कोलकाता : पश्चिम बंगाल की राजनीति में एक समय प्रभावी भूमिका निभाने वाले बीजेपी नेता इंद्रजीत सिन्हा की एक तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो गई, जिसमें वे बीरभूम जिले के तारापीठ श्मशान घाट पर भीख मांगते हुए नजर आ रहे थे। यह तस्वीर जल्द ही हड़कंप का कारण बन गई और प्रदेश में राजनीतिक हलचल तेज हो गई।
‘बुलेट दा’ की दयनीय स्थिति और वायरल तस्वीर
इंद्रजीत सिन्हा, जिनका राजनीतिक नाम ‘बुलेट दा’ है, एक समय में बंगाल बीजेपी में महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत थे। उनकी तस्वीर के वायरल होने के बाद उनकी दयनीय स्थिति पर चर्चा शुरू हो गई है। उनकी खराब तबीयत और जीवन की विपत्ति ने न केवल पार्टी को बल्कि राज्य के नेताओं को भी चिंता में डाल दिया।
सिन्हा के बारे में जानकारी मिली कि वे पिछले कुछ समय से लाइलाज कैंसर से जूझ रहे हैं। उनके स्वास्थ्य में लगातार गिरावट आ रही थी और इलाज के लिए भी उन्हें कोई मदद नहीं मिल पा रही थी। इतना ही नहीं, उनकी जीवन स्थितियां भी इतनी खराब हो चुकी थीं कि उन्हें खाने-पीने के लिए भी श्मशान घाट पर भीख मांगनी पड़ रही थी।
पार्टी और नेताओं की प्रतिक्रिया
सिन्हा की स्थिति को देखकर राज्य बीजेपी के अध्यक्ष और केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ. सुकांत मजूमदार ने तुरंत कार्यवाही की। उन्होंने बीरभूम के बीजेपी जिलाध्यक्ष से संपर्क कर सिन्हा को अस्पताल में भर्ती करवाने की बात कही। इसके बाद राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी ने भी सिन्हा की मदद के लिए कदम बढ़ाए और उन्हें कोलकाता के एक बड़े निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया।
राजनीतिक कॅरियर और योगदान
इंद्रजीत सिन्हा का बंगाल बीजेपी में एक महत्वपूर्ण योगदान था। वे पार्टी के स्वास्थ्य सेवा प्रकोष्ठ के संयोजक के रूप में कार्य करते थे और पार्टी कार्यकर्ताओं और समर्थकों को सरकारी अस्पतालों में भर्ती कराना उनकी प्रमुख जिम्मेदारी थी। उनका नाम और काम राज्य के राजनीतिक हलकों में काफी प्रसिद्ध था।
सिन्हा ने लगभग दस साल पहले कांग्रेस छोड़कर बीजेपी ज्वाइन की थी। इसके बाद उन्होंने पार्टी के लिए कई अहम कार्य किए और बंगाल में बीजेपी की उपस्थिति बढ़ाने में अपनी भूमिका निभाई। लेकिन, स्वास्थ्य समस्याओं के कारण वे अब पार्टी के कामकाज में सक्रिय नहीं रह पाए थे।
दुखद हालात और परिवार का समर्थन न होना
सिन्हा की हालत बहुत खराब थी और उनकी बीमारी के कारण वे अकेले पड़ गए थे। उनका कोई परिवार नहीं था, क्योंकि उनके माता-पिता का पहले ही निधन हो चुका था। अविवाहित होने के कारण उनका कोई करीबी सहारा भी नहीं था। इसके कारण उन्हें अपनी कठिनाइयों का सामना अकेले ही करना पड़ रहा था। तारापीठ श्मशान घाट में दो महीने तक भीख मांगने और पेड़ के नीचे रात बिताने से उनकी स्थिति बहुत दयनीय थी।


