सेंट्रल डेस्क। Patanjali Advertisment Banned : सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में योग गुरु बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के विज्ञापनों पर अगले आदेश तक पूरी तरह से रोक लगा दी है। कोर्ट ने यह कदम पतंजलि के विज्ञापनों में भ्रामक और झूठे दावों को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई के बाद उठाया है।
अदालत का केंद्र को नोटिस, पूछा- अबतक क्या की कार्रवाई
सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने पतंजलि को यह भी निर्देश दिया है कि वह अगली सुनवाई तक अपने उत्पादों के विज्ञापन प्रसारित करने से परहेज करे। कोर्ट ने केंद्र सरकार को भी नोटिस जारी कर पूछा है कि उसने पतंजलि के खिलाफ अब तक क्या कार्रवाई की है।
झूठे व भ्रामक दावे का आरोप
बता दें कि यह मामला औषधि और चिकित्सा प्रसाधन अधिनियम, 1954 के तहत दायर विभिन्न याचिकाओं से जुड़ा हुआ है। इन याचिकाओं में आरोप लगाया गया था कि पतंजलि के विज्ञापनों में झूठे और भ्रामक दावे किए जाते हैं, जिससे उपभोक्ताओं को गुमराह किया जाता है।
Patanjali: कोर्ट ने क्या कहा
कोर्ट ने कहा, “पूरे देश को बेवकूफ बनाया जा रहा है और सरकार ने इस पर अपनी आंखे मूंद ली हैं। ये बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।” कोर्ट ने यह भी पूछा, “आपने पतंजलि आयुर्वेद के भ्रामक विज्ञापनों पर अब तक कार्रवाई क्यों नहीं की?”
याचिकाओं में लगाए गए ये आरोप
याचिकाकर्ताओं का दावा है कि पतंजलि के विज्ञापनों में उनकी दवाओं को अचूक इलाज के रूप में पेश किया जाता है, जबकि ऐसा कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। उदाहरण के लिए, कुछ विज्ञापनों में दावा किया गया है कि पतंजलि की दवाएं मधुमेह, गठिया और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का इलाज कर सकती हैं। इसके अलावा, याचिकाकर्ताओं ने यह भी आरोप लगाया है कि पतंजलि के विज्ञापन अश्लील और भ्रामक होते हैं, जिनमें महिलाओं को कमतर दर्शाया जाता है। उन्होंने यह भी कहा कि ये विज्ञापन बच्चों को भी गलत प्रभावित करते हैं।
पतंजलि ने आरोपों को किया खारिज, दिए जवाब
पतंजलि ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि उनके विज्ञापन सत्य पर आधारित हैं और किसी भी तरह से भ्रामक नहीं हैं। कंपनी ने यह भी दावा किया है कि उनके उत्पाद आयुर्वेदिक परंपरा पर आधारित हैं और सदियों से उपयोग किए जा रहे हैं। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि के तर्कों को खारिज कर दिया और अगली सुनवाई तक उनके विज्ञापनों पर रोक लगा दी।
उपभोक्ताओं के हित में महत्वपूर्ण फैसला
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला उपभोक्ताओं के लिए एक महत्वपूर्ण फैसला है। इससे यह उम्मीद जगी है कि भविष्य में कंपनियां भ्रामक विज्ञापनों के जरिए उपभोक्ताओं को गुमराह नहीं कर पाएंगी। साथ ही, यह फैसला विज्ञापनदाताओं को भी एक सख्त संदेश देता है कि उन्हें विज्ञापनों में सत्य और सटीक जानकारी का ही इस्तेमाल करना चाहिए।
अब नजरें अगली सुनवाई पर
हालांकि, यह फैसला विवादों से भी घिरा हुआ है। कुछ लोगों का मानना है कि यह फैसला व्यवसाय की स्वतंत्रता का हनन है, जबकि कुछ अन्य का कहना है कि यह स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देगा। गौरतलब है कि यह मामला अभी अंतिम रूप से हल नहीं हुआ है। अगली सुनवाई में कोर्ट पतंजलि के विज्ञापनों पर लगी रोक को हटा सकता है या फिर इसे स्थायी रूप से लागू कर सकता है। यह देखना बाकी है कि कोर्ट इस मामले में अंतिम फैसला क्या सुनाता है।
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