सेंट्रल डेस्क : दिल्ली विधानसभा सत्र के दौरान मंगलवार को पेश की गई एक अहम रिपोर्ट ने दिल्ली की शराब नीति में हुए घोटाले के बारे में कई चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। यह रिपोर्ट भारत सरकार के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की ओर से तैयार की गई है। इसमें तत्कालीन दिल्ली सरकार की शराब नीति से संबंधित गंभीर अनियमितताओं का पर्दाफाश हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक, इस शराब नीति से दिल्ली सरकार को 2,002 करोड़ रुपये का भारी नुकसान हुआ है।
क्या है कैग की रिपोर्ट में ?
CAG (कैग) की यह रिपोर्ट 2017-18 से 2021-22 तक के दौरान शराब नीति और इसके कार्यान्वयन की जांच पर आधारित है। रिपोर्ट में बताया गया है कि आम आदमी पार्टी (AAP) के नेतृत्व वाली दिल्ली की पूर्व सरकार द्वारा लागू की गई नई शराब नीति में कई प्रकार की वित्तीय गड़बड़ियों के कारण सरकारी खजाने को बड़ा नुकसान हुआ। इस नीति को सितंबर 2022 में वापस ले लिया गया था, लेकिन तब तक सरकार को भारी नुकसान हो चुका था।
मुख्य बिंदु जो रिपोर्ट में शामिल हैं:
नुकसान की राशि
CAG की रिपोर्ट के अनुसार नई शराब नीति के कारण दिल्ली सरकार को 2,002 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। इस नुकसान में शराब के कारोबार से संबंधित कई अनियमितताओं का योगदान था।
लाइसेंस जारी करने में छूट
रिपोर्ट में कहा गया कि गैर-कंफर्मिंग क्षेत्रों में लाइसेंस जारी करने में ढील देने के कारण दिल्ली सरकार को लगभग 940 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।
रिटेंडर प्रक्रिया में लापरवाही
रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि शराब की रिटेंडर प्रक्रिया में गलत फैसलों की वजह से दिल्ली सरकार को 890 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।
कोविड-19 का असर
कोविड-19 के दौरान शराब कारोबारियों को 28 दिसंबर 2021 से 27 जनवरी 2022 तक लाइसेंस शुल्क में 144 करोड़ रुपये की छूट दी गई, जिसका भी सरकार को नुकसान हुआ।
Security Deposit: सुरक्षा जमा पर सवाल
रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया गया कि सरकार ने शराब के व्यापारियों से सुरक्षा जमा ठीक से इकट्ठा नहीं किया, जिसके कारण 27 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।
लाइसेंस के नियमों का उल्लंघन
शराब नीति के तहत शराब के खुदरा विक्रेताओं ने लाइसेंस का सही तरीके से उपयोग नहीं किया। कुछ ने लाइसेंस को समय से पहले ही वापस कर दिया, जबकि अन्य ने नीति के खत्म होने तक उनका उपयोग किया।
लाइसेंस की नीति में अनियमितताएं
CAG की रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि दिल्ली एक्साइज नियम, 2010 के नियम 35 को सही से लागू नहीं किया गया, जिससे शराब की सप्लाई चेन में अनियमितताएं आईं। मैन्युफैक्चरिंग और रिटेल में दिलचस्पी रखने वाले कारोबारियों को थोक व्यापार का लाइसेंस दे दिया गया, जिससे कुछ कारोबारियों को फायदा हुआ और इसके कारण मार्जिन 5% से बढ़कर 12% हो गया।
मोनोपॉली और अन्य समस्याएं
रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया कि पहले एक व्यक्ति को केवल 2 दुकानें चलाने की अनुमति थी, लेकिन नई नीति में यह संख्या बढ़ाकर 54 कर दी गई। इससे मोनोपॉली को बढ़ावा मिला। दिल्ली सरकार ने अपनी शराब नीति में 377 दुकानें तय की थीं, लेकिन नई नीति के तहत 849 शराब वेंडर बन गए, जिनमें से केवल 22 को निजी इकाइयों को लाइसेंस दिया गया।
बारकोडिंग और स्कैनिंग में गड़बड़ियां
एक और गंभीर आरोप यह था कि शराब की तस्करी को रोकने के लिए 2010 में दिल्ली कैबिनेट ने हर बोतल को बारकोडेड करने का फैसला लिया था। CAG की रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि 482.62 करोड़ बोतलें बारकोड के साथ बेचीं गईं, लेकिन सिर्फ 346.09 करोड़ ही स्कैन की गईं। इसका मतलब था कि 136.53 करोड़ बोतलें बिना स्कैन किए बेची गईं।
सरकारी खजाने पर पड़ा सीधा असर
CAG की रिपोर्ट ने दिल्ली सरकार की शराब नीति की गंभीर खामियों को उजागर किया है। यह रिपोर्ट यह साबित करती है कि इस नीति को लागू करते वक्त सरकार ने कई अहम वित्तीय नियमों की अनदेखी की, जिसका सीधा असर सरकारी खजाने पर पड़ा। इस रिपोर्ट ने यह भी साफ कर दिया कि दिल्ली सरकार को इस नीति के दौरान भारी वित्तीय नुकसान हुआ, और इस पर गंभीर सवाल उठाए जा रहे हैं। अब यह देखना होगा कि इस रिपोर्ट के बाद दिल्ली सरकार इस मामले में कौन से कदम उठाती है और क्या दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाती है।