चमोली : उत्तराखंड के चमोली जिले के माणा पास में हुए हिमस्खलन में चार मजदूरों की मौत हो गई, जबकि 55 श्रमिकों को रेस्क्यू ऑपरेशन के तहत बचा लिया गया है। यह घटना शुक्रवार सुबह करीब छह बजे माणा गांव से लगभग तीन किलोमीटर आगे माणा पास में हुई, जहां काम कर रहे मजदूरों के आवास भी इस हिमस्खलन के कारण प्रभावित हुए। हालांकि सेना और आईटीबीपी की टीम ने दो दिन तक चलाए गए रेस्क्यू ऑपरेशन के तहत अधिकांश श्रमिकों को सुरक्षित निकाल लिया है।
इस घटना के बाद कई सवाल उठने लगे हैं, खासकर यह कि मजदूरों के आवास इस तरह के संवेदनशील और हिमस्खलन प्रभावित इलाके में क्यों बनाए गए, जहां पहले भी इस तरह की घटनाएं हो चुकी हैं।
रेस्क्यू ऑपरेशन और बचाव कार्य
माणा पास में हुए हिमस्खलन में 55 श्रमिकों का कैंप प्रभावित हुआ था। सेना और आईटीबीपी के जवानों ने तत्काल बचाव कार्य शुरू किया और करीब दो दिन बाद अधिकांश श्रमिकों को सुरक्षित निकाल लिया गया। लेकिन दुखद यह था कि इस घटना में चार मजदूरों की जान चली गई। रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान वहां पर बर्फबारी और बर्फ की चादर ने स्थिति को और गंभीर बना दिया, जिससे बचाव कार्य में चुनौती भी आई।
संवेदनशील इलाके में क्यों थे श्रमिकों के आवास?
माणा पास क्षेत्र में हिमस्खलन की यह घटना एक बार फिर यह सवाल खड़ा करती है कि श्रमिकों के लिए इस तरह के संवेदनशील क्षेत्र में आवास क्यों बनाए गए, जहां हिमस्खलन की संभावना पहले से ही थी। बाॅर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन (बीआरओ) की कार्यशैली पर सवाल उठने लगे हैं, क्योंकि इस क्षेत्र में पहले भी हिमस्खलन की घटनाएं हो चुकी हैं।
स्थानीय निवासी धर्मेंद्र नैथानी के अनुसार, जिस जगह पर श्रमिकों के लिए आवास बनाए गए थे, वह क्षेत्र हिमस्खलन के लिहाज से संवेदनशील था। उन्होंने कहा कि यह स्थान पहाड़ी के ठीक नीचे स्थित था, जहां बर्फीला तूफान आ सकता था। उनका यह भी कहना था कि इस तरह के संवेदनशील इलाके में श्रमिकों के लिए आवास का निर्माण करना पूरी तरह से गलत था।
भूवैज्ञानिकों का विश्लेषण

भूवैज्ञानिक डॉ. एसपी सती ने इस बारे में अपनी राय व्यक्त करते हुए कहा कि अलकनंदा और बदरीनाथ घाटी हिमस्खलन के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र की पहाड़ियों पर सैकड़ों साल पहले छोटे ग्लेशियर मौजूद थे, जो बाद में पिघलकर गड्ढे बन गए। इन गड्ढों को ‘रिलिक्ट माउंटेन साइट्स’ कहा जाता है। इन जगहों पर ताजे हिमपात के बाद बर्फ की पकड़ कमजोर हो जाती है और वह अपनी ही भारी वजन के कारण नीचे की ओर खिसकने लगती है, जिसे हिमस्खलन कहा जाता है।
उन्होंने यह भी कहा कि 2021 में गिरथी घाटी में हुई हिमस्खलन की घटना के बाद उन्होंने इस क्षेत्र के संवेदनशील इलाकों की पहचान की थी और एक पत्र में उन इलाकों को चिह्नित किया था, जहां हिमस्खलन की संभावना अधिक थी। माणा पास क्षेत्र भी उन संवेदनशील इलाकों में शामिल था।
बीआरओ की जिम्मेदारी
बीआरओ, जो कि सीमा सड़क संगठन के तहत काम करता है, पर इस घटना के बाद सवाल उठाए जा रहे हैं कि कैसे उन्होंने इस क्षेत्र को श्रमिकों के निवास के लिए चुना। यह संस्था सड़क निर्माण और अन्य बुनियादी ढांचे के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, लेकिन इस क्षेत्र में उनकी कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।
भविष्य में सुधार की आवश्यकता
इस घटना के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि भविष्य में श्रमिकों के आवासों और बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए ऐसे संवेदनशील इलाकों में कोई भी निर्माण कार्य नहीं किया जाना चाहिए, जहां प्राकृतिक आपदाओं का खतरा हो। इसके साथ ही, सरकार और संबंधित एजेंसियों को ऐसे संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान करनी चाहिए और वहां पर सुरक्षा उपायों को सख्ती से लागू करना चाहिए।
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