Jamshedpur (Jharkhand) : झारखंड में पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, 1996 (पेसा) कानून को लागू करने में राज्य सरकार की कथित उदासीनता को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता रघुवर दास ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। गुरुवार को जमशेदपुर के बिष्टुपुर स्थित चैंबर ऑफ कॉमर्स सभागार में आयोजित एक प्रेस वार्ता में उन्होंने वर्तमान हेमंत सोरेन सरकार पर जमकर हमला बोला।
रघुवर दास ने कहा कि राज्य सरकार पेसा कानून को लागू करने में लगातार टालमटोल कर रही है, जिसके कारण वह माननीय उच्च न्यायालय के आदेश की भी अवहेलना कर रही है। उन्होंने इसे लोकतंत्र और संविधान के लिए अत्यंत चिंताजनक बताया। पूर्व मुख्यमंत्री ने याद दिलाया कि 2024 में झारखंड उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को दो महीने के भीतर पेसा कानून लागू करने का स्पष्ट निर्देश दिया था, लेकिन एक साल बीत जाने के बावजूद सरकार ने इस दिशा में कोई भी ठोस कदम नहीं उठाया है। इसके परिणामस्वरूप, अब उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार के मुख्य सचिव और पंचायती राज विभाग के प्रधान सचिव को अवमानना का नोटिस जारी किया है।
रघुवर दास ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर सीधा निशाना साधते हुए कहा कि झारखंड की जनता यह जानना चाहती है कि आखिर एक आदिवासी मुख्यमंत्री होने के बावजूद हेमंत सोरेन इतने कमजोर क्यों हैं और किससे डर रहे हैं? उन्होंने सवाल उठाया कि क्या 2019 के विधानसभा चुनाव में ‘आबुआ राज’ और आदिवासी नेतृत्व के नाम पर केवल वोट हासिल किए गए थे? क्योंकि अब जब पेसा कानून को वास्तव में लागू करने का समय आया है, तो सरकार रहस्यमय चुप्पी साधे बैठी है।
इस दौरान रघुवर दास ने यह भी स्पष्ट किया कि उनकी पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के कार्यकाल में 2018 में ही पेसा नियमावली को लेकर 14 विभागों के सचिवों के साथ विस्तृत बैठक हुई थी और कानून को लागू करने की सभी तैयारियां पूरी कर ली गई थीं। हालांकि, बाद में हुए चुनाव और आचार संहिता लागू होने के कारण यह प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकी थी। उन्होंने वर्तमान झामुमो-कांग्रेस सरकार पर भी निशाना साधते हुए कहा कि उन्होंने 2023 में नियमावली का ड्राफ्ट तैयार कर आपत्तियां और सुझाव आमंत्रित किए थे, जिसे विधि विभाग और एडवोकेट जनरल ने भी वैध करार दिया है। अब केवल इसे कैबिनेट में मंजूरी देना बाकी है, लेकिन सरकार इस पर भी कोई निर्णय नहीं ले रही है।
रघुवर दास ने चेतावनी दी कि अगर पेसा नियमावली को जल्द लागू नहीं किया गया, तो 15वें वित्त आयोग की लगभग ₹1400 करोड़ की महत्वपूर्ण राशि लैप्स हो जाएगी, जिसका सीधा और नकारात्मक प्रभाव राज्य के गांवों के विकास पर पड़ेगा। उन्होंने बताया कि पेसा कानून लागू होने से ग्राम सभाओं को खनिज, वनोपज, बालू घाटों, तालाबों की नीलामी और अन्य स्थानीय संसाधनों पर कानूनी और आर्थिक अधिकार मिल जाएंगे, जिससे गांवों की अर्थव्यवस्था काफी हद तक मजबूत हो सकेगी।
उन्होंने यह भी जानकारी दी कि पेसा कानून भारत के उन 10 राज्यों में लागू होता है जहां पांचवीं अनुसूची के तहत अनुसूचित क्षेत्र घोषित हैं। इनमें से 8 राज्यों में यह कानून सफलतापूर्वक लागू हो चुका है, जबकि दुर्भाग्य से ओडिशा और झारखंड अभी भी पीछे हैं। रघुवर दास ने ओडिशा का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां 27 वर्षों तक बीजेडी की सरकार रही और उसने पेसा कानून लागू नहीं किया। अब झारखंड में भी 6 साल से एक आदिवासी मुख्यमंत्री हैं, लेकिन यहां भी यह महत्वपूर्ण कानून केवल फाइलों में ही दबा पड़ा है।
रघुवर दास ने पेसा कानून को झारखंड की आर्थिक सशक्तिकरण के साथ-साथ यहां की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और आदिवासी परंपराओं की रक्षा के लिए एक शक्तिशाली उपकरण बताया। उन्होंने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि आज आदिवासी संस्कृति पर चौतरफा हमला हो रहा है और पेसा कानून लागू होने से मांझी, परगना, पहान, मानकी-मुंडा जैसे पारंपरिक जनप्रतिनिधियों को उनके अधिकार वापस मिलेंगे और धर्मांतरण व बाहरी हस्तक्षेप पर भी प्रभावी ढंग से लगाम लगाई जा सकेगी।
पूर्व मुख्यमंत्री ने यह भी आरोप लगाया कि पेसा कानून को रोकने में विदेशी धर्म प्रचारक संस्थाओं की भी भूमिका रही है, जिन्होंने 2010 से 2017 तक इस कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में कई मुकदमे किए थे। हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही यह स्पष्ट कर दिया है कि झारखंड में केवल पांचवीं अनुसूची ही लागू होगी, न कि छठी अनुसूची। उन्होंने मुख्यमंत्री से भावनात्मक सवाल पूछते हुए कहा कि जब हमारे आदिवासी पूर्वज अंग्रेजों से नहीं डरे, तो वे (हेमंत सोरेन) आखिर किससे डर रहे हैं? रघुवर दास ने कहा कि सत्ता तो आती-जाती रहती है, लेकिन आदिवासी समाज की संस्कृति और अधिकारों की रक्षा सर्वोपरि है।
अपनी प्रेस वार्ता में रघुवर दास ने पेसा कानून के साथ-साथ शेड्यूल एरिया में थर्ड और फोर्थ ग्रेड की नौकरियों में स्थानीय युवाओं के लिए 10 वर्षों तक आरक्षण की पुरानी व्यवस्था को भी पुनः लागू करने की पुरजोर मांग की। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार ने यह व्यवस्था शुरू की थी, जिससे लाखों स्थानीय युवाओं को रोजगार के अवसर मिले थे, लेकिन वर्तमान सरकार ने हाई कोर्ट में एफिडेविट देकर इसे खुद ही गलत ठहराया और 60-40 की विवादित नीति लागू कर दी। उन्होंने राज्यपाल से अपनी मुलाकात और राज्य सरकार को भेजे गए अपने पत्र का हवाला देते हुए कहा कि जब राज्यपाल और हाई कोर्ट जैसे संवैधानिक संस्थान बार-बार सरकार को इस मुद्दे पर आदेश दे रहे हैं, तब भी सरकार रहस्यमय चुप्पी क्यों साधे हुए है? रघुवर दास ने अंत में चेतावनी दी कि अगर जल्द ही पेसा कानून को लागू नहीं किया गया, तो भाजपा राज्यव्यापी आंदोलन करने से भी पीछे नहीं हटेगी।
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