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टॉप रैंकिंग का झूठा दावा: AISF ने अभिनेता अल्लू अर्जुन और श्रीलीला पर की कानूनी कार्रवाई की मांग

AISF का कहना है कि अल्लू अर्जुन और श्रीलीला ने जिस विज्ञापन का प्रचार किया, उसमें दिए गए रैंक और छात्रों की वास्तविकता की कोई जांच नहीं की गई।

by Reeta Rai Sagar
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विजयवाड़ा: ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन (AISF) ने अभिनेता अल्लू अर्जुन और अभिनेत्री श्रीलीला के खिलाफ कड़ी प्रतिक्रिया जताते हुए उन पर भ्रामक ढंग से एक शैक्षणिक संस्थान का प्रचार करने का आरोप लगाया है। छात्रों की यह प्रमुख यूनियन दावा कर रही है कि इन सितारों द्वारा प्रचारित संस्थान ‘श्री चैतन्य’ ने अखबार के पहले पन्ने पर एक विज्ञापन प्रकाशित कर यह गलत जानकारी दी कि केवल उसके छात्र ही टॉप रैंक हासिल करते हैं और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करते हैं।

AISF का आरोप: विज्ञापन में किया गया झूठा दावा
AISF के एक प्रतिनिधि ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो साझा करते हुए कहा कि ये अभिनेता छात्रों और उनके अभिभावकों को गुमराह कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “श्री चैतन्य जैसे संस्थान का प्रचार कर अभिनेता यह दर्शा रहे हैं कि केवल यहीं से पढ़ने वाले छात्र ही बेहतर रैंक लाते हैं और अच्छी शिक्षा प्राप्त करते हैं।”
प्रतिनिधि ने यह भी कहा कि अभिनेता पैसे के बदले में ऐसे ब्रांड्स का प्रचार कर रहे हैं, जिससे माता-पिता लाखों रुपये खर्च कर देते हैं, लेकिन उन्हें होस्टल सुविधाओं सहित कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

AISF की मांग: भ्रामक शैक्षणिक प्रचार पर हो कड़ी कार्रवाई
AISF का कहना है कि अल्लू अर्जुन और श्रीलीला ने जिस विज्ञापन का प्रचार किया, उसमें दिए गए रैंक और छात्रों की वास्तविकता की कोई जांच नहीं की गई। प्रतिनिधि ने कहा, “जैसे सट्टा ऐप्स का प्रचार करने वाले अभिनेताओं पर मामले दर्ज किए गए, वैसे ही यहां भी कार्रवाई होनी चाहिए। छात्रों का भविष्य बर्बाद करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई अनिवार्य है।”

पिछले मामलों से की तुलना
गौरतलब है कि मार्च में राणा दग्गुबाती, विजय देवरकोंडा, प्रकाश राज सहित कई लोकप्रिय अभिनेताओं और सोशल मीडिया प्रभावकों पर सट्टेबाजी ऐप्स के प्रचार के मामले में भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita- BNS), गेमिंग अधिनियम (Gaming Act) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (Information Technology Act) के अंतर्गत केस दर्ज किए गए थे।

AISF का तर्क है कि जब सट्टा ऐप्स के प्रचार पर कानूनी कार्रवाई संभव है, तो भ्रामक शैक्षणिक प्रचार को भी उतनी ही गंभीरता से लिया जाना चाहिए। इससे न केवल छात्रों का भविष्य खतरे में पड़ता है, बल्कि अभिभावकों पर भी आर्थिक और मानसिक दबाव बढ़ता है।

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