नई दिल्ली : भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सामान्य तौर पर एक गंभीर व्यक्तित्व वाले गहन अर्थशास्त्री की छवि रही। एक धीर-गंभी व्यक्तित्व के साथ-साथ उनकी एक और खूबसूरत पहचान थी, जो बहुत कम लोगों को पता थी। दरअसल, डा. मनमोहन सिंह उर्दू शायरी के शौकीन थे। उनका शायराना अंदाज संसद में भी देखने को मिला जब एक बार उन्होंने दिवंगत भारतीय जनता पार्टी की नेता सुषमा स्वराज के साथ शायरी के माध्यम से बहस की। यह संसद की उन यादगार घटनाओं में से एक थी, जो न केवल राजनीति की गर्मी को शांत करने के लिए, बल्कि उनके शायराना अंदाज को भी दर्शाती है।
सुषमा स्वराज की आलोचना पर शायराना प्रतिक्रिया
एक समय जब भारतीय राजनीति में भ्रष्टाचार के आरोपों ने तूल पकड़ा था, सुषमा स्वराज ने लोकसभा में एक तीखे भाषण में शहाब जाफरी के शेर के माध्यम से मनमोहन सिंह पर निशाना साधा। उन्होंने कहा था, “तू इधर उधर की ना बात कर, यह बता कि काफिला क्यों लूटा, हमें राहजनो से गिला नहीं, तेरी रहबरी का सवाल है।” यह आरोप मनमोहन सिंह की सरकार पर भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के मामले में उठाए गए थे। हालांकि, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने किसी प्रकार का उग्र जवाब नहीं दिया, बल्कि उन्होंने इसे शायराना अंदाज में लिया और अपनी बात रखने के लिए अल्लामा इकबाल की एक मशहूर शायरी का सहारा लिया। उन्होंने कहा, “माना कि तेरी दीद के काबिल नहीं हूं मैं, तू मेरा शौक देख, मेरा इंतजार देख।”
शायरी से जवाब, अंदाजें बयां की झलक
यह शायराना अंदाज न केवल दर्शाता है कि मनमोहन सिंह की सोच कितनी गहरी थी, बल्कि यह भी दिखाता है कि वह राजनीति में भी अपनी शायरी को व्यक्त करने का तरीका जानते थे। उनकी प्रतिक्रिया ने न केवल शेर के माध्यम से अपने प्रतिद्वंद्वी का सम्मान किया, बल्कि माहौल को भी हल्का किया। यह उनका एक जुदा अंदाजे बयां था। मनमोहन सिंह की शायरी ने यह भी साबित कर दिया कि राजनीति और साहित्य का मिश्रण कैसे एक सशक्त और प्रभावशाली संवाद पैदा कर सकता है।
2013 में भी दोनों शायराना अंदाज में हुए थे आमने-सामने
मनमोहन सिंह और सुषमा स्वराज दोनों ही साहित्य प्रेमी थे और संसद में अक्सर शायरी के माध्यम से एक दूसरे से विचार विमर्श करते थे। 2013 में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव के दौरान भी एक बार फिर दोनों नेता शायराना अंदाज में आमने-सामने आए। इस बार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मिर्जा गालिब की एक नजम “हमको उनसे वफा की है उम्मीद, जो नहीं जानते वफा क्या है…” सुनाई। इसके जवाब में सुषमा स्वराज ने बशीर बद्र की शायरी “कुछ तो मजबूरियां रही होंगी, यूं कोई बेवफा नहीं होता” पढ़ी। यह शायराना संवाद संसद की बहस को और भी दिलचस्प बना गया।
मीडिया के सवालों का भी शायराना जवाब
एक और अवसर पर, जब पत्रकारों ने मनमोहन सिंह से उनकी सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों के बारे में सवाल किया, तो उनका शायराना अंदाज फिर से सामने आया। उन्होंने कहा, “हजारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी, जो कई सवालों की आबरू लेती है।” इस शेर ने न केवल उनके शायराना स्वभाव को उजागर किया, बल्कि चुप रहने के स्वभाव को भी गहरी अर्थवत्ता प्रदान की थी।
मनमोहन सिंह का निधन और उनका योगदान
भारत के प्रधानमंत्री के रूप में दो कार्यकालों में अपने योगदान के लिए प्रसिद्ध मनमोहन सिंह को 92 वर्ष की आयु में दिल्ली में निधन हो गया। उनका योगदान सिर्फ भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार करने तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने देश की राजनीति को भी कई बार शायरी और साहित्य के माध्यम से हल्का किया। मनमोहन सिंह की यह शायराना पहचान आज भी लोगों के दिलों में जीवित रहेगी। उनके निधन पर केंद्र सरकार ने देश में सात दिन का शोक घोषित किया है और इस दौरान राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहेगा। उनका अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ शनिवार को दिल्ली में किया जाएगा।