जमशेदपुर : पोटका विधानसभा क्षेत्र में भाजपा की मजबूत गढ़ मानी जाने वाली घाघीडीह मंडल में चुनावी सरगर्मी तेज हो गई है। हाल ही में यह बात सामने आई थी कि मंडल में भाजपाइयों के बीच फूट पड़ गई है, जिससे प्रत्याशी मीरा मुंडा को चुनाव में नुकसान हो सकता है। इस रिपोर्ट का असर यह हुआ कि मीरा मुंडा शनिवार शाम को घाघीडीह मंडल में पहुंच गईं।
कार्यकर्ताओं की बैठक
मीरा मुंडा की पहली गतिविधि कीताडीह स्थित पूर्व मंडल अध्यक्ष संदीप शर्मा उर्फ बॉबी के घर एक बैठक आयोजित करना था। इस बैठक में कई मंच मोर्चा के सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। बैठक में शामिल होने से पहले, कार्यकर्ताओं ने यह स्पष्ट किया कि वे तब तक नहीं आएंगे जब तक मंडल अध्यक्ष आनंद कुमार उपस्थित न हों। इस मांग को मानते हुए आनंद कुमार को किनारे कर दिया गया और मीरा मुंडा ने कार्यकर्ताओं के साथ बैठक की, जिससे उन्हें चुनावी तैयारियों के लिए सक्रिय करने का अवसर मिला।
धर्म वालिया से मुलाकात
बैठक के बाद मीरा मुंडा नाराज सिख नेता और संयुक्त बागबेड़ा मंडल युवा मोर्चा के पूर्व उपाध्यक्ष धर्म वालिया उर्फ बंटी वालिया के घर भी गईं। बंटी ने चुनाव संचालन समिति में सिखों को उचित प्रतिनिधित्व न मिलने के कारण इस्तीफा दे दिया था। मीरा मुंडा ने उन्हें मनाने में सफलता हासिल की और उन्हें पार्टी में वापस लाने का प्रयास किया। इस प्रयास से इंडिया गठबंधन और झामुमो के प्रत्याशी संजीव सरदार को बड़ा झटका लग सकता है।
महत्वपूर्ण नेताओं की उपस्थिति
इस बैठक में ओबीसी मोर्चा जिला के उपाध्यक्ष ललन यादव, भारतीय जनता युवा मोर्चा के जिला उपाध्यक्ष शशि यादव, घाघीडीह मंडल के उपाध्यक्ष अभिषेक सिंह, महामंत्री सुशील सिंह, और अन्य कई प्रमुख नेता मौजूद थे। अन्य महत्वपूर्ण कार्यकर्ताओं में घाघीडीह मंडल युवा मोर्चा के अध्यक्ष दिवाकर सिंह, ओबीसी मोर्चा के अध्यक्ष बलराम ठाकुर, और पूर्व जिला परिषद सदस्य राना डे शामिल थे।
बताया जाता है कि मीरा मुंडा की यह सक्रियता न केवल उनकी चुनावी रणनीति को मजबूत बनाती है, बल्कि पार्टी में एकजुटता और कार्यकर्ताओं के बीच विश्वास को भी बढ़ाती है। उनके प्रयासों से जहां एक ओर भाजपा के प्रति कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ा है, वहीं दूसरी ओर विपक्षी गठबंधन को एक चुनौती का सामना करना पड़ सकता है। आगामी चुनावों में यह घटनाक्रम महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। मीरा मुंडा की कोशिशें यह दर्शाती हैं कि भाजपा चुनावी रणभूमि में अपनी पकड़ मजबूत बनाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती।