वे सब गलत थे। अगर नहीं, तो अब ऐसी प्रक्रिया क्यों लाई जा रही है, जो लाखों लोगों को मताधिकार से वंचित कर सकती है’।
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