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गलतियों से सीखने में नाकाम और जिम्मेदारियों के चक्रव्यूह में फंसी कांग्रेस

इसका मुख्य कारण “प्रभारियों का क्लब” है—एक ऐसा समूह जिसमें कई वरिष्ठ नेताओं को बार-बार महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ दी जाती हैं, भले ही वे पहले सफलताएँ हासिल करने में असफल रहे हों।

by Reeta Rai Sagar
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जमशेदपुर : भारत की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी, कांग्रेस, 2014 के बाद से लगातार चुनावी असफलताओं का सामना कर रही है। चुनावी हार और घटते जनाधार के बावजूद, पार्टी अपनी आंतरिक गलतियों से सीखने में नाकाम रही है। इसका मुख्य कारण “प्रभारियों का क्लब” है—एक ऐसा समूह जिसमें कई वरिष्ठ नेताओं को बार-बार महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ दी जाती हैं, भले ही वे पहले सफलताएँ हासिल करने में असफल रहे हों। यह आंतरिक संरचना और निर्णय लेने की प्रक्रिया कांग्रेस की राजनीतिक सेहत पर नकारात्मक प्रभाव डाल रही है।


प्रभारियों का क्लब: विफलताओं के बावजूद निरंतर जिम्मेदारी

कांग्रेस नेतृत्व ने बार-बार उन्हीं नेताओं को महत्वपूर्ण राज्यों का प्रभारी बनाया है, जिन्होंने पहले चुनावी सफलता में असफलता का सामना किया। यह प्रवृत्ति पार्टी में गहरी आलोचना का कारण बन गई है, क्योंकि कई नेताओं को असफलताओं के बावजूद पुनः जिम्मेदारी सौंपी जा रही है। इनमें प्रमुख हैं मुकुल वासनिक, रणदीप सिंह सुरजेवाला, कुमारी शैलजा, अजय कुमार, मणिकम टैगोर, जितेंद्र सिंह समेत अन्य वरिष्ठ नेता।


कुमारी शैलजा व अजय कुमार : कुमारी शैलजा छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड की प्रभारी थीं। उनके नेतृत्व में पार्टी छत्तीसगढ़ में तमाम अनुकूल परिस्थितियों के बावजूद अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकी। वहीं, अजय कुमार, जो पहले सिक्किम, नागालैंड और त्रिपुरा के प्रभारी रहे, को ओडिशा का प्रभार दिया गया, लेकिन वहां भी पार्टी प्रभावी नहीं हो सकी।


मुकुल वासनिक : महाराष्ट्र से आने वाले वासनिक वर्तमान में गुजरात के प्रभारी हैं। इससे पहले, वे मध्य प्रदेश के प्रभारी रहे, जहां पार्टी को भारी नुकसान उठाना पड़ा। इसके बावजूद, उन्हें गुजरात का प्रभार दिया गया, जहां पार्टी एक बार फिर से अच्छे प्रदर्शन में विफल रही।


रणदीप सिंह सुरजेवाला
: कर्नाटक में कांग्रेस को भारी जीत दिलाने वाले सुरजेवाला को मध्य प्रदेश का अतिरिक्त प्रभार दिया गया, लेकिन वहां भी वे उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे।


मणिकम टैगोर व जितेंद्र सिंह : मणिकम टैगोर को आंध्र प्रदेश और तेलंगाना का प्रभारी बनाया गया था, लेकिन वे वहां भी पार्टी को मजबूती नहीं दिला पाए। जितेंद्र सिंह, जो पहले असम के प्रभारी थे, मध्य प्रदेश में भी अपेक्षित प्रदर्शन करने में असफल रहे।

पार्टी में बढ़ता असंतोष
कांग्रेस में यह प्रवृत्ति स्पष्ट रूप से नजर आ रही है कि वफादारी को जवाबदेही से ऊपर रखा जा रहा है। इसी कारण कई वरिष्ठ नेताओं को बार-बार जिम्मेदारियाँ सौंपी जा रही हैं, भले ही वे असफल हुए हों। इससे नई प्रतिभाओं के लिए अवसर कम हो रहे हैं और पार्टी में असंतोष का माहौल बन रहा है। कई प्रमुख नेता इससे नाराज हैं और कुछ वरिष्ठ नेता अन्य दलों में शामिल हो रहे हैं।

फैक्ट फाइंडिंग कमेटी
पिछले कुछ वर्षों में पार्टी ने हार के कारणों पर चर्चा करने के लिए फैक्ट फाइंडिंग कमेटी का गठन किया है। हरियाणा, पंजाब, असम, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, और गुजरात जैसे राज्यों में हार के बाद कमेटियों का गठन किया गया, लेकिन उनके निष्कर्षों पर कोई बड़ा बदलाव या कार्रवाई नहीं हुई। इससे यह स्पष्ट होता है कि पार्टी अपनी आंतरिक गलतियों को सुधारने में रुचि नहीं दिखा रही है।

कांग्रेस कर पाएगी बदलाव?
कांग्रेस की वर्तमान स्थिति यह दर्शाती है कि पार्टी को अपनी रणनीतियों और नेतृत्व शैली में व्यापक सुधार की आवश्यकता है। असफलताओं से सीखना और नई नेतृत्व टीम को अवसर देना अनिवार्य है। पार्टी को ऐसे नेताओं का चयन करना होगा जो जमीनी स्तर पर काम कर सकें और जनता के साथ वास्तविक जुड़ाव बना सकें, न कि केवल पार्टी के वफादार नेताओं को जिम्मेदारियाँ सौंपें।

यदि कांग्रेस समय रहते अपने नेतृत्व और संगठनात्मक ढांचे में बदलाव नहीं करती, तो यह पार्टी के भविष्य के चुनावी प्रदर्शन के लिए गंभीर खतरा साबित हो सकता है। वर्तमान में, पार्टी को वफादारी से ऊपर कार्यकुशलता और जवाबदेही को प्राथमिकता देनी होगी, ताकि वह अपनी खोई हुई साख को पुनः प्राप्त कर सके और एक बार फिर से प्रभावशाली राजनीतिक ताकत बन सके।

कुल मिलाकर, कांग्रेस की आंतरिक संरचना और नेतृत्व के फैसलों पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। अगर पार्टी पुराने ढर्रे पर चलती रही, तो वह अपने पुनरुत्थान की संभावनाओं को सीमित कर देगी।

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