Home » पात पात बिहँस रहा प्रात

पात पात बिहँस रहा प्रात

by The Photon News Desk
bajendra nath mishra
WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Follow Now

पात पात बिहँस रहा प्रात

व्योम की नीलिमा में खोजता पथ,
कौन आ रहा, चढ़ा वह रश्मिरथ।

लालिमा में लुप्त हो रही रात,
पात-पात बिहँस रहा प्रात।

तरु-शैशवों से फूट रहीं कोंपलें,
क्यारियाँ में केसर के सिलसिले।

कामिनी जाग रही, सो रही रात।
पात -पात बिहँस रहा प्रात।

अरुणोदय में खुले कमल-दल-पट,
कैद भ्रमर सांस लेने निकला झट।

हरीतिमा में स्वर्णिमा आत्मसात।
पात-पात बिहँस रहा प्रात।

पर्वतों से सरक रही धवल-धार,
प्रकृति नटी कर रही नित श्रृंगार।

शिखरों से झाँकता अरुण स्यात,
पात-पात बिहँस रहा प्रात।

वृक्षो से लिपट रही लतायें,
संवाद में रत तरु शाखाएं।

अरुनचूड़ बोल उठा बीत गयी रात।
पात पात बिहँस रहा प्रात।

 

bajendra nath mishra

ब्रजेन्द्र नाथ मिश्र
अवकाश प्राप्त अधिकारी
टाटा स्टील,
निवास : सुन्दर गार्डन, संजय पथ, डिमना रोड, मानगो. जमशेदपुर.

Related Articles